विस्मृत चन्द्रवंशीय यदुवंशी क्षत्रियों के शौर्यता वीरता , हिंदुत्व-प्रेम एवं राष्ट्रवादिता के प्रतीक विजयनगर नगर साम्राज्य की गौरव -गाथा--

विस्मृत चन्द्रवंशीय यदुवंशी क्षत्रियों के शौर्यता वीरता , हिंदुत्व-प्रेम एवं राष्ट्रवादिता के प्रतीक  विजयनगर नगर साम्राज्य की गौरव -गाथा--

चौदहवी  शताब्दी  के मध्य में तुंगभद्रा से लेकर रामेश्वर तक यदुवंश की शाखा होयसल वंश की तूती बोल रही थी ।सम्राट वीर बल्लाल तृतीय ने समस्त दक्षिण पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था ।केवल नाम के लिए मुसलमान जनता मालाबार (तामिल देश ) में निवास करती थी।इब्नबतूता ने सन 1342 ई0 में बल्लाल तृतीय की शक्ति को देखा था , परन्तु इस प्रतापी राजा के मदुरा युद्ध में विजयी होने पर भी धोखे से मुसलमानी सेना ने इसे पकड़ लिया तथा मार डाला ।वीर बल्लाल के राज्य में हरिहर तथा बुक्क नामक दो भाई थे , जो होयसल वंश के राज्य की रक्षा करते रहे तथा एक प्रान्त के स्वामी ( गवर्नर ) थे।सन 1333ई0 में वीर बल्लाल शासन करता रहा।।उसके बाद उसका पुत्र वल्लप्पा उत्तराधिकारी हुआ।इसको बल्लाल विरूपाक्ष भी कहते है।हरिहर वीर बल्लाल तृतीय का सन 1333ई0 में प्रधान मंत्री था और "महामंडलेश्वर "की पदवी से विभूषित था ।उसके लेखों से ज्ञात होता है कि बल्लाल तृतीय का पुत्र विरुपाक्ष सन 1336 ई0 में हरिहर के महामंडलेश्वर पद पर विराजमान था।हरिहर ने सम्राट की महान पदवी धारण की और विजय की खुशी में उत्सव मनाया और भूमि दान में दी।इस प्रकार सन 1336 ई0 में विजयनगर राज्य की स्थापना होयसल वंश के स्थान पर हुई।हिन्दू जनता ने इसका बिल्कुल भी विरोध नहीं किया ।होयसल वंश के प्रात-अधिपति हरिहर ने नए राज्य की स्थापना की ।वीर बल्लाल के पुत्र को शासन की बागडोर न देकर स्वयं अपने हाथ में हरिहर ने ले लिया।उस समय इसकी ही आवश्यकता भी थी।बल्लाल के पुत्र विरुपाक्ष से हरिहर ने अपनी पुत्री का विवाह किया और अपनी छत्रछाया में उसे महामंडलेश्वर बनाया ।

संगम एवं उसका वंश---

संगम एक महान गुणवान व्यक्ति था जिसने अपने गुणों से यदुवंश को सुशोभित किया।यह एक प्रतापी शासक ज्ञात होता है।सम्भवतः वह होयसलों का अधीनस्थ एक बड़ा सामन्त था।तत्कालीन मुसलमानों को उसने युद्ध में परास्त किया ।
संगम का मूल स्थान मैसूर के पश्चिमी भाग में "कलास "नामक स्थान मालूम पड़ता है ।संगम के 5 पुत्र , हरिहर , कम्पन ,बुक्क ,मरप्पा ,तथा  मुद्दप्पा ।हरिहर सबसे बड़ा तथा मुदप्पा सबसे छोटा था।संगम के समकालीन होयसल वंश का प्रतापी शासक बल्लाल तृतीय कर्नाटक देश में शासन करता था।उत्तर के मुसलमानी आक्रमणों की आशंका से वीर बल्लाल ने अपने जाति बन्धुओं की एक महती सभा की ।इसी सभा में संगम के पुत्रों को विधर्मियों के आक्रमण को रोकने का कठिन कार्य सौंपा गया।

