ब्रज जनपद (मथुरा ) के चन्द्र वंशी यादव (आधुनिक जादों ) कुलीन क्षत्रियों(राजपूतों ) का इतिहास --
ब्रज जनपद के चन्द्र वंशी यादव (आधुनिक जादों ) कुलीन क्षत्रियों (राजपूत ) का इतिहास ---
महाभारत युद्ध के लगभग 30 वर्ष पश्चात गुजरात के प्रभास क्षेत्र (द्वारिका -जामनगर -बेराबल ) में मथुरा एवं द्वारिका के यादव क्षत्रिय शक्तिक्षीण होकर इधर-उधर जा बसे तथा विभिन्न उपशाखाओं में विभक्त हो गए ।इनकी एक मूल शाखा उड़ीसा (उत्कल ) में भी जा बसी ।
मुस्लिम धर्म के प्रसार व प्रचार के समय भारत की पश्चिमोत्तर सीमाओं पर यादव कुलीन क्षत्रिय परिवार आबाद थे और इन राज परिवारों ने मुगल साम्राज्यवादियों की प्रगति को दीर्घकाल तक रोकने में सफलता प्राप्त की ।अंत में यदुवंशी भाटी राजपूतों ने सिंध अथवा पंजाब प्रांत को छोड़कर राजपूताना में स्थापित हो गए और कुछ जडेजा यदुवंशी राजपूतों ने मुस्लिम धर्म स्वीकार कर लिया तथा जिन्होंने नहीं किया वे कच्छ एवं अन्य प्रांतों की ओर जाकर स्थापित हो गए ।इस सीमान्त संघर्ष में यदुवंशियों का विशुद्ध रक्त , उनके मौलिक अधिकार , रक्त की पवित्रता , हिन्दू संस्कृति की भावना विद्यमान थी और आज भी यह कुल आबाद है जो विभिन्न उप शाखाओं जैसे जादों (जादौन ,छोंकर ,पोर्च ,वांगर , टांक ' बड़ेसरी ) ,जडेजा ,शूरसैनी, भाटी ,बनाफर ,चुडासमा , खंगार ,सरवैया ,रायजादा ,जाधव/जादव, ,बडियार बट गया।
ब्रज ( मथुरा/ बयाना )के जादों (पौराणिक यादव )राजपरिवारों ने मर्यादित भारतीय सीमाओं का किसी भी युग में उल्लंघन नहीं किया और मथुरा को छोड़कर अन्त में चंबल नदी के पश्चिम के भूभाग में बयाना ( विजयमन्दिरगढ़ ) तथा करौली राज्य की स्थापना की (1) ।
बयाना ( विजयमन्दिरगढ़ ) के जादों राजपूतों का वंश विस्तार ---
बयाना के यादव राजपूत कुलों का पश्चिमोत्तर सीमाओं से केवल राजनयिक सम्बन्ध था।वास्तव में विक्रमादित्य की सातवीं सदी में श्री कृष्ण के प्रपौत्र , बज्रनाभ की 60 वीं पीढ़ी में सिंधुपाल नामक जादों (यादव ) राजपूत ने उत्कल (उड़ीसा ) भुक्ति से आकर शूरसेन ( ब्रज ) भुक्ति में यादव (जादों ) राजवंश पुनर्स्थापित किया था (2 ).मुंगेर तथा लखीमपुर प्रशस्तियों से पता चलता है कि 8 वीं सदी में मथुरा के आस-पास यादवों का राज्य विद्यमान था और यह कान्यकुब्ज (कनौज ) के करद शासक थे (3) . कुछ इतिहासकारों ने तत्कालीन शासक का नाम धर्मपाल बताया है (4)।दसवीं शताब्दी में कनौज के गुर्जर -प्रतिहारों के विशाल साम्राज्य का पतन होने लगा और आर्यावर्त के अनेकों योद्धा सामन्त , शक्ति सम्पन्न कुलों ने स्वाधीन राजतंत्रों की स्थापना करना शुरू कर दिया था ।