दास्ताने पूर्व मध्यकालीन जादों राजवंश का बयाना (विजयमन्दिरगढ़ ) किला ---
दास्ताने पूर्व मध्यकालीन जादों राजवंश का बयाना (विजयमन्दिरगढ़ ) किला---
बयान भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसका जितना महत्व हिन्दू काल में था ।उससे भी कहीं अधिक मुस्लिम काल में हो गया। इसका नाम श्रीपथ था। अब तक जितने भी शिला लेख यहाँ से प्राप्त हुए हैं उनसे यही ज्ञात होता है। इस नगर का प्राचीन नाम वाणासुर नगरी भी बतलाया जाता है, किन्तु इसका प्रमाण नहीं मिलता ।ऐसा कहा जाता है कि वाणासुर यहीं का निवासी था। यहीं उसकी पुत्री ऊषा का मंदिर है जो कई बार मस्जिद व मंदिर के रूप में तब्दील हो चुका है। इस नगर का प्राचीन इतिहास अनेक पौराणिक गाथाओं से भरा पड़ा है। वैदिक काल में यह किला मतस्य जनपद का श्रेष्ठतम सामरिक महत्व का दुर्ग था। ईसा से लगभग पांच सौ वर्ष पूर्व इस किले पर मथुरा के शूरसेन (यदुवंशी ) शासकों का अधिकार था ।
बयाना का किला नगर से लगभग चार मील दक्षिण में 800 फीट ऊंची पहाड़ी पर बना हुआ है। इसका क्षेत्रफल लगभग 10 वर्गमील होगा। इसमें किसी समय अनेक महल, तालाब, बाबड़ी व बाँध थे जिनमें से कुछ अभी तक शेष हैं। इस दुर्ग में अनेक स्थल ऐतिहासिक महत्व के हैं जिनमें पत्थर की लाट (जिसे भीम लाट कहते हैं) बहुत प्रसिद्ध है। यह नगर पश्चिम रेलवे की बड़ी लाइन पर है जो दिल्ली से बम्बई जाती है। भरतपुर से सवाई माधोपुर की तरफ 21 मील है। किला पहाड़ी पर हैं और रेलवे स्टेशन से सवाई माधोपुर की ओर 4 मील पर है। यहाँ से अब तक तीन शिला लेख प्राप्त हुये हैं जो 956 A. D, 1043 A .D व 1146 A. D. के बतलाये जाते हैं। इन शिला लेखों से नगर के इतिहास पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। सन् 360 ई० में इस नगर तथा किले पर सम्राट समुद्रगुप्त ने अधिकार कर लिया था। सम्राट हर्ष के शासन काल के समय यह दुर्ग गुर्जर शासकों के स्वतंत्र अधिकार में था । नवीं शताब्दी में गुर्जरों की प्रतिहार शाखा ने इसे अपने अधिकार में कर लिया था। इसी शाखा के राजा लक्ष्मण की रानी चित्रलेखा ने 956ई0में बयान का ऊषा मंदिर बनवाया था। जो शिला लेख ऊषा मन्दिर से प्राप्त हुआ है उस से पुष्टि होती है कि यहां पर गुर्जरों का शासन भी रहा था।
यदुवंशियों के अधिकार में बयाना--
लगभग 11 शताब्दी के आरम्भ के यहां पर मथुरा के यदुवंशी (जादों) राजा जयेन्द्रपाल का शासन कायम हो गया। उसके बाद उनका पुत्र विजयपाल यहां का शासक रहा । उसी ने इस दुर्ग की ठीक प्रकार से मरम्मत कराके महलात वनवाये और किले
का नाम विजय मन्दिर गढ़ रखा । विजयपाल का अधिकार इस किले पर 11 वीं शताब्दी के आरम्भ तक रहा था । विजयपाल के पुत्र तिमनपाल ने बयाना से लगभग 29 मील दक्षिण-पूर्व में अपने नाम पर तिमनगढ़ की तमीर कराई ।
