कोटिला जादौन राजपूतों की रियासत का ऐतिहासिक शोध
कोटिला जादौन राजपूतों की रियासत का ऐतिहासिक शोध
कोटला रियासत का इतिहास भी कम प्राचीन नहीं है ।कोटला रियासत रॉयल जादौन राजपूतों की बहुत पुरानी रियासत है।भगवान् श्री कृष्ण के 88 पीढ़ी बाद बिजयपाल मथुरा के राजा हुये जो सन् 1018 में महमूद गजनवी के द्वारा महावन के उनके भाई बंध राजा कुलचंदके पराजय होने व् महमूद गजनी के द्वारा मथुरा लुटे जाने के बाद वे संन 1023 के लगभग मथुरा से विस्थापित होकर पूर्वी राजस्थान के पहाड़ी क्षेत्र में बस गये थे जिन्होंने एक किले का निर्माण कराया और सन् 1040 या 1043 में विजयमन्दिरगढ़ को अपनी राजधानी बनाया था जो किला बाद में बयाना के नाम से मशहूर हुआ जो आज भी विद्यमान है और नगर का नाम भी बयाना हो गया ।राजा बिजयपाल की सन् 1093 के लगभग गजनी के मुसलमानों से युद्ध करते हुये मृत्यु हो गयी थी ।इनके 18 पुत्र थे जिनमें से कुछ तो युद्ध में मारे गये कुछ अन्य स्थानों पर माइग्रेट कर गये ।राजा बिजयपाल के वंशज सोनपाल जी अपने कुछ भाई बंधों के साथ बिजयपाल जी की अस्थियां लेकर गंगा जी सोरों पर तिलांजलि देने आये थे।साथ में कुछ फ़ौज भी लाये थे ।रास्ते में जलेसर आकर रात को विश्राम किया ।रात में उनके कुछ घोड़े सोनगिर के चाँद खां मेवाती ने चुरा लिये।उस समय तो वे गंगा जी चले गये और दाहसंस्कार करके पुनः जलेसर आये और मेवातीओं से भयंकर युद्ध हुआ जिसमे लगभग 1600 मेवाती मारे गये थे ।जलेसरमें मेवातिओं को मार कर उस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था औरराजा सोनपाल जी ने ही सर्व प्रथम भारत की ध्वजा जलेसर क्षेत्र में फहराई और सोना गांव बसाया। जिनके वंशज सोनगिरिया भरद्ववाज उर्फ़ भिर्गुदे जादोन कहलाये । इनही राजा सोनपाल के पुत्र राजा जैनपाल जी हुए जिनकी माता पुंडीर राजपूत थी जो हरिद्वार के राजा की पुत्री थी ।जैनपाल जी ने जैनपुरा और ऊमरगढ के जैन खां और उमर खां मेवातीओं को मार कर दोनों जगहों की जमींदारी प्राप्त करली ।यह घटना संवत 1173 के लगभग की है ।उनकी बड़ी रानी राठौड़ जो राजा रामपुर एटा की पुत्री थी उनसे बीझन् पाल और पूरन पाल दो पुत्र हुए ।बीझन् पाल को 12 गांव नारखी राज्य में दिए और पूरन पाल को 12 गांव मिलाकर ओखरा राज्य दिया । दूसरी रानी गहलोतजी जो सहपऊ ,सादाबाद के पास के राजा की पुत्री थी उनके भी दो पुत्र सोंगीपाल और कारन पाल पैदा हुये जिनको 12 -12 गांव मिला कर ऊमरगढ और जोंधरी राज्य दिए ।तीसरी। रानी कठेरिया राजपूत थी जिनके लोचन पाल हुये जिनको 12 गांव मिला कर नीमखैरा का राज्य दिया ।ये घटना संवत 1225 की है ।बीझन् पाल की 12 वीं या 13 वीं पीढ़ी में राजा तुलसीदास हुये थे जो सम्राट अकबर के दरवारी थे ।जो 300 सैनिको के कमांडर थे उनका इतिहास अकबरनामा और ऐन आई -अकबरी दोनों में दिया हुआ है ।अकबर के समय में ही उनको कोटला -नारखी की रियासत प्रदान की गई ।यह भी कहा जाता है कि शाहजहाँ के पुत्रों में जब राजसिंहासन के लिए युद्ध हो रहा था तब मेबातियों ने कोटला पर अधिकार कर लिया था ।