हरिहर प्रथम --

संगम का सबसे ज्येष्ठ पुत्र हरिहर ही विजयनगर साम्राज्य का संस्थापक था।प्रारम्भिक जीवन में हरिहर 14 वीं सदी के पूर्वार्द्ध में होयसल वंश के प्रतापी शासक वीर बल्लाल तृतीय के यहाँ सामन्त रूप में कार्य करता रहा।हरिहर को महामंडलेश्वर बनाकर पठानों के आक्रमण से राज्य के उत्तरी भाग की रक्षा करने का कार्य सौंपा।बल्लाल तृतीय के पुत्र एवं होयसल वंश के अंतिम शासक विरुपाक्ष के समय में हरिहर ने होयसल शासन का अंत करके विजयनगर की स्थापना की।वह स्वतंत्र शासक होने पर भी अपने को "महामंडलेश्वर तथा होयसल भूमि का राजा कहता रहा ।
हरिहर का भाई कम्पण  दक्षिण- पूर्व का अधिपति था बुक्क द्वारसमुद्र में शासन करता था।मरप्पा प्राचीन बनवासी राज्य में चन्द्रगुंटी स्थान से राज्य प्रबन्ध करता था।उसने वनवासी लोगों को परास्त कर विजयनगर की प्रभुता बढ़ाई ।इस अवस्था में हरिहर अपने भाइयों की सहायता से सन 1346 ई0 से 1355 ई0 तक शासन करता रहा।हरिहर ने तुगभद्रा नदी के  दाहिने किनारे पर एक नया नगर बसाया जिसका नाम विजयनगर पड़ा यही उसकी राजधानी रही। हरिहर उस नगर में रहते हुए मुसलमानी आक्रमणों को रोकने का प्रयत्न करता रहा।विजयनगर की स्थापना से होयसल के आधीन शासकों ने स्वतंत्र होने का विचार किया । कदम्ब ,कोंकण ,तेलगु तथा मदुरा के मुसलमान शासक भी उस विद्रोह में शामिल थे।तत्कालीन दिल्ली के तुग़लक शासक ने भी हरिहर को परास्त करने का प्रयास किया ।परन्तु  यशस्वी वीर हरिहर ने सभी विद्रोहियों तथा आक्रमणों को दबा दिया और अपने राज्य में सुख व शांति की वृद्धि की।हरिहर प्रथम सन 1355 ई0 में इस संसार से चल बसा।

बुक्क- 

हरिहर प्रथम की मृत्यु के बाद बुक्क सिंहासन पर बैठा ।यह भी अपने आप को महामंडलेश्वर ही लिखता रहा। बुक्क ने आन्ध्र ,अंग और कलिंग प्रान्तों पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया।विजयी बुक्क ने शत्रुओं को हटा कर धर्मिक मार्ग पर चल कर हिंदुओं की रक्षा की।बुक्क का पर्याप्त समय नए स्थापित बहमनी राज्य के प्रसिद्ध शासक मुहम्मद शाह (सन 1358-1377 ई0 ) से युद्ध में व्यतीत हुआ।काफी उथल -पुथल तथा जन-संहार के बाद दोनोनशासकों में सुलह हो गई।शांति स्थापित हो जाने पर राजा बुक्क ने राज्य -प्रबन्ध आदर्श मार्ग पर व्यवस्थित किया।अपने मंत्रियों की सहायता से हिन्दू-धर्म का पुनरुद्धार किया।इस आदर्श मार्ग पर शासन कर बुक्क ने अपने साम्राज्य का विस्तार तुंगभद्रा से मदुरा तक कर दिया।बुक्क ने प्रधान प्रान्तों के महामंडलेश्वर के पद पर अपने पुत्रों अथवा कुटुम्बियों को नियुक्त किया था।हरिहर द्वितीय युवराज होने के कारण पिता बुक्क के साथ रहता था ।कुमार कम्प को सुदूर दक्षिण का प्रान्त -पांड्य देश दिया गया , भास्कर को उदयगिरि का भाग सौंपा गया और पूर्वी भाग का प्रबन्ध कम्पराज प्रथम के पुत्र सगम द्वितीय को दिया गया था।विजयनगर का समस्त प्रबन्ध करने के बाद बुक्क हिन्दुधर्म को मजबूत बनाने तथा संस्कृति की उन्नति में सपना समय व्यतीत करता था।बुक्क ने दक्षिण भारत से यवनों को निकाल भगाया ।सन 1377 में बुक्क का देहांत हो गया और उसका पुत्र हरिहर द्वितीय उसका उत्तराधिकारी हुआ।