इस राजनैतिक अस्थिरता का लाभ उठाकर सिंधुपाल की 6वीं पीढ़ी में ऋक्षपाल (इच्छापाल ) ने मथुरा को अपनी राजधानी विक्रम संवत 936 /ई0 879 में बना लिया था।इसके बाद उसके बड़े पुत्र ब्रह्मपाल ने उत्तराधिकार प्राप्त किया (5 ) तथा छोटे पुत्र विनायक पाल ने महोबे का शासन किया जिसके वंशज वनाफ़र कहलाये जिनमें कई पीढ़ी बाद आल्हा एवं उदल हुए ।मथुरा गद्दी पर ब्रह्मपाल का पुत्र तथा उत्तराधिकारी जयेन्द्रपाल अति प्रतापी तथा रणधीर योद्धा था ,जिसने आगरा (6 ) के आस -पास जादों पंचायती राज्य (966-992 ई0 ) की राजधानी स्थापित की (7) ।इनके 8 पुत्रों का विवरण मिलता है ।इसका देहान्त संवत 1049 कार्तिक सुदी 11 को हुआ था ।इसका उत्तराधिकारी संत पाल (993-1020 ई0 ) था ।सम्भवतः इसके एक पुत्र का नाम कुलचंद था यह विजयपाल का भाई था (8) । इसने महावन में महमूद गजनवी का प्रतिरोध करके जादों राजपूत कबीलों की वीरता का परिचय दिया (9) ।
परम् भट्टारक महाराजाधिराज विजयपाल (1030-1093ई0) ---
सुल्तान महमूद गजनवी के आक्रमण ने कच्छपघात (कछवाहा राजपूत ) राजवंश की राजनैतिक प्रभुसत्ता को नष्ट कर दिया था (10 ) ।सन 1018 ई0 में मथुरा ,वृन्दावन , महावन ,आगरा ,कनौज प्रदेश तथा अन्य राज्यों को भी भीषण बरवादी सहन करनी पड़ी थी ।इन प्रदेशों के लोगों ने अपनी संपत्ति को छोड़कर पहाड़ तथा जंगलों से आच्छादित चर्मण्यवती मंडल अथवा भादानक प्रदेश और उसकी राजधानी श्रीपथ (श्री प्रस्थ ) में आकर शरण ली ।सम्भवतः इस आक्रमण से पूर्व ही जादों परिवारों ने भादानक प्रदेश में अधिकांश भूमि पर जमींदारियां प्राप्त करली थीं।11वीं शताब्दी के तृतीय दशक में (लगभग 1023 ई0 ) में सन्तपाल (11) के यशस्वी पुत्र विजयपाल ने" भादानक " प्रदेश तथा "श्री प्रस्थ "दुर्ग पर अधिकार कर लिया । अनुमानतः 1040ई0 में शांतिपुर -श्रीप्रस्थ की मरम्मत कराई तथा शोणितिगिरि (दमदमा ) के बाहय ढलानों पर "विजयमन्दिरगढ़ " नामक नवीन परकोटा , प्राचीर ,महल , मन्दिर आदि का निर्माण करा कर राजधानी स्थापित की (12) ।इगनोडा (मालवा ) प्रशस्ति (1133 ई0 ) के अनुसार विजयपाल ने "परम् भट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर " का विरुद धारण किया था।यद्यपि इसका प्रशासनिक काल अभी तक अनिश्चित है , फिर भी काल निर्धारण के लिए विजयमन्दिरगढ़ (1043ई0 /1100 विक्रम सं0 ) और इ इगनोण्डा (1133ई0 ) के शिलालेख महत्वपूर्ण है (13) ।मि0 कारली के अनुसार उसके 28 पुत्र जिनमें तिहुनपाल और ऋतुपाल (रतनपाल ) प्रमुख तथा एक पुत्री बीजल थी ।