राजा तुलसीदास की 6 वीं पीढ़ी में राजा हरिकिशन दास हुये उन्होंने कोटला ,फारिहा ,लतीपुर को मेवातीओं से मुक्त करा लिया ।यह घटना औरंगजेव काल की है ।इनको औरंगजेब ने बहादुर के टाइटल से नवाजा था ।इन्होंने पास के काफी गांवों को अपने क्षेत्र में लेलिया था । लेकिन सन 1784 ई0 मेंजब सिंधिया ने फीरोजाबाद पर चढाई की तो कोटला के राजा हरिकिशन दास के पुत्र पोहप सिंह सिंधिया के विरुद्ध लड़ते हुए मारे गये थे और इनका अधिकांश राज्य सिन्धिया के कब्जे में आगया था ।सन् 1804 में जब जनरल लार्ड लेक ने दौलतराव सिंधिया के विरुद्ध युद्ध प्रारम्भ किया तो राजा पोहप सिंह के पुत्र राजा ईश्वरी सिंह ने मराठों के विरुद्ध जनरल लॉर्ड लेक की सहायता की थी जिसके फलस्वरूप उन्होंने 42गांवों की इस्तमरारी पटटे पर प्राप्त कर ली ।लेकिन सन् 1810 के आस -पास मालगुजारी अदा न कर सकने के कारण कंपनी सरकार ने कोटला राज्य को इस्तमरारी पटटे पर अवागढ़ के ठाकुर हीरा सिंह को दे दिया गया ।सन् 1831 में ईश्वरी सिंह के पुत्र राजा सुमेर सिंह ने मालगुजारी का रुपया अदा कर दिया और कोटला रियासत पुनः उनको वापस मिल गयी ।
राजा सुमेर सिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र राजा चतुर्भुज सिंह रियासत के मालिक हुये ।उनकी पत्नी का नाम महताव कँवर था ।राजा चतुर्भुज सिंह का देहांत सन् 1845 में हुआ ।उस समय से रानी महताब कँवर राज्य का काम -काज सम्हालने लगी ।राजा चतुर्भुज सिंह की एक मात्र संतान लली जस कँवर थी जिनका विवाह इटावा जिले में स्थित मसौली रियासत के राज पुत्र लाल लोकपाल सिंह से हुआ था ।रानी महताव कँवर ने अपनी रियासत के 12 गांव अपनी पुत्री के दहेज़ में दिए थे ।
रानी महताव कँवर बहुत तेजस्वी और दबंग महिला थी ।प्रायः तीर्थयात्रा पर जाती रहती थी ।पुत्र न होने के कारण रियासत के भविष्य के बारे में चिंतित रहती थी ।उन्होंने अपने परिवार के लाल धराधर सिंह नामक एक लड़के को गोद लिया था किन्तु यह लड़का कुछ दिन बाद स्वर्गवासी हो गया ।इससे रानी साहिबा और भी दुखी हो गयी ।इसके बाद भी उन्होंने अपने ही परिवार के किसी और लड़के को गोद लेने का प्रयास किया किन्तु धराधर सिंह की मृत्यु से भयभीत परिवार के किसी व्यक्ति ने अपना पुत्र देना स्वीकार नही किया ।तब रानी साहिब ने अपने ही खानदान के जातऊ के जमींदार ठाकुर जालिम सिंह जी के पुत्र उमराव सिंह को अपने पास रखने लगी ।उमराव सिंह जी उन्ही के पालन पोषण में बड़े हुये थे ।लेकिन कुछ समय बाद रियासत के मालिकाना हक़ को लेकर रानी साहिबा और उमराव सिंह में कटुता उतपन्न हो गयी ।रानी साहिबा को यह संदेह हो गया था कि उमराव सिंह उनकी हत्या करवा कर रियासत पर दखल कर लेना चाहते है ।आगरा के कलेक्टर को रानी महताव कँवर ने कोटला बुलाया और उमराव सिंह से रक्षा करने के लिए कहा ।कलेक्टर महोदय ने उमरावसिंह के कोटला में प्रवेश पर पावंदी लगा दी ।
