जदुवंश में सात्वत वंश शाखा के प्रादुर्भाव का संक्षिप्त ऐतिहासिक शोध ---

जदुवंश में सात्वत वंश शाखा के प्रादुर्भाव का संक्षिप्त  ऐतिहासिक शोध ------

विदर्भ वंश में आगे चल कर एक मधु नाम का एक शक्ति शाली यदुवंशी राजा हुआ , जो बड़ा प्रतापी था |उसने यदुवंश के विविध –राज्यों को मिलाकर एक विशाल चक्रवर्ती राज्य की स्थापना की पर यदुवंशी –राज्यों की एकता देर तक कायम नहीं रह सकी |मधु के चौथी पीढी में सत्वत नाम का वीर हुआ ,जिसने ‘’सात्वत ‘’नाम से अपना पृथक वंश आरम्भ किया |सत्वत के वंशज  दक्षिण छोड़ कर उत्तर –पश्चिम की ओर बढे  | आनर्त प्रदेश पर जो यादवी शाखा राज्य कर रही थी उसके अंतर्गत सत्वत-पुत्र भीम महाराज रामचन्द्र का समकालीन था |सात्वत वंश के यदुवंशी यमुना के पश्चिम में वर्तमान समय के मथुरा प्रदेश में शासन करते थे |ऐक्ष्वाक वंशी राजा राम के अनुज शत्रुघ्न ने इस प्रदेश को यदुवंशी राजा मधु पुत्र  लवण के आतंक से मुक्ति कराने के लिय शत्रुघ्न ने लवण से युद्ध किया तथा लवण को मार कर मथुरा पर आधिपत्य कर लिया |शत्रुघ्न के दो पुत्र थे ,सुबाहु और शूरसेन |सुबाहु ने विदिशा का राज्य किया और ऐसा प्रतीत होता है कि शत्रुघ्न पुत्र शूरसेन मथुरा प्रदेश पर अपना आधिपत्य अधिक काल तक स्थिर रख सका और सात्वत भीम ने महाराज रामचन्द्र के बाद उसे शीघ्र ही अपदस्थ कर मथुरा पर पुनः यादव़ी शासन स्थापित कर दिया  | भीम के अनेक पुत्र थे जिनमें अंधक और वृष्णि प्रसिद्ध हैं |ये दोनों वंशकर राजा हुए |इनके नाम पर अंधक और वृष्णि राज्यों का शुभारम्भ हुआ |जब अयोध्या में श्री राम के पुत्र कुश का राज्य था तब मथुरा में यदुवंशी भीम का पुत्र अंधक राज्य करता था |मथुरा में अंधक वंशी राजाओं का शासन कई पीढीयों तक चलता रहा |उग्रसेन एवं उनका पुत्र कंस अंधक वंशीय थे

यदुवंश की वृष्णि –शाखा की संतति --

सात्वत वंश में सात्वत के कनिष्ठ पुत्र  वृष्णि हुए |इनकी दो पत्नियाँ गांधारी एवं माद्री हुई |इनमें गान्धारी से सुमित्र और मित्रनंदन  दो पुत्रों का जन्म हुआ तथा वृष्णि की दुसरी पत्नी माद्री से युद्धाजित ,तत्पश्चात  देवमीढूष (देवमीढू ), अनमित्र ,शनि  आदि पुत्र  हुए |देवमीढ की पत्नी भोज्या [अश्मकी ]से केवल एकमात्र पुत्र शूरसेन हुए |शूरसेन के भोज राजकुमारी मारिषा से  वासुदेव ,