मुहम्मद गौरी का बयाना दुर्ग पर अधिकार--
तिमनपाल का पौत्र कुंवरपाल था 12 वीं शताब्दी के मध्य बयाना एवं तिमनगढ़ दुर्ग उसी के अधीन थे।कुंवरपाल का घमासान युद्ध 1196 ई0 में मुहम्मद गोरी से हुआ था। गोरी का इस दुर्ग व तिमनगढ़ पर अधिकार हो गया और उसने यहां का प्रबन्ध बहाउद्दीन तुगलक के सुपुर्द कर दिया। कुतबुद्दीन एवक की मृत्यु के पश्चात यह किला देहली के शासन से निकल गया और
इल्तुतमिश का बयाना दुर्ग पर अधिकार--
इल्तुतमिश को इसे फिर से जीतना पड़ा । इल्तुतमिश के बाद दिल्ली का शासन लड़खड़ाने लगा। उसके उत्तराधिकारी इतने निर्बल थे कि बयाना के किले को उनसे जादों राजपूतों ने फिर से 1240-41 में लीन लिया । बादशाह नासिरुद्दीन महमूद के शासनकाल में उसके बजीर बलवन और अबूबकर कंधारी ने बयाना पर 1246 में आक्रमण किया। विजय के पश्चात् सुलतान नासिरुद्दीन महमूद में बयाना का किला मलिक शेरखां को जागीर में दे दिया ।
दिल्ली के सुल्तानों के अधिकार में बयाना दुर्ग---
इसके बाद 1398 ई० तक यह किला बराबर देहली के सुलतानों के अधिकार में ही बना रहा। केवल 1394 ई० में मुहम्मद तुगलक ने बयाना पर आक्रमण किया था। लेकिन 1398 ई० में तैमूर के आक्रमण के पश्चात् जब देहली की सल्तनत अस्त व्यस्थ हो गई उस समय बयाना के सूबेदार शम्स खां ने भी अपने आपको स्वतन्त्र शासक घोषित कर दिया। लगभग एक शताब्दी तक बयाना का स्वतन्त्र राज्य, मालवा और देहली के सुलतानों के मध्य कायम रहा । चौदहवीं शताब्दी के अन्त में शम्स खां ने इस राज्य की स्थापना की थी। यहां के शासक को 1446 ई० में मालवा के शासक महमूद खिलजी ने मान्यता देकर उसे सुनहरी ताज भी भेंट किया। इस समय से बयाना के मुसलमान शासकों ने दिल्ली के सुलतानों के विरुद्ध मालवा के सुल्तानों का ही पक्ष लिया | तैमूरलंग के भारत से चले जाने के बाद खिज्र खां सैयद ने अपना राज्य स्थापित करने के बाद अपने बजीर ताज-उल मुल्क को इस किले पर अधिकार करने के लिये भेजा था ।
लोदी वंश का बयाना दुर्ग पर अधिकार--
बहलोल लोदी और सिकन्दर लोदी को भी इस किले पर अधिकार करने के लिये सेनाएं भेजनी पड़ी थीं। सिकन्दर लोदी ने तो इस किले से अपना अस्थायी हैडक्वाटर ही बना लिया था । सन् 1505 ई० में जब उसने आगरा शहर की स्थापना जमुना के किनारे की तो उसके मस्तिष्क ने आस- पास के खास कर मेंवात के उपद्रवियों को दबाने के लिये इस किले पर अधिकार करना निहायत जरुरी समझा। इलाके में निरंतर उपद्रव हुआ करते थे और जब कभी देहली के सुल्तान को इधर मेवात की तरफ उन्हें दबाने के लिये आना पड़ा तब उन बागियों से उनका भीषण संग्राम हुआ। इन संग्रामों कहानी बहु- असंख्य कब्रें कह रही हैं जो इस किले के नीचे मैदान में कई कई मील तक बिछी पड़ी हैं।