हरिहर द्वितीय--

बुक्क के बाद हरिहर द्वितीय विजयनगर का शासक हुआ जिसने सन 1377 से 1408 ई0 तक शासन किया।इसके शासन काल में विजयनगर साम्राज्य से मुसलमानों के बीच कड़ा संघर्ष होता रहा।सन 1398 ई0 में हरिहर द्वितीय ने कृष्णा एवं तुंगभद्रा के बीच स्थित रायचूर दोआब को प्राप्त करने के लिए बहमनी राज्य पर आक्रमण कर दिया ।परन्तु फिरोजशाह वहनी ने उसका सामना कर उसे पराजित किया।फिर भी हरिहर ने साम्राज्य को विस्तृत तथा सुशासित करके भारतीय संस्कृति की रक्षा में अपना जीवन व्यतीत किया।हरिहर द्वितीय को वैदिक मार्ग प्रवर्तक लिखा है।वह भी अपने पिता बुक्क की तरह सदृश धर्म का पालक था।उसने दक्षिण में वैदिक धर्म के प्रसार के लिए बहुत समय व्यतीत किया।सारे समाज में वर्णाश्रम धर्म को प्रतिष्ठापित किया।प्रजा उसके समय में सतयुग की बात सोचने लगी।हरिहर अपने समय का महादानी राजा था।वह षोडश महादान करता था।सन 1321 ई0 में उसने केशव मन्दिर के एक भाग का पुनः निर्माण किया तथा 1291 ई0 में होयसलों के बनाये हुए विष्णु मन्दिरों का जीर्णोद्धार किया।हरिहर ने जैन मंदिरों के लिए भी द्रव्य दान दिया ।सन 1404 ई0 में हरिहर द्वितीय की मृत्यु हो गयी।

देवराय प्रथम --

सन 1404 ई0 के बाद हरिहर द्वितीय का ज्येष्ठ पुत्र देवराय विजयनगर राज्य का उत्तराधिकारी हुआ ।हरिहर द्वितीय के अन्य दो पुत्र विरुपाक्ष प्रथम तथा बुक्क द्वितीय थे जो अन्य प्रांतों के अधिपति थे ।अन्य राजाओं के समान देवराय प्रथम को भी बहमनी के नबाव से युद्ध करना पड़ा।यवन सेना ने विजयनगर की राजधानी पर किया तथा देवराय की हार हुई तथा उसे सन्धि करनी पड़ी ।इस संधि में विजयनगर राज्य की बहुत हानि हुई।इसके लिए स्वयं शासक ही जिम्मेदार था।सन 1422 ई0 में देवराय की मृत्यु हो गयी और युवराज विजय ने राज्यभार ग्रहण किया ।विजयराय ने 6 वर्ष तक राज्य किया।विजय ने महाराजाधिराज की पदवी प्राप्त की थी।विजय के शासनकाल में बहमनी सेनापति अहमद खां ने पुनः विजयनगर पर आक्रमण किया ।विजय ने अपने पिता के बाद बहमनी राज्य को कर देना बंद कर दिया था ,अतः सन 1423ई0 में अहमदखां ने चढ़ाई करदी।विजय को भी सन्धि करनी पड़ी तथा काफी धन देना पड़ा।विजय का शासन भी राज्य के लिए दुःख का समय रहा।