कनिंग्घम के मतानुसार विजयपाल ने अपने जीवनकाल में "विजयमन्दिरगढ़ "के अतिरिक्त मदनगढ़ ,दक्षिण में तवनगढ़ -थानगढ़ (14) , जगनेर के समीप बीजलपुर , भुसावर के दक्षिण में लगभग 6 मील रीतवार आदि कई नवीन दुर्गों का निर्माण कराकर अपनी राजधानी को सुरक्षित कर लिया था ।"विजयमन्दिरगढ़ राज्य में काँमा ,त्रिभुवनगिरि ,(तवनगढ़ ) ,धवलपुरी (धौलपुर ) , मधुरा (मथुरा ) ,बैराठ ( मत्स्य ), द्योसा (दौसा ) , आदि प्रमुख नगर तथा दुर्ग शामिल थे ।इस प्रकार पूर्व में यमुना नदी का पूर्वी भाग ,पश्चिम में बनास तथा मौरेल के पार रणस्तम्भर (रणथम्भोर ), खण्डार तथा ढूंढाड़ (आधुनिक जयपुर पर्यन्त भूभाग ) ,उत्तर में हरितन्का (हरियाणा ) ,गुड़गांव और दक्षिण में चम्बल नदी के 32 मील पार सबलगढ तक सीमाएं फैल चुकी थीं (15)। उसने पड़ोसी राज्यों के साथ "पारवारिक मंगल सूत्र "द्वारा राजनैतिक प्रभुत्व प्राप्त कर लिया था (16 ) ।उसकी नियमित चमू (सेना ) में हाथी ,घोड़ा ,ऊंट ,रथ तथा पदाति सैनिक थे और यह विशाल कटक एक लाख के लगभग था (17)। विजयपाल धर्मात्मा , साहित्यिक तथा राष्ट्रीय सम्राट था ।उसने विजयपाल रासौ के लेखक "नरपति नल्ल सिंह "को हिण्डौन के अनेक गांव ,हाथी ,घोड़ा ,तथा अपार धन देकर सम्मानित किया था (18) ।वह स्वयं शिवोपासक था और वैष्णव धर्म राजधर्म था ।जादों नरेश की कीर्ति तथा पराक्रम को देख कर दिगम्बर तथा श्वेताम्बर जिन साहूकार तथा जिन आचार्यों ने राजधानी में आकर निवास किया ।करौली की ख्यातों के अनुसार विजयपाल की गजनी के तुर्कों के साथ कई बार मुठभेड़ हुई और जादों सेनाओं ने उनको परास्त करके विजय कीर्ति उपलब्ध की थी (19) । यह निर्विवाद सत्य है कि महमूद के आक्रमणों के बाद विजयमन्दिरगढ़ या भासीयाना (भादानक ) साम्राज्य पर तुर्कों का एक भी हमला नहीं हुआ था ।यह सम्भव हो सकता है कि विजयपाल ने दिल्ली के तंवर , शाकाम्भरी के चौहान राजपूतों की सहायता लेकर भारतीय एकता तथा वीरता का कीर्तिमान उपार्जित कर लिया था ।अंतिम विजय के बाद जौहर की ज्वाला से उद्विग्न होकर अपना शीश शिवजी के चरणों मेंअर्पित कर दिया (20)।
संदर्भ--
1-टॉड , 1/72 -3;आर्के 0 सर्वे0 , 20/5-6;ब्रुकमैन ,29 ।
2-बलदेव सिंह (पांडुलिपि ) ,पृष्ठ 5 ;ब्रुकमैन , 29 ;इम्पी 0 गजे0 , 15 /26 ; *
*दीक्षित ,1 और जाट जगत ,10।
3-ए0 इ0 (लखीमपुर ) ,4/243 , मुंगेर 18/304 ;दृष्टव्य -भारतीय विद्याभवन ,4/5 -6, डा0 त्रिपाठी (हिस्ट्री आफ कनौज ) , 216-230 ; विस्तृत अध्ययन के लिए द्रष्टव्य -लेखक द्वारा युगयुगीन बयाना , अध्याय 4 ।
4-आर्के0 सर्वे0 20/6 का मत है कि श्री कृष्ण की 77 वीं पीढ़ी में धर्मपाल जादों राजपूत ने जन्म लिया था और उसने आठवी सदी में अपने नाम के साथ :"पाल "शब्द लगाया था ।