पानीपत में बाबर का जब इब्राहीम लोदी से युद्ध हुआ था तो उस समय इस किले पर निजाम खां का शासन था। इसने बाबर और राणा सांगा( संग्रामसिंह ) में से किसी का भी शासन स्वीकार नहीं किया था। लेकिन जब राणा सांगा बयाना की तरफ बाबर से युद्ध करने बढे तब निजाम खां ने 20 लाख बार्षिक कर देने का वायदा किया और उस से सहायता की याचना की। बाबर ने सहायता भेजी किन्तु फिर भी निजाम खां को राणा सांगा ने परास्त किया ।
मुगलों का बयाना दुर्ग पर अधिकार--
खानवा की विजय के उपरान्त बाबर ने बयाना को फिर निजामखाँ के हवाले कर दिया। इसके बाद थोड़े समय के लिये इस किले पर फिर राजपूतों का अधिकार रहा ।
सन् 1553 में गुजरात के शासक बहादुर शाह के इशारे पर तातार खां ने बयाना के आस-पास विद्रोह खड़ा कर दिया था। उस समय देहली के शासक हुमांयू के भाई हिन्दाल ने तातारखां का दमन करके इस किले को मुगल शासन में ले लिया था।
शेरशाह सूरी का बयाना दुर्ग पर अधिकार--
शेरशाह सूरी ने बयाना के किले को अपनी सैनिक छावनी बनाया था। 1556 यह किला सूरवंश के सुलतानों के आधीन बना रहा। किन्तु इसी वर्ष हेमू बक्काल ने इस पर अधिकार कर लिया पानीपत के द्वितीय युद्ध में हेमू पराजित हुआ, तब यह देहली के मुगल शासकों के अधिकार में चला गया और अठारवीं शताब्दी के प्रारंभ तक उन्हों के पास बना रहा।
बयाना दुर्ग पर जाटों का अधिकार ----
औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् सन 1715 ई0 के लगभग यह किला ठाकुर चुरामन के अधिकार में चला गया और उसके पश्चात् ठाकुर बदनसिंह का शासन रहा। सन् 1947 तक उसी के वंशजों के अधिकार में रहा। 17 मार्च सन् 1947 ई० को राज्य के मत्स्य राज्य में विलीन होने पर इस किले से भरतपुर के शासकों का अधिकार उठगया ।
बयाना दुर्ग के मुख्य स्मारक--
बयाना के मुख्य स्मारकों में किले की लाट, दाउद खां की मीनार, ऊषा मन्दिर, इब्राहीम लोदी की मीनार, इस्लाम शाह सूर का बनाया हुआ दरवाजा, अकबर की छतरी, जहांगीर की बनाई हुई बावली तथा दरवाजा और सिकन्दरा मस्जिद के निकट पुराना दरवाजा बहुत प्रसिद्ध है। शाहजहाँ और औरंगजेब के शासन काल में यह किला मुगल साम्राज्य के कारावास के रूप में प्रयुक्त होता था । यहाँ पर राजनैतिक अपराधियों को बंदी के रूप में रखा जाता था ।
विदेशों में नील के लिए प्रसिद्ध था बयाना--
यहाँ की नील बहुत प्रसिद्ध थी। विदेशों को उसका निर्यात किया जाता था । खुलमुत-उल-तवारीख में सुजानराम ने लिखा है कि यहां के मतीरे तथा आम बहुत प्रसिद्ध थे।
