जदुवंशी बनाफर राजपूत वंश का ऐतिहासिक शोध--
जदुवंशी बनाफर राजपूत वंश का ऐतिहासिक शोध--- हमारी इस पावन पवित्र वीरों के बलिदान की भारत भूमि का इतिहास किसी एक भू -भाग का ऋणी नही है ।प्राचीनकाल में अयोध्या ,मगध ,काशी ,मथुरा ,शक्ति केंद्र रहे तो बाद के वर्षों में उज्जैन ,पाटिलपुत्र शक्ति केंद्र बने ,इसके बाद मध्यकाल में दिल्ली ,कन्नोज ,पाटन फिर मेवाड़ ,मारवाड़ में शक्तिकेंद्रों का उदय हुआ।इसके बाद बुन्देलखण्ड की ताकत ने पूरे देश में स्थान बनाया और बुन्देलखण्ड की वीरभूमि के इस गौरव में महोवा की भी वीरप्रसुता भूमि पूज्यनीय है जिसमें आल्हा एवं ऊदल जैसे रणवांकुरे वीर योद्धाओं ने जन्म लेकर उसको गौरवान्वित किया। आल्हा -ऊदल के स्मारक ही बने उनके वैभव के साक्षी -- अतिशयोक्ति वर्णन से आल्हा-ऊदल को इतिहास में भले ही वह स्थान न मिला हो जिसके वे हकदार थे पर आल्हा-ऊदल के स्मारक इस बात के साक्षी हैं कि चन्देल राजपूतों के गौरवशाली कालखण्ड में उनका ऊँचा स्थान था।इलाहवाद जिले के जसरा के समीप चिल्ला गांव में आल्हा-ऊदल की बैठक इस तथ्य की साक्षी है ।उस बैठक में 7 कमरे , आंगन व बरामदा बना हुआ है।दूर -दूर तक पत्थर पड़े होने से अनुमान लगाया जा स...