देवराय द्वितीय --

विजय के बाद उसके पुत्र देवराय द्वितीय ने विजयनगर के शासन की बागडोर अपने हाथ में ली।यह सन 1424 ई0 में सिंहासन पर बैठा।इसको इम्मादी देवराय कहा गया है।देवराय द्वितीय का राज्य समस्त दक्षिण भारत में लंका के समीप तज विस्तृत था।उसके नायक पद पर उसका भाई विराजमान था।देवराय द्वितीय एक आदर्श शासक था।उसके समय में सगम-वंश की उन्नति चरम सीमा पर पहुंच चुकी थी।देवराय ने सबसे बड़ा कार्य यह किया कि उसने अपनी सेना में 10 सहस्त्र तुर्की घुड़सवार नियुक्त किये ।विजय के परास्त होने के बाद देवराय को ज्ञात हुआ कि हिन्दू सेना में धनुर्धारियों की कमी है ।मुसलमान धनुषधारी अधिक दक्ष थे ,इसलिए युद्ध में उनको विजय श्री मिलती थी।इस कमी को पूरा करने के लिए देवराय ने अपनी सेना में 2 हजार मुसलमान धनुषधारी नियुक्त किये।इनका मुख्य कार्य हिन्दू सैनिकों को धनुष प्रक्षिण देना था।इस प्रकार देवराय ने विशाल सेना तैयार होने पर सन 1443ई0 में रायचूर दुआव पर आक्रमण किया।इसने प्रसिद्ध किले मुद्दगल ,रायचूर और वकापुर को जीत लिया ।विजयनगर सेना ने कृष्णा नदी तक अधिकार कर लिया और बीजापुर तथा सागर तक की भूमि को रौंद डाला।उस सेना में 10 हजार मुसलमान धनुषधारी ,60 हजार हिन्दू घुड़सवार(धनुष चलाने में प्रवीण ) तथा 3 लाख पैदल सिपाही सम्मलित थे ।विजयनगर की जीत के बाद मुसलमान सेना भी सक्रिय हो गयी।शत्रु की बलशाली सेना को देखकर देवराय ने बहमनी नबाव अलाउद्दीन अहमद से सन्धि करली ।इस युद्धमें विजयनगर की बहुत बड़ी हानि हुई तथा कई राजकुमारों की मृत्यु भी हुई।
देवराय द्वितीय के शासनकाल में दो विदेशी यात्रियों इटली के निवासी निकोलो तथा ईरानी दूत अब्दुल रज्जाक ने विजयनगर का भृमण किया तथा इन्होंने विजयनगर में रहकर देवराय के शासनकाल और विजयनगर शहर का सजीव वर्णन किया।निकोली के अनुसार भारत के समस्त राजाओं में देवराय शक्तिशाली नरेश था।उस समय शहर में किले , मन्दिर तथा सुन्दर महल बने हुए थे।राजमहल के चारों ओर 7 प्राचीरें बनी थी।साम्राज्य में बहु विवाह की प्रथा प्रचलित थी तथा सती की प्रथा से लोग परिचित थे।वर्ष में।तीन बड़े समारोह के साथ होली ,दीपावली तथा विजयादशमी का त्योहार प्रसिद्ध था और लोग सुंदर वस्त्र धारण करते तथा आमोद -प्रमोद में जीवन बिताया करते थे।निकोलो के 20 वर्ष बाद ईरानी दूत अब्दुल रज्जाक सन 1442ई0 में विजयनगर आया था।उसने राजा ,नगर एवं सामाजिक व्यवस्था का सुन्दर शब्दों में वर्णन किया है।देवराय जानवरों के शिकार का प्रेमी था।यह नरेश संगम -वंश का सबसे बड़ा प्रतापी नरेश था।राज्योंन्ति कि चरम सीमा तथा सुख व शांति की पराकाष्ठा इसी के समय में दिखलाई पडती है।ऐसे आदर्श मार्ग पर कार्य करते हुए देवराय ने 22 वर्ष तक शासन किया और सन 1446 ई0 में उसकी मृत्यु हो गई।इसके बाद संगम-वंश की अवन्ति प्रारम्भ हो गयी।