मुगल बादशाह तथा भरतपुर के महाराज गान के समय में यह शेर के शिकार के लिए भी बहुत प्रसिद्ध रहा था। इसकी तलहटी में अजोरी के स्थान पर शेर का शिकार हुआ करता था। इसमें महाराजा रनजीतसिंह का बनवाया हुआ तालाब व हवेली अभी तक अच्छी हालत में है।
संदर्भ---
1-गज़ेटियर ऑफ करौली स्टेट -पेरी -पौलेट ,1874ई0
2-करौली का इतिहास -लेखक महावीर प्रसाद शर्मा
3-करौली पोथी जगा स्वर्गीय कुलभान सिंह जी अकोलपुरा
4-राजपूताने का इतिहास -लेखक जगदीश सिंह गहलोत
5-राजपुताना का यदुवंशी राज्य करौली -लेखक ठाकुर तेजभान सिंह यदुवंशी
6-करौली राज्य का इतिहास -लेखक दामोदर लाल गर्ग
7-यदुवंश का इतिहास -लेखक महावीर सिंह यदुवंशी
8-अध्यात्मक ,पुरातत्व एवं प्रकृति की रंगोली करौली -जिला करौली
9-करौली जिले का सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक अध्ययन-लेखक डा0 मोहन लाल गुप्ता
10-वीर-विनोद -लेखक स्यामलदास
11-गज़ेटियर ऑफ ईस्टर्न राजपुताना (भरतपुर ,धौलपुर एवं
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12-सल्तनत काल में हिन्दू-प्रतिरोध -लेखक अशोक कुमार सिंह
13-राजस्थान के प्रमुख दुर्ग -लेखक रतन लाल मिश्र
14-यदुवंश -गंगा सिंह
15-राजस्थान के प्रमुख दुर्ग-डा0 राघवेंद्र सिंह मनोहर
16-तिमनगढ़-दुर्ग ,कला एवं सांस्कृतिक अध्ययन-रामजी लाल कोली
17-भारत के दुर्ग-पंडित छोटे लाल शर्मा
18-राजस्थान के प्राचीन दुर्ग-डा0 मोहन लाल गुप्ता
19-बयाना ऐतिहासिक सर्वेक्षण -दामोदर लाल गर्ग
20-ऐसीइन्ट सिटीज एन्ड टाउन इन राजस्थान-के0 .सी0 जैन
21-बयाना-ऐ कांसेप्ट ऑफ हिस्टोरिकल आर्कियोलॉजी -डा0 राजीव बरगोती
22-प्रोटेक्टेड मोनुमेंट्स इन राजस्थान-चंद्रमणि सिंह
23-आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया रिपोर्ट भाग ,20.,पृष्ठ न054-60--कनिंघम
24-रिपोर्ट आफ ए टूर इन ईस्टर्न राजपुताना ,1883-83 ,पृष्ठ 60-87.--कनिंघम
25-राजस्थान डिस्ट्रिक्ट गैज़ेटर्स -भरतपुर ,पृष्ठ,. 475-477.
26--राजस्थान का जैन साहित्य 1977
27-जैसवाल जैन ,एक युग ,एक प्रतीक
28-,राजस्थान थ्रू दी एज -दशरथ शर्मा
29-हिस्ट्री ऑफ जैनिज़्म -कैलाश चन्द जैन ।
30-ताहनगढ़ फोर्ट :एक ऐतिहासिक सर्वेक्षण -डा0 विनोदकुमार सिंह एवं मानवेन्द्र सिंह
31-तवारीख -ए -करौली -मुंशी अली बेग
32-करौली ख्यात एवं पोथी अप्रकाशित ।
33-नियमतुल्ला कृत तवारीखे अफगान ।
34-बी0 एस0 भार्गव कृत राजस्थान का इतिहास ,पृष्ठ ,270 ।
35-मुन्शी ज्वालाप्रसाद कृत बकाए राजपुताना ।
लेखक--– डॉ. धीरेन्द्र सिंह जादौन
गांव-लाढोता, सासनी
जिला-हाथरस ,उत्तरप्रदेश
एसोसिएट प्रोफेसर ,कृषि विज्ञान
शहीद कैप्टन रिपुदमन सिंह ,राजकीय महाविद्यालय ,सवाईमाधोपुर ,राजस्थान ,322001
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