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Showing posts from 2017

करौली यदुवंशियों के प्राचीन दुर्ग मंडरायल का ऐतिहासिक शोध-----

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करौली  यदुवंशियों के प्राचीन दुर्ग मंडरायल  का ऐतिहासिक शोध-----  ‎मंडरायल का दुर्ग पूर्व-मध्यकाल का एक प्रसिद्ध दुर्ग रहा है।यह किला मध्यप्रदेश एवं राजस्थान के सीमांत प्रदेश पर स्थित है।चम्बल नदी के किनारे यह एक उन्नत पहाड़ी के शिखर भू-भाग पर स्थित है।इसका  निर्माण लाल पत्थरों से हुआ है।यह वन प्रदेश का पहाड़ी दुर्ग है।दुर्ग में ऐसा कुछ भी नहीं मिलता जिससे निर्माण तिथिपर प्रकाश डाला जा सके।  ‎  ‎बयाना  के महाराजा विजयपाल के पुत्र मदनपाल जी ने कराया था मंडरायल दुर्ग का निर्माण ----  जागाओं की पोथी में लिखे लेख के अनुसार इस मंडरायल दुर्ग का निर्माण बयाना के राजा विजयपाल की मृत्यु के बाद उनके पुत्र दूसरे क्षेत्रों में पलायन करके बस गये । बयाना के महाराजा विजयपाल के एक पुत्र मदनपाल(मण्डपाल) ने मंडरायल को आबाद किया और वहां एक किले का निर्माण सम्वत 1184 के लगभग करवाया था जो आज भी खंडहर स्थित में मौजूद है।मेडिकोटोपो ग्राफिकल गजेटियर के अनुसार भी इस दुर्ग का निर्माण किसी यदुवंशी जादों राजा ने ही करवाया था ।जिससे  राजा मण्डपाल की ही सम्भाव...

करौली राज्य के प्राचीन दुर्ग उतगिरि का ऐतिहासिक शोध एवं करौली के यदुवंशी जादौन राजपूतों का सिकन्दर लोदी से खूनी-संघर्ष-----

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करौली राज्य के प्राचीन दुर्ग उतगिरि का ऐतिहासिक शोध एवं  करौली के यदुवंशी जादौन राजपूतों का सिकन्दर लोदी से खूनी-संघर्ष-----  करौली क्षेत्र में उतगिरि के किले को मध्यकालीन राजपूताने के विशाल दुर्गों में माना जाता है ।यह दुर्ग घने जंगल के भीतरी भाग में स्थित है ।दुर्ग के आस -पास कोई भी  वस्ती की बसावट नहीं है।जंगली क्षेत्र को पार करके दुर्ग तक पहुंचना बड़ा दुष्कर व कठिन कार्य है।जंगली जानवरों का भी डर रहता है इस बजह से इस विशाल दुर्ग पर अधिक शोधकार्य भी नहीं हो पाया जिसकी बजह से इस दुर्ग के विषय में कम जानकारी है । स्थानीय मान्यताओं के अनुसार इस दुर्ग का निर्माण लोधी जाति के लोगों ने करवाया था ।इस जाति के लोग बीहड़ पहाड़ी चम्बल किनारे वाले इस क्षेत्र पर लम्बे समय से ही कब्जा किये हुए थे ।उन्होंने ही समय-समय पर यहां पर बांध और तालाब बनवाये। मुगल इतिहासकारों ने उतगढ़ को भिन्न -भिन्न नामों से लिखा है जैसे  उदितनगर ,उन तगर,अवन्तगर, उटनगर, उटगर ,अवन्तगढ़ , अंतगढ़ और अनुवंतगढ़ है।इसका वास्तविक  या शुद्ध नाम उतगढ़ या अवन्तगढ़ है।मुगल इतिहासकारों ने सुल्तानेत काल का इ...