मल्लिकार्जुन --

देवराय द्वितीय के बाद उसके पुत्र मल्लिकार्जुन को राज्य भार संभालना पड़ा ।देवराय के दोनों पुत्र मल्लिकार्जुन और विरुपाक्ष के लेख क्रमशः 1452 ई0 तथा 1470ई0 के मिलते है।इन्होंने देवराय के बाद लगभग 25 वर्ष शासन किया।देवराय के बाद विजयनगर साम्राज्य को शक्तिहीन समझ कर चारों तरफ से शत्रुओं ने आक्रमण शुरू कर दिए थे।बहमनी नबाव एवं उड़ीसा के कपिलेश्वर नामक शासक विजयनगर के प्रधान शत्रु थे।
विजयनगर पर चारों तरफ से आक्रमण होने लगे ।मल्लिकार्जुन प्रायः सन 1446 ई0 तक शासन करता रहा परन्तु राज्य की नष्ट शक्ति को पुनः वापस नहीं ला सका।तैलिगाना , वारंगल ,राजमहेन्द्री तथा खानदेश पृथक साम्राज्य हो गए।उड़ीसा तथा गोंडवाना समीपवर्ती रियासतें उत्तपन्न हो गई।
विरुपाक्ष --
मल्लिकार्जुन के बाद सन 1467 ई0 में  विरुपाक्ष ने विजयनगर का शासन -प्रबन्ध किया।वह नाममात्र का राजा था।सन 1469 ई0 से 1481 ई0 तक लगातार शत्रुओं के आक्रमण होते रहे।इन घटनाओं से यही प्रकट होता है कि कोई भी प्रभावशाली राजा इस समय विजयनगर में नहीं था ।विजयनगर के राज्य प्रबन्ध का भार नृसिंहसालुव पर था।विरुपाक्ष के शासन का विरोध समस्त नायकों ने किया।कोई भी उसे नहीं चाहता था।सब नायकों ने महामंडलेश्वर की पदवी धारण की ।मोहम्मदशाह द्वितीय विजयनगर पर आक्रमण करता रहा और उसे सभी युद्धों में सफलता मिलती रही।संगम वंश का अंतिम शासक विरुपाक्ष सन 1486 ई0 तक किसी प्रकार शासन करता रहा ।देवराय द्वितीय के बाद विजयनगर के अंतिम दो शासकों का समय कष्ट के साथ व्यतीत हुआ।इन्ही के समय (सन 1449 से 1486 ई0 तक ) संगम -वंश का अन्त हो गया और राज्य अत्यंत अवनत अवस्था को पहुंच गया।

सालुव -वंश --

विजयनगर के संगम-वंश का राज्य समाप्त होने पर सालुव-वंश का राज्य प्रारम्भ हुआ।सालुव-वंश का सर्वप्रथम शासक नरसिंह था।नरसिंह चंन्द्रगिर के अधिनायक के पद पर मल्लिकार्जुन एवं विरुपाक्ष के समय में कार्य करता था तथा संगम-वंश की ओर से दक्षिण का शासन-प्रबन्ध करता था।मल्लिकार्जुन एवं विरुपाक्ष के शक्तिहीन होने पर शत्रुओं के आक्रमणों को रोकने के लिए गवर्नरों में सर्व प्रधान नरसिंह साबुल ने राज्य प्रबन्ध 1486 ई0 में अपने हाथ ही में ले लिया।दक्षिण भारत में अनेक सालुव युवक गवर्नर के पद से शासन कर रहेथे।नरसिंह के पितृव्य तिप्प  सालुव का विवाह देवराय द्वितीय की बहन से हुआ था।राजनाथ दंडियन के सालवाभ्युद्य्म नामक पुस्तक के अनुसार सालुव राजा भी चन्द्रवंशी यदुवंशी क्षत्रिय ही थे।नरसिंह से पूर्व भी इस वंश के अन्य लोग भी विजयनगर राज्य (संगम काल ) में उच्च पदों पर नियुक्त थे।सालुव वंश का राज्य सन 1486 ई0 से प्रारम्भ होकर सन 1509 ई0 में समाप्त हो गया।इस काल में इम्मादी नरसिंह सालुव वंश का दूसरा राजा था।सन 1493 ई0 नरसिंह का शासन समाप्त होने पर इम्मादी नरसिंह शासन करने लगा तथा नरेश नायक को संरक्षक की तरह इम्मादी के राज्य की देखभाल करता रहा।सन 1502 ई0 तक इम्मादी ने शासन किया तथा इसके बाद सेनापति नरेश नायक ने राज्य सत्ता अपने हाथ में ले ली और वह तुलुव -वंश का प्रथम शासक बन गया।इसके बाद इसका पुत्र वीर नरसिंह 1505 ई0 में विजयनगर राज्य का शासक बना।सन 1509 ई0 में वीर नरसिंह के उत्तराधिकारी कृष्णदेव राय ने शासन अपने हाथों में ले लिया।यह सर्वप्रिय ,न्यायकर्ता तथा व्यवहार -कुशल शासक था।इसके बाद इस वंश के अच्युत ,तथा सदाशिव शासक हुए।इसके बाद 

