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Showing posts from May, 2021

जदुवंशी बनाफर राजपूत वंश का ऐतिहासिक शोध--

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जदुवंशी बनाफर राजपूत वंश का ऐतिहासिक शोध--- हमारी इस पावन पवित्र वीरों के बलिदान की भारत भूमि का इतिहास किसी एक भू -भाग का ऋणी नही है ।प्राचीनकाल में अयोध्या ,मगध ,काशी ,मथुरा ,शक्ति केंद्र रहे तो बाद के वर्षों में उज्जैन ,पाटिलपुत्र शक्ति केंद्र बने ,इसके बाद मध्यकाल में दिल्ली ,कन्नोज ,पाटन फिर मेवाड़ ,मारवाड़ में शक्तिकेंद्रों का उदय हुआ।इसके बाद बुन्देलखण्ड की ताकत ने पूरे देश में स्थान बनाया और बुन्देलखण्ड की वीरभूमि के  इस गौरव में महोवा की भी वीरप्रसुता भूमि  पूज्यनीय है जिसमें आल्हा एवं ऊदल जैसे रणवांकुरे वीर योद्धाओं ने जन्म लेकर उसको गौरवान्वित किया। आल्हा -ऊदल के स्मारक ही बने उनके वैभव के साक्षी -- अतिशयोक्ति वर्णन से आल्हा-ऊदल को इतिहास में भले ही वह स्थान न मिला हो जिसके वे हकदार थे पर आल्हा-ऊदल के स्मारक इस बात के साक्षी हैं कि चन्देल राजपूतों के गौरवशाली कालखण्ड में उनका ऊँचा स्थान था।इलाहवाद जिले के जसरा के समीप चिल्ला गांव में आल्हा-ऊदल की बैठक इस तथ्य की साक्षी है ।उस बैठक में 7 कमरे , आंगन व बरामदा बना हुआ है।दूर -दूर तक पत्थर पड़े होने से अनुमान लगाया जा सकता है कि

श्री कृष्ण के बाद मथुरा में पुनः जादों राजवंश की स्थापना एवं उसके संस्थापक श्री वज्रनाभ की पुनः शासन -सत्ता का ऐतिहासिक शोध --

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    श्री कृष्ण के बाद   मथुरा  में पुनः  जादों-राजवंश  की स्थापना एवं उसके संस्थापक श्री वज्रनाभ  की पुनः शासन -सत्ता का ऐतिहासिक शोध--- " प्रभास क्षेत्र में हुए जदुवंश संहार के बाद द्वारिका से सुने ब्रज में प्रकाश-पुंज बनकर आये थे श्री कृष्ण के प्रपौत्र श्री वज्रनाभ ।इन्होंने ही निर्जन अवस्था में पड़ी हुई  ब्रजभूमि को पुनः पुनर्जीवित करके वहां पर  जादों राज वंश की पुनः स्थापना की थी।इनको यदुकुल शिरोमणि वासुदेव श्री कृष्ण का प्रतिरूप माना गया है।वज्रनाभ को ही ब्रज का पुनः निर्माता भी कहा गया है ।करौली एवं दक्षिण में देवगिरि के यादव-राजवंशों  को इतिहासवेत्ताओं ने भी वज्रनाभ के  ही वंशज माना  है ।" मुक्ति कहै गोपाल सों मेरी मुक्ति बताय । ब्रज रज  उड़ि मस्तक लगै ,मुक्ति मुक्त है जाय ।। ब्रज की पावन पवित्र रज में मुक्ति भी मुक्त हो जाती है ।ऐसी महिमामयी है ये धरा ।ब्रज वसुधा को जगत अधीश्वर  भगवान् श्री कृष्ण ने अपनी लीलाओं से सरसाया ।"ब्रज "शब्द का अर्थ है व्याप्ति ।इस व्रद्ध वचन्  के अनुसार व्यापक होने के कारण ही इस भूमि का नाम "ब्रज "पड़ा है ।सत्व ,रज ,तम इ