ठाकुर उमराव सिंह ने इसके बाद अदालत की शरण ली और इस आधार पर रानी साहिबा के विरुद्ध दावा दायर कर दिया कि रानी ने उनको अपना दत्तक पुत्र बनाया था ।रानी साहिबा ने इंकार कर दिया और कहा कि विधवा को न गोद लेने का अधिकार है और न मैने उमराव सिंह कोकभी दत्तक पुत्र के रूप में ग्रहण किया है ।मैने धराधर सिंह को गोद लिया था जिनकी मृत्यु हो चुकी है ।दत्तक पुत्र ग्रहण करनेकी रस्म भी नही हुई ।इसके उत्तर में ठाकुर उमराव सिंह अदालत में यह कह गये कि यदि जिया लली जस कँवर .,रानी साहिबा की पुत्री न्यायाधीश के समक्ष यह कह दे कि रानी ने मुझे दत्तक पुत्र के रूप में ग्रहण नही किया था तो मैं अपना दावा वापस ले लूंगा और रियासत से कोई सम्बन्ध नहीं रखूँगा ।अब लली जस कँवर पर दोनों ओर से दवाव पड़ने लगा ।जसकँवर कोई ब्यान देने को तैयार न थी ।अंत में अपनी मां के कहने पर उन्होंने उमराव सिंह के विरुद्ध बयान दे दिया ।इस पर उमराव सिंह जी का दावा ख़ारिज कर दिया गया ।
दैवयोग से लली जस कँवर के बयान देने के 4 या 6 दिन बाद ही उनके पति लाल लोकपाल सिंह की मृत्यु हो गई ।इससे लली जस कँवर के ह्र्दय में बात बैठ गई कि उनके द्वारा झूठा बयांन देने के कारन ही उनको वैधव्य की यातना भोगनी पडी है ।इसके बाद लली जस कँवर ने अपनी मां रानी महताव कँवर से अपने सम्बन्ध तोड़ लिए और उमराव सिंह जी को जयपुर से बुलबाया ।तब जस कँवर के कहने पर रानी महताब कँवर ने 12 गांव ठाकुर उमराव सिंह के नाम कर दिए ।सन् 1857 में रानी महताब कँवर को 4 गांव और दे दिए थे ।
रानी महताव कँवर बहुत ठाठ ठसके की रौब दार महिला थीं ।उस अंग्रेजी ज़माने में भी रानी साहिबा किसी सरकारी अधिकारी से मिलने उसके बंगले पर नहीं जाती थी बल्कि उसे अपने निवास पर ही बुलाती थी ।एक बार अयोध्या गई तो देखा कि सरयू नदी के तट पर कुछ लोग मछली पकड़ रहे थे ।रानी साहिबा ने तुरंत वहां के कलक्टर को तलब किया और उसे बताया कि अयोध्या जैसे पावन पवित्र तीर्थ में यह कृत्य हिन्दूओं की भावना को ठेस पहुंचाता है ।उस दिन से अयोध्या में सरयू नदी के तट पर मछली पकड़ना वर्जित कर दिया गया था ।
रानी साहिबा को प्रायः आगरा जाना पड़ता था ।इस लिए वहां ठहरने के लिए नीलकंठ महादेव के मंदिर का निर्माण कराया जो आज भी वह मंदिर उनकी स्म्रति की रक्षा कर रहा है ।फीरोजाबाद स्टेशन के पास भी उनके ठहरने के लिए एक गृह बनवाया गया था उसे तब कोटला राज्य का डाक बंगला कहा जाता था ।
फीरोजाबाद स्टेशन के कर्मचारी को ,खलासी से लेकर स्टेशन मास्टर तक को ,कोटला राज्य की ओर से उसे मिलने वाले एक मास के वेतन के बराबर धन प्रत्येक वर्ष दिया जाता था ।ऐसी प्रकार तहसील के प्रत्येक कर्मचारी को भी एक माह का वेतन कोटला रियासत बख्शीस के तौर पर देती थी ।यह धन दो किस्तों में मिलता था ।खरीफ की फसल पर 15 दिन का वेतन और रबी की फसल पर 15 दिन का वेतन ।ऐसी रानी महताब कँवर को लोकप्रिय होना ही था ।रानी महताब कँवर की मृत्यु सन् 1887 में हुई ।इसके बाद उनकी पुत्री जस कँवर का कोटला रियासत पर अधिकार होगया ।जस कँवर के भी कोई पुत्र नही था ।अतः उन्होंने अपनी ससुराल की रियासत अपने पति के भतीजे लाल तेज पाल सिंह को दे दी और 31 मई सन् 1905 ई0 को ठाकुर उमराव सिंह के बड़े पुत्र कुशलपाल सिंह जी को कोटला की रियासत प्रदान कर दी ।