आरविन्दु -वंश --

इस वंश के शासक रामराय ,तिरुमल ,श्रीरंग प्रथम ,श्रीवेंकटपतिदेव ,श्रीरंग द्वितीय आदि विजयनगर के शासक रहे । मुसलमानों के आक्रमण बढ़ते गए ।विजयनगर राज्य के केंद्रीय शासक का प्रभाव मिटने लगा ।मैसूर प्रान्त का नायक स्वतंत्र हो गया ।मदुरा तथा तंजोर के सर्वप्रथम नायकों ने भी स्वतंत्रता के मार्ग  का अनुसरण किया ।नायकों का महत्व बढ़ गया और इसी काल में विजयनगर साम्राज्य का अंत हो गया ।शाहजी तथा मीर जुमला ने अंत में राजधानी को भी अपने अधिकार में कर लिया।शिवाजी की बढ़ती शक्ति के सामने सबको झुकना पड़ा ।इस प्रकार विजयनगर राज्य का अंत हो गया और उस के स्थान पर मराठा -राज्य की स्थापना हुई।

दक्षिण भारत में कोई भी ऐसा राजा अथवा हिन्दू राज-वंश नहीं था जिसकी समता विजयनगर से की जाय ।मध्य -युग में केवल यही राज्य था जिसने हिन्दू -गौरव की रक्षा की।इस काल में हिन्दू-संस्कृति की सर्वांगीण उन्नति हुई।प्राचीन भारत की सारी संस्कृति को मध्ययुग में सुरक्षित रखने का श्रेय विजयनगर सम्राटों को ही है ।मुगल बादशाहों के अभ्युदय से पूर्व विजयनगर का हास प्रारम्भ हो गया था ।जब दक्षिण -भारत में उनका राज्य फैला तो कोई भी हिन्दू-शासक शिवाजी के अतिरिक्त उनके मार्ग में बाधक नहीं हो सका।महाराष्ट्र में शिवाजी ने विजयनगर के बाद हिन्दू-साम्राज्य को स्थापित किया था ।पर यह अत्युक्ति न होगी कि महाराज शिवाजी के मार्ग को विजयनगर सम्राटों ने सरल बना दिया था।तालकोट के युद्ध के बाद बहमनी सुल्तानों की प्रधानता हो गई ।हिन्दू जनता त्रस्त हो गयी थी।वह ऐसे नेता की खोज में थी जो पुनः देश में हिन्दू-सत्ता को स्थापित कर सके।यही कारण था कि शिवाजी को चारों तरफ से सहायता मिलने लगी थी।दक्षिण में हिन्दू जनता के ह्रदय में विजयनगर सम्राटों ने पर्याप्त मात्रा में आर्य संस्कृति के प्रति प्रेम पैदा कर दिया था।यद्धपि वे सुल्तानों के शासन में , समय के फेर में मौन बने बैठे थे ,पर उनकी रगों में आर्य- संस्कृति का रुधिर वर्तमान था।शिवाजी की साम्राज्य स्थापना के उद्योग से उनको सहारा मिल गया और पुनः हिन्दू-साम्राज्य की भावना जाग उठी।इस लिए यह कहा गया है कि पूर्वगामी विजयनगर शासक शिवाजी के पथ -प्रदर्शक थे।यहां की।प्रधान नदी कृष्णा है जो पश्चिमी घाट से निकलती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती है।इसी नदी के किनारे दक्षिण के विजयनगर तथा बहमनी राज्यों के बीच घोर ऐतिहासिक -संग्राम होते रहे ।इसी कृष्णा की सहायक तुंगभद्रा नदी के किनारे इस राज्य की प्रधान नगरी हम्पी जिले में बसाई गई थी।इस लिए तुंगभद्रा को ही इस बात का गर्व है कि विजयनगर इसकी गोद में पला था।विजयनगर के दुर्ग तुंगभद्रा के दाहिने किनारे पर बनाये गए थे ।वाया किनारा भी कम प्रसिद्ध नहीं था।विजयनगर के पूर्वगामी यदुवंशी क्षत्रिय होयसल नरेशों का प्रधान स्थान यही था।यह भाग उत्तरी भारत से अधिक दुर्गम है क्यों कि पठार दो हजार फीट के लगभग ऊंचा है।