5-गहलोत ,597 (पा0 टि0 ) ।
6-मुस्लिम इतिहासकारों के अनुसार आगरा एक प्राचीन कस्वा था ,जहाँ महाभारत काल में राजा कंस ने राजनैतिक बन्दियों के लिए कारागार बनवाया था (तारीखे दाउदी ,पृष्ठ 42 ) ।सुल्तान महमूद गजनवी की स्तुति में मसूद के लिए कसीदा के अनुसार यहां पर एक फौलादी दुर्ग था ,जिसको महमूद ने मिट्टी में मिला दिया था (तुजुके जहाँगीरी ) ।
7-बलदेव सिंह ,5 ;वाक्या राज0 2/34 ,चौबे ,1 ;ब्रुकमैन ,316-7 ।
8-ब्रज का सांस्कृतिक इतिहास (1966ई0) पृष्ठ 68 ।
9-अलउत्तवी कृत तारीखे यामिनी (इ0 डा0) ,2/42-46;तबकाते अकबरी 10 ;अल्बदउँनी 22-25 ; फरिश्ता (इ0डा0 ) ,2 ,459-61 ; ओझा 1 /264-65 ;आशीर्वादी लाल (दिल्ली सल्तनत ) ,पृष्ठ 39-48 ;मथुरा महिमा , 61 ;डा0 मुहम्मद हबीब (सुल्तान महमूद ऑफ गजनी ) ।
10-नैणसी की ख्यात ,2/4 ;टॉड ,2/280-81 ;आमेर की ख्यातें (ओझा संग्रह );राय ,2/823 -24 ; माबेल डफ ,291 ;मार्शल 3;डा0 भार्गव (राजस्थान ) 115 ।
11-ब्रुकमैन ,317 ;दीक्षित , 1;चौबे 1;जाट जगत ,10 ;बलदेव सिंह ,5 ;वाक्या राज0 ,2/34 ।
12-इम्पी 0गजे0 , 7/137 ,15/26 ;आर्के 0 सर्वे0 ,6/54 ,20/6 ,62 ;गहलोत ,597 ;दीक्षित ,188 ;वाक्या राज0 ,2/26 ;वीर विनोद , 1497-8 ।
13-शिलालेख -इ 0ए0 ,भाग 6/55 ,14/9-10 ;काव्यमाला 129-30 ।
14-विजयमन्दिरगढ़ के दक्षिण में 14 मील , हिण्डोन के पूर्व में 14मील , करौली के उत्तर में करौली मांसलपुर राजमार्ग से 6 मील त्रिभुवनगिरि की उच्च श्रृंग पर ।शिलालेख के अनुसार इसका निर्माण 1058 ई0 में हुआ था ।
15-आर्के0 सर्वे 0 ,20/3 ( भूमिका ) 5 ;इम्पी0 गजे0 ,15 /26 ;गहलोत 600।
16-आर्के0 सर्वे0 ,6/54 ।
17-विजयपाल रासौ (कविरत्न माला ) ।
18- कविरत्नमाला ,पृष्ठ 23;ब्रज का इतिहास ,2/213।
19- इम्पी0 गजे0 ,17 /313 ;ब्रुकमैन ,20 ;दीक्षित ,7 ;आर्के0 सर्वे0 ,6/55, 20/60 ।
20- इम्पी0 गजे0 ,8 /137 ,ओड़ायर 3/24 ;वीर विनोद ,1498, बलदेव सिंह ,6 ;वाक्या राज0 ,2/35 ;दीक्षित ,2;गहलोत 599।
लेखक-डॉ0 धीरेन्द्र सिंह जादौन
गाँव-लढोता ,सासनी
जनपद -हाथरस,उत्तरप्रदेश
एसोसिएट प्रोफेसर कृषि मृदा विज्ञान
शहीद कैप्टन रिपुदमन सिंह राजकीय महाविद्यालय ,सवाईमाधोपुर ,राजस्थान ,322001
हुक्म हरियाणा, गुड़गांव की तरफ खंगार /खांगर/खांगरोत वंश के कौनसे महाराज श्री किस समवत ईस्वी गए थे किस ठिकाने गढ़ से गए थे उनका क्या नाम था और वो चन्द्रवंश /सूर्यवंश की कौनसी शाखा से थे और आज हरियाणा मे उनके कितने गाँव है कृप्या कर बतला दीजिये🙏🙏🙏
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