रानी जस कँवर ने राजा कुशलपाल सिंह के पक्ष में जो हिबैनामा लिखा था उसके निम्नांकित शब्द कोटला राज परिवार के इतिहास पर भी प्रकाश डालते है ।रानी जस कँवर का बयान है -----
*मेरे बाप का खानदान ठाकुर जादों का वह खानदान है जो महाराजा करौली का है ।पहले जमाने में मेरे पुरखा लोग करौली में व् करौली के आसपास में बसते थे ।वहां से उठकर अक्सर लोग उस खानदानके दूसरे मुल्कों में आ बसे ।ऐसे बसने बालों का बड़ा हिस्सा आगरा के सूबे में आकर बसा है ।इस खानदान का असली घर करौली है ।*
यह हिबैनाम 13 हजार रूपये मूल्य के स्टाम्प पर लिखा गया था तथा कोटला के राज परिवार के सभी सदस्य तथा संबंधी इस अवसर पर एकत्रित हुये थे ।उनसे भी ठाकुर उमराव सिंह ने दस्तबरदारी लिखबा ली थी ।रानी जस कँवर की मृत्यु सन् 1909 में हुई ।इसके बाद कोटला रियासत पर ठाकुर उमराव सिंह जी और उनके बड़े बेटे राजा कुशलपाल सिंह जी का अधिकार होगया ।
कोटिला का किला
कोटिला का किला किसी समय अत्यंत महत्वपूर्ण रहा होगा ।सन् 1884 ई0 के गजेटियर में इस किले की रूप रेखा इस प्रकार दी गई है ।खाई 20 फ़ीट चौड़ी तथा 14 फ़ीट गहरी ,ऊंचाई 40 फ़ीट ।भूमि की परिधि 284 फ़ीट उत्तर ,220 फ़ीट दक्षिण तथा 320 फ़ीट पूर्व एवं 480 फ़ीट पश्चिम ।अब यह किला जीर्ण शीर्ण अवस्था में देखने में लगता है ।अभी कुछ ढांचा तो विद्यमान है शायद इसमे कोई सरकारी स्कूल चल रहा है ।यहाँ इसका उपरोक्त विवरण इसी उद्देश्य से दिया गया है कि भावी पीढियाँ इसके वास्तविक स्वरूप की कल्पना कर सकें।किले को कब और किसने बनवाया इसका कोई विवरण नही मिलपाया है ।
अपने समय के बहुमुखी -प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व जातऊ /कोटला के ठाकुर उमराव सिंह ----जाटउ के ठाकुर जालिम सिंह जी के 3 पुत्र थे जिनमे सबसे बड़े ठाकुर करन सिंह ,मध्यम ठाकुर उमराव सिंह तथा सबसे छोटे ठाकुर नौ निहाल सिंह ।ठाकुर उमराव सिंह महान कूटनीतिज्ञ भी थे ।कहा जाता है कि अवागढ़ के राजा निहाल सिंह जी की मृत्यु के बाद बलवंत सिंह जी का अवागढ़ पर स्वामित्व ठाकुर उमराव सिंह की ही सूझ बुझ का परिणाम था ।बलवंत राजपूत कालेज की स्थापना में भी ठाकुर उमराव सिंह की प्रेरणा बताई जाती है ।समय की आवश्यकता को अनुभव करके ठाकुर उमराव सिंह ने उस ज़माने में अंग्रेजी का ज्ञान अर्जित किया और अपनी इसी क्षमता के आधार पर वे जयपुर रियासत के दीवान हो गये थे ।आगे चल कर वे अपने धेबते ईसरदा ठिकाने के मोर मुकुट सिंह को जयपुर की गद्दी पर बैठाने में सफल हुये जो राजा मानसिंह दुतीय के नाम से जाने गये ।
Relation of Jadaun Rajput of Jatau /Kotila with Rajawat Rajput of Isarda Thikana and Jaipur State .