जदुवंशियों के प्राचीन राज्य शूरसेन प्रदेश के इतिहास का पौराणिक अध्ययन--

जदुवंशियों के प्राचीन राज्य शूरसेन प्रदेश के इतिहास का पौराणिक अध्ययन ------ वर्तमान मथुरा तथा उसके आस –पास का प्रदेश ,जिसे अब ‘ब्रज ‘ कहा जाता है ,प्राचीन काल में यह ‘शूरसेन प्रदेश या जनपद के नाम से प्रसिद्ध था |इसकी राजधानी मधुरा या मथुरा नगरी थी | शूरसेन जनपद आरम्भ से ही महाजनपद के रूप में विकसित हुआ था |उसके राजनैतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास की प्रभाव पूर्ण छाप समस्त उत्तर भारत के इतिहास पर भी पड़ी |इस प्रभाव के तीन व्यापक क्षेत्र है –धर्म ,कला और भाषा |धर्म के क्षेत्र में शूरसेन जनपद की महती देन समन्वय –प्रधान द्रष्टिकोण है ,जिसे एक सूत्र में भागवती दृष्टि  भी कह सकते है |भगवान वासुदेव श्री कृष्ण को महाविष्णु का अवतार मान कर  और उन्ही में  रख कर उनके साथ अनेक देवी –देवताओं के समन्वय का प्रतिपादन किया गया |शूरसेन जनपद में जो यज्ञ पूजा ,नागपूजा और मातृदेवी की पूजा प्रचलित थी ,उन तीनों को स्वीकार करते हुए ,उन्हें विष्णु की ही विभूति कहकर ऊँचे धरातल पर मान्यता प्रदान की गई |गोवर्धन पूजा के रूप में गिरिमह, इन्द्र पूजा के रूप में इन्द्रमह और यमुना पूजा के रूप में नदीमह नामक प्राचीन उत्स

जदुवंशियों के विविध वंश एवं उनके पौराणिक राज्यों का ऐतिहासिक शोध --

जदुवंशियों के विविध वंश एवं उनके पौराणिक राज्यों का ऐतिहासिक शोध  ---- ऐल-वंश के प्रतापी राजा ययाति जो भारत के प्रथम चक्रवर्ती सम्राट थे उनके पांच पुत्र थे , जिन सभी ने आर्य-जाति की शक्ति का दूर -दूर तक विस्तार किया , और अपने पृथक -पृथक राज्य स्थापित किये।ये पांचों -यदु ,तुर्वसु ,द्रुहा अनु और पुरु -वंशकर राजा थे । ये पांचों पौराणिक अनुश्रुति में बहुत प्रसिद्ध हैं । यदोस्तु यादवा जाता स्तुर्वसोर्यवना :स्मृताः। द्रुहा: सुतास्तु वैभोजा अनोस्तु म्लेच्छ जातय:।।(महा भा0 ,1,85 ,34) महाभारत के अनुसार यदु अपने सब भाइयों में प्रतापी निकला  उसके वंशज " यादव"  नाम से प्रसिद्ध हुए । तुर्वसु से यवन , द्रुहा से भोज तथा अनु से म्लेच्छ जातियों का आविर्भाव हुआ। पुरु प्रतिष्ठान (आधुनिक प्रयाग ) का राजा बना , और उसी के नाम पर प्रतिष्ठान का ऐल -वंश अब पौरव कहाने लगा जिसमे बाद में कौरव एवं पांडव हुए ।   यदु द्वारा यादव वंश का प्रारम्भ हुआ ।यदु को चर्मवती (चम्बल ) वेत्रवती (वेतवा ) तथा शुक्तिमती ( केन) , का तटवर्ती प्रदेश मिला और इन  नदियों की घाटियों में अपने राज्य की स्थापना की थी। इसके वंशज &qu

The Thangarh Fort (Tribhuvanagiri) : A Symbol of Bravery of Jadon Rulers in Medieval Period ---