संदर्भ--
1-विजयनगर -साम्राज्य का इतिहास , भूमिका लेखक-डॉ0 रामप्रसाद त्रिपाठी एवं लेखक -श्री वासुदेव उपाध्याय ।
2-दिल्ली सल्तनत 1206-1526 ,संपादक मोहम्मद हबीव ,खलिक अहमद निजामी ।
3-प्राचीन भारत लेखक सत्यकेतु विद्यालंकार
 4-दक्षिण भारत का राजनीतिक इतिहास लेखक डॉ0 अजय कुमार सिंह ।
5-भारत ज्ञानकोष 
6-ऐतिहासिक स्थानावली लेखक विजेन्द्र कुमार माथुर।
7-देवगिरि के यादव लेखक राजमल वोरा
8-भारतीय इतिहास कोष लेखक सच्चिदानंद भाट्टाचार्य ।
9-दकन का प्राचीन इतिहास संपादक जी याजदानी ।
10-सल्तनत काल में हिन्दू -प्रतिरोध लेखक अशोक कुमार सिंह ।
11-हिस्ट्री ऑफ आरविन्दू डायनेस्टी  ।
12-एपिग्रेफीका करनातिका ।
13-मैसूर अर्कोलाजिकल रिपोर्ट ।
14-राजपुताना (क्षत्रियों ) शाखाओं का इतिहास ,लेखक देवीसिंह मंडावा ।
15-भारत का सैनिक इतिहास ,लेखक देवदत्त शास्त्री।
16-तेलगु साहित्य का इतिहास, लेखक बालसुरी रेडी ।
17-विश्व इतिहास कोष -चंद्रराजा भंडारी।
18-हिंदी विश्व कोष - नागरी-,प्रचारिणी सभा ।
19-ए फोरगाटिन एम्पायर (विजयनगर) -सेवेल ।
20-हक्का एन्ड बुक्क -सुब्बा राव ।
21-ऐशेट इंडिया -कृष्णास्वामी ।
22-हिस्ट्री ऑफ इंडिया -ऐयंगर ।
23-,हिस्ट्री ऑफ इंडिया भाग 4 , --इलियट ।
24-कैम्ब्रिज हिस्ट्री भाग 3 ।
25-मिडिवल इण्डिया 6-ईश्वरीप्रसाद ।
26-आरविन्दु डायनेस्टी -हेरास ।
27-कॉन्ट्रिब्यूशन ऑफ साउथ इण्डिया -कृष्णास्वामी ।
28-विजयनगर हिस्ट्री- हेरास ।
29-सोरसेज ऑफ विजयनगर-कृष्णास्वामी ।
30-विगनिग ऑफ विजयनगर -हेरास ।

लेखक-डॉ0 धीरेन्द्रसिंह जादौन
गांव-लढोता ,सासनी 
जनपद-हाथरस ,उत्तरप्रदेश।
एसोसिएट प्रोफेसर ,कृषि मृदा विज्ञान 
शहीद कैप्टन रिपुदमन सिंह राजकीय महाविद्यालय ,सवाईमाधोपुर ,राजस्थान ,322001

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