जातऊ /कोटला रियासत से पूर्व ऊमरगढ जादौन राजपरिवार का सवाईमाधोपुर के ईसरदा ठिकाने में सम्बन्ध था ।ऊमरगढ के जमींदार ठाकुर बुद्धपाल सिंह जी की पुत्री एवं राव नेत्रपाल सिंह जी की बहिन विट्टा जी का विवाह सन्1875ई0 में ईसरदा ठिकाने के सामंत ठाकुर रघुनाथ सिंह के पुत्र कायम सिंह के साथ हुआ था जोबाद में सवाई माधोसिंह दुतीय के नाम से सन 1880 में जयपुर के महाराजा हुये और ऊमरगढ की बिट्टा जी जयपुर की महारानी हुई।एक बार महाराजा श्रीमान सवाई माधोसिंह दुतीय जब महारानी जादौन जी बिट्टा जी के साथ ऊमरगढ पधारे थे तो उनका ठाकुर उमराव सिंह जी ने आगरा में बहुत अथितीय सत्कार किया जिससे महाराजा व् महारानी दोनों ही बहुत प्रभावित हुये ।वेसे भी ऊमरगढ और जातऊ /कोटला ,ओखरा ,नारखी और नीमखेड़ा लगभग उस ज़माने के 60 गांव भाई बंधों में आते थे जो राजा सोनपाल के वंशज थे ।
महाराजा सवाई माधोसिंह दुतीय और महारानी जादौन जी ने ठाकुर उमराव सिंह को जयपुर राज्य की सेवा सम्पादन करने पर बाध्य किया था ।वे अंग्रेजी के उस समय में अच्छे ज्ञाता थे ।तब आदेशानुसार उनको मइसमः मोहत्समः आलियः कौंसिल सीग्रे कलक्टरी के मेंम्बरी पद पर सुशोभित किया गया था ।जब महाराजा साहिब इंग्लैंड गये थे उस समय राज्य के सर्वे सर्वा कार्य भार को श्रीमती महारानी जादौन जी के मतानुसार संपादन करने का सौभाग्य ठाकुर उमराव सिंह जी को प्रदान होगया था और उक्त समय के कार्य को उन्होंने परम प्रशंसा जनक सम्पादन किया ।इसके बाद ठाकुर उमराव सिंह के बड़े भाई ठाकुर करनसिंह जी की पुत्री सगुन कँवर का विवाह सम्बन्ध महारानी जादौन जी बिट्टा जी के अनुरोध पर ईसरदा ठिकाने के सामंत प्रताप सिंह के पुत्र सवाई सिंह जी के साथ हुआ जिनके दो पुत्र बहादुर सिंह और मोर मुकुट सिंह हुये ।जिलाय ठाकुर साहिब और अन्य सामंतों के विरोध के बावजूद भी महारानी जादौन जी के आग्रह के कारण महाराजा सवाई माधोसिंह जी ने 24मार्च 1921 को ईसरदा के मोरमुकुट सिंह जी जो ठाकुर उमराव सिंह के धेवते थे को गोद लिया गया था जिनका नाम बदल कर सवाई मान सिंह दुतीय किया गया जो 7सितम्बर 1922 को जयपुर के महाराजा हुये ।
राजपूतों के शैक्षणिक विकास और सामाजिक उत्थान में ठाकुर उमराव सिंह जी का योगदान -----ठाकुर उमराव सिंह उस ज़माने के पढे लिखे व्यक्ति थे उनको अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान था ।वे शिक्षा के महत्व को भली भांति समझते थे ।राजपूतों के शैक्षणिक विकास और सामाजिक उत्थान के लिए उन्होंने
सन् 1897 में देश के इतिहास में पहली बार अवागढ़ नरेश राजा बलवंत सिंह के कोआर्डिनेशन में कोटिला के ठाकुर उमराव सिंह जी के सहयोग से राजपूतों के उत्थान के लिए एक संगठन "अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा का गठन किया गया जिसका19 अक्टूबर 1897 ई0 में पंजीकरण कराया गया जिसके संस्थापक राजा साहिब अवागढ़ बलवंत सिंह जी बनाये गए । ठाकुर उमराव सिंह राजपूत विद्यालय ,छात्रालय और राजपूत समाचार पत्र के जन्मदाता थे ।राजपूत विद्यार्थियों के निरीक्षक होने के अतरिक्त अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के वे परम प्रभाव शाली नेता थे ।सयुक्त प्रांतीय क्षत्रिय मंडल के ही नही वरन भारतवर्ष भर के क्षत्रिय दल को जागृत अवस्था में लाकर खड़ा कर दिया था ।ठाकुर उमराव सिंह कोटिला का राजा बलवंत सिंह महाविद्यालय फॉर्मेली बलवंत राजपूत कॉलेज आगरा के स्थापना और विकास में भी महत्वपूरण योगदान राजा साहिब अवागढ़ के साथ रहा जो बहुत ही सराहनीय था।बाद में यह महसूश किया गया कि इस साधारण होस्टल से काम नही चलेगा । राजपूत जाति के बच्चों को आगे बढ़ने के लिए आधुनिक अंग्रेजी प्रणाली की शिक्षा आवश्यक है।इसी प्रयोजन की पूर्ती आगे चल कर अवागढ़ नरेश राजा बलवंत सिह जी ने पूर्ण की।उन महान विभूतियों के उपकार से आज का क्षत्रिय /राजपूत समाज सदैव आभारी व् कृतज्ञ रहेगा मैं ऐसी महान आत्मा को सत् सत् नमन करता हूँ जय हिन्द।जय यदुवंश ।जय राजपुताना ।
References 1-Akbarnama
2-Ain -i -Akbari
3-Second Supplement to Who,sWho in India brought up to 1914 .