करौली के जादौन राजपूतों के सपोटरा दुर्ग का इतिहास-

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 करौली के जादौन राजपूतों के सपोटरा दुर्ग का इतिहास----- सपोटरा प्रायः करौली जिले की तहसील है जो करौली से पश्चिम में लगभग48 किमी 0पर है।करौली राज्य के जागीरदारों के गाँव प्रायः इसी भाग में है ।सपोटरा का दुर्ग करौली के महाराजा  धर्मपाल जी दुतीय के वंशज राव उदयपाल ने बनबाया था जो महाराजा रतनपाल जी के पुत्र थे ।राव उदयपाल जी को सपोटरा ठिकाना दिया गया और उनके भाई  महाराजा कुंवरपाल जी करौली के वि0 सं0 1745 या ई0 सन 1688ई0 में गद्दी पर बैठे।लगभग इसी समय के आस -पास उदयपाल जी को सपोटरा ठिकाना दिया गया होगा और इसके बाद सपोटरा में दुर्ग बनवाया गया होगा ।ये जीरोता से लगभग 11 किमी0 पूर्व में है।इस दुर्ग में उस समय 50 लोग रहते थे ।इसमें एक खूबसूरत तालाब भी बना हुआ है ।यहाँ के जोगी लोग उस समय बारूद बनाते थे जो बूँदी व कोटा राज्यों में भेजी जाती थी ।आजकल यहां मीना समाज की बहुतायत है जो यहां के जमींदार भी है ।यहां पर जल स्तर काफी ऊंचा बताया जाता था । मैं ,  तहे दिल से विक्की सिंह जादौन , ठिकाना सपोटरा का धन्यवाद व आभार व्यक्त करता हूँ जिनकी मदद से मुझे सपोटरा के दुर्ग के फोटो प...

A Practising Politician First President of U.P Bhartiya Jana Sangh - Late Rao Krishna Pal Singh Ji Awagarh-----

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A Practising Politician First President of U.P Bhartiya Jana Sangh - Late Rao Krishna Pal Singh Ji Awagarh---- -- The Bhartiya Jana Sangh was the most robust of the Frist generation of Hindu nationalist parties in modern Indian  politics.on  september 2 , 1951  in Lucknow ,the UP Unit was formed . Lala Bal Raj Bhalla ji (  President Punjab Unit )delivered the inaugural address in which he stressed the Bhartiya aspect of the party's program and did so in such a manner that anynon-Hindu would certainly have been frightened  away.The  party adopted a resolution calling for an All-India  meeting.Rao  Sahib Krishna Pal Singh Awagarh ,just such a landlord ,a former  army Major and member of UP Legislative Council and one -time President of the Provincial Hindu Sabha was elected the first President and Pandit Din Dayal Upadhyay  , the reputed writer ,orator and social worker of Uttar Pradesh was appointed as first General Secretary....

वास्तविक यदुवंशी /जदुवंशी /शूरसैनी /पौराणिक यादव क्षत्रियों के क्षेत्र वार ठिकानों की स्थिति

वास्तविक यदुवंशी /जदुवंशी /शूरसैनी /पौराणिक यादव  क्षत्रियों के  क्षेत्र वार ठिकानों की स्थिति --–-------- भाइयो हमारे हिन्दू पुराणों और पुराने देशी व् विदेशी इतिहासकारों के इतिहास के अनुसार यदुवंश /पौराणिक यादव क्षत्रिय वंश में मुख्यतः आधुनिक समाज के अनुसार निम्न राजपूत आते हैं जिनका विवरण और देश के विभिन्न प्रान्तों में जिले वार उनके गांवों /ठिकानों की संख्या  बताने की यथासम्भव कोसिस की गई है ।आगामी लेख में कुछ समय बाद इनके प्रान्त में जिले वार गांवों की सूची भी प्रकाशित की जायेगी जिससे  हमें सम्पूर्ण यदुवंशियों के ठिकानों का भी पता चल जाएगा ।ऐसी पोस्ट लिखने का उद्देश्य यहभी हैकि हैम एक दूसरेको जाने पहंचाने तथा अपने गौरव शाली इतिहास को भी जाने और उसमें जो लोग इसमे जोड़ तोड़ कर रहे हैउनसे सावधान रहें ।यदुवंश का सम्पूर्ण इतिहास श्रीमद भागवत पुराण ,हरिवंशपुराण ,सुखसागर वायुपुराण ,गर्गसंहिता ,।महाभारत ,विष्णुपुराण ,वराहपुराण तथा अन्य वेद और पुराणों में मिलता है । जदू /,जादों/ ,जादौन ,/जादब -------- राजस्थान-–----- 1  करौली ------(करौली के पास का पूरा डांग क...

सूने ब्रज में प्रकाश पुंज बनकर आए थे यदुकुल के पुनःसंस्थापक एवं ब्रज के पुनः निर्माता श्रीकृष्ण के प्रपौत्र श्री वज्रनाभ जी