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  Thangarh Fort (Tribhuvanagiri ) :  A Symbol of Bravery of Jadon Rulars in Medieval Period  ---- During the medieval period Thangarh /Tahangarh (Tribhuvanagiri ) fort was perceived an adjunct of the large fort at Bayana region . Interestingly , the construction of both these (Vijayamandirgarh and Tanagarh )forts is ascribed to the Jadon Rajput who ruled over Eastern Rajputana in the 11th century A.D.Thangarh fort was built by Tahanpala , the eldest son of Maharaja Vijayapala of Bayana who constructed the fort of Vijayamandirgarh , presently called Bayana fort. In the year A.H.592 ( A.D. 1196 ) , Muhammad Gauri and.Kutbu-d-din Aibak marched towards Thangar (Thangar or Tahangarh ) is the name of the fort near Bayana and the centre of idolotry and perdition became the abode of glory and splendour (Ettiot &Dowson ).The Thankar ,this name is written Thankar, Bhankar at 297and 304 intra.Ranking (B.I.51, tr.1.71 note )and the writer of the article on Budan in the I.G.are m

Medieval History of Jadon Tarhati village (Tamangarh Fort )---

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Medieval History of Jadon Tarhati village (Tamangarh Fort )--- Tarhati , better known in history as Tamangarh fort , is a small village in Karauli tahsil situated at north -east .It was a famous fort of Northern India during the early mediaeval period . It was founded by Tamanpal , a Yadava ruler during 11th century A.D. The place was also known as Tribhuvangiri and Islamabad .It remained a famous seat of Jainism and a centre of the Pashupti sect of the Saivas in the 12th century.But it could not withstand Muslim invasions and plunder and was devastated . Kunwarpal was  the king of Tribhuvanagiri in 1157 A.D.when Jinadstta  Suri visited  that place in 1112 -54 A.D of the Kharataragaccha sect .It is known from the Mahaban Prasasti of V.1208 or A.D.1151 found near Mathura that Kunwarpala's son , Ajayapala ,who is given the title of Maharajadhiraj  might have been the ambitious Bhadanaka ruler described as deprived of his bha or "lustre" by the Chahamanas  ruler Vigrahra

जदुवंश में सात्वत वंश शाखा के प्रादुर्भाव का संक्षिप्त ऐतिहासिक शोध ---

जदुवंश में सात्वत वंश शाखा के प्रादुर्भाव का संक्षिप्त  ऐतिहासिक शोध ---- -- विदर्भ वंश में आगे चल कर एक मधु नाम का एक शक्ति शाली यदुवंशी राजा हुआ , जो बड़ा प्रतापी था |उसने यदुवंश के विविध –राज्यों को मिलाकर एक विशाल चक्रवर्ती राज्य की स्थापना की पर यदुवंशी –राज्यों की एकता देर तक कायम नहीं रह सकी |मधु के चौथी पीढी में सत्वत नाम का वीर हुआ ,जिसने ‘’ सात्वत ‘ ’नाम से अपना पृथक वंश आरम्भ किया |सत्वत के वंशज  दक्षिण छोड़ कर उत्तर –पश्चिम की ओर बढे  | आनर्त प्रदेश पर जो यादवी शाखा राज्य कर रही थी उसके अंतर्गत सत्वत-पुत्र भीम महाराज रामचन्द्र का समकालीन था |सात्वत वंश के यदुवंशी यमुना के पश्चिम में वर्तमान समय के मथुरा प्रदेश में शासन करते थे |ऐक्ष्वाक वंशी राजा राम के अनुज शत्रुघ्न ने इस प्रदेश को यदुवंशी राजा मधु पुत्र  लवण के आतंक से मुक्ति कराने के लिय शत्रुघ्न ने लवण से युद्ध किया तथा लवण को मार कर मथुरा पर आधिपत्य कर लिया |शत्रुघ्न के दो पुत्र थे ,सुबाहु और शूरसेन |सुबाहु ने विदिशा का राज्य किया और ऐसा प्रतीत होता है कि शत्रुघ्न पुत्र शूरसेन मथुरा प्रदेश पर अपना आधिपत्य अधिक काल तक स्थ