4-Social and political history of Chauhan Vansh by Ratan Lal Bansal of Firojabad U P .
5-Gazetter of Agra 1886 .
6-Gazetter of Mainpuri and Etah districts of United Provin Agra.
7-Shreeman Sujas Chandravilas book of jaipur state .
लेखक आभारी है डा0 सागर पाल सिंह जी ऊमरगढ परिवार का जिनकी मदद से ये लेख काफी शोध करने के बाद पूर्ण हुआ ।आशा करता हूँ कि वे इसी तरह लेखन में अपना योगदान देते रहेंगे जिससे कि हमारी युवा पीढ़ी अपना कुछ इतिहास तो जानने का प्रयास इस लेख के माध्यम से कर सके ।लेख को लिखने में कुछ गलती भी होगयी हो तो उसके लिए लेखक क्षमाप्रार्थी भी है ।
लेखक -डा0 धीरेन्द्र सिंह जादौन ,गांव -लढोता ,सासनी ,जिला -हाथरस ,उत्तरप्रदेश ।
Sammaniy Dr.sahab se nivedan h ki Dholpur didst.k Rajakhera k Jadon bans or unki esthti par prakas dalane ki kripa karen. Rajakhera k aspas jadono k lagbhag 35-40 gang basehuye h
ReplyDeleteJadoun vansh ka vistar lagbhag pure Bharat mein paya jata hai fir bhi Jadon ke bare mein ab your Khoj Ki avashyakta hai salmoni doctor sahab is karya ko daku anjaam de rahe
ReplyDeleteGOOD INFORMATION , मेव जाती में 12 पाल और 52 गोत्र हे जिनमे से 5 पाल ( छीरकलौत , पूंगलौत ,डेमरौत , दुलौत ,नयाई ) और 19 गोत्र जादून वंश और युधुवंशी क्षत्रिय में से राजा तहनपाल के वंशज हैं , इनमे से आजकल हरयाणा के ३ मुस्लिम विधायकों में से दो MLA छिरकलौत पाल से ही हैं इसके अलावा हथीन विधानसभा से पिछले विधायक और संसदीय सचिव जलेब खान भी इसी छिरकलौत मेव जादून पाल से ही थे , खानजादे मेव जाति के जादून वंश के 19 गोत्र में से ही एक गोत्र हे , जिन्होने अलवर को अपनी राजधानी बनाया था राजा हसन खान मेवाती के पिता अलावल खान के नाम पर ही अलवर का नाम पड़ा , इसके अलावा राजा हसन खान मेवाती को बाबर ने अपने साथ मिलकर लड़ने का न्यौता दिया था राणा साँगा के खिलाफ मगर हसन खान ने मजहब की बजाय भारतीयता और खून को महत्व दिया और खानवा के मैदान में अपने 12000 घुड़सवार सैनिकों के साथ बाबर के खिलाफ राणा साँगा के नेत्तृव में भाईचारा निभाते हुए लड़ते हुए शहीद हो गया ( यदुवंशी क्षत्रिय जफ़र खान मेवाती )
ReplyDeleteWhat's about th.nw nihal singh ji I ..from ftefura Latipur I'm 10th pidi for nw nihal singh ji
ReplyDeleteThere's some factual mistakes in this blog.
ReplyDeleteKindly discuss with me.
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