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सूने ब्रज में प्रकाश पुंज बनकर आए थे यदुकुल के पुनःसंस्थापक एवं ब्रज के पुनः निर्माता श्रीकृष्ण के प्रपौत्र श्री वज्रनाभ जी –––––––   मुक्ति कहै गोपाल सों मेरी मुक्ति बताय । ब्रज रज  उड़ि मस्तक लगै ,मुक्ति मुक्त है जाय ।। ब्रज की पावन पवित्र रज में मुक्ति भी मुक्त हो जाती है ।ऐसी महिमामयी है ये धरा ।ब्रज वसुधा को जगत अधीश्वर  भगवान् श्री कृष्ण ने अपनी लीलाओं से सरसाया ।"ब्रज "शब्द का अर्थ है व्याप्ति ।इस व्रद्ध वचन्  के अनुसार व्यापक होने के कारण ही इस भूमि का नाम "ब्रज "पड़ा है ।सत्व ,रज ,तम इन तीनों गुणों से अतीत जो परमब्रह्म है ।वही व्यापक है ।इस लिए उसे "व्रज"कहते है । भगवान् श्री कृष्ण को नमन करते हुए अब मै उनके वंश यदुकुल के प्रवर्तक महाराज वज्रनाभ के इतिहास का वर्णन करने की कोसिस कर रहा हूँ   मधुवन(आधुनिक  मथुरा ) पर यदुवंशी  क्षत्रियों का शासन –---------          यदुवंशियों का राज्य मधुवन (आधुनिक मथुरा ) हुआ करता था जिसके शासक सहस्त्रबाहु अर्जुन के पुत्र मधु महाराज थे  ।इन्ही मधु का पुत्र लवण था...

Historical Research of jadaun Rajputs of some areas in Madhypradesh---मध्यप्रदेश के कुछ क्षेत्रों पाये जाने वाले जादौन राजपूतों का ऐतिहासिक शोध --

Historical Research of jadaun Rajputs of  some areas in Madhypradesh--- मध्यप्रदेश के कुछ क्षेत्रों पाये जाने वाले जादौन राजपूतों का ऐतिहासिक शोध --   मथुरा के महाराजा जायेंद्रपाल जो भगवान् कृष्ण के 87 वीं पीढ़ी में मथुरा के राजा थे।ये मथुरा की गद्दी पर चतुर्थमास की कार्तिक सुदी एकादसी सम्वत 1023 सन् 966 बैठे।इन्होंने गुर्जर प्रतिहारों के पतन के बाद पहली वार बयाना पर अधिकार किया।इनके 11 पुत्र हुये जिनमें विजयपाल ज्येष्ठ पुत्र थे।विजयपाल महाराजा जयेंद्रपाल की मृत्यु के बाद सम्वत 1056 सन् 999 में मथुरा की गद्दी के वारिस हुए। सन् 1018 के लगभग कन्नौज को जीतने के बाद महमूद गजनवी पशिचमोत्तर में बढ़ा जहाँ वह मथुरा लूटने के लिए आरहा था तो राजा विजयपाल यवनों की बजह से अपनी राजधानी सुरक्षित स्थान मानी पहाड़ी पर लेआये।इसी पहाड़ी पर इन्होंने 1043 ई0 में विजयमन्दिरगढ़ नाम के एक विशाल दुर्ग का जीर्णोद्धार करवाया था कहा जाता है की ये दुर्ग वाणासुर ने बनवाया था जिसकी पुत्री उषा थी जिसका विवाह अनिरुद्ध जी के साथ हुआ था।उस समय बयाना श्रीपथ ,पदमपुरी के नाम से जाना जाता था।राजा विजयपाल के 18 पुत्र थ...

कोटिला जादौन राजपूतों की रियासत का ऐतिहासिक शोध

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कोटिला जादौन राजपूतों की रियासत का ऐतिहासिक शोध मुग़ल काल से लेकर स्वतंत्रता प्राप्ति तक फीरोजाबाद आगरा जिले की तहसील रहा था जो आजकल जिला बन चूका है ।  फीरोजाबाद क्षेत्र में कोटला का भी महत्वपूर्ण  स्थान रहा है । जमींदारी समाप्त होने से पूर्व कोटला रियासत फीरोजाबाद तहसील में सवसे बड़ी  जमींदारी थी ।किसी समय फीरोजाबाद नगर से कोटला अधिक समृद्ध था ।वहां की जनसंख्या भी फीरोजाबाद से अधिक थी । कोटला रियासत का इतिहास भी कम प्राचीन नहीं है ।कोटला रियासत रॉयल जादौन राजपूतों की बहुत पुरानी रियासत है।भगवान्  श्री कृष्ण के 88 पीढ़ी बाद बिजयपाल  मथुरा के राजा हुये जो सन् 1018 में महमूद गजनवी के  द्वारा महावन के उनके भाई बंध राजा कुलचंदके पराजय होने व् महमूद गजनी के द्वारा मथुरा लुटे जाने के बाद वे संन 1023 के लगभग मथुरा से विस्थापित होकर पूर्वी राजस्थान के पहाड़ी क्षेत्र में बस गये थे जिन्होंने एक किले का निर्माण कराया और सन् 1040 या 1043 में विजयमन्दिरगढ़ को अपनी राजधानी बनाया था जो किला बाद में बयाना के नाम से मशहूर हुआ जो आज भी विद्यमान है और नगर का नाम भी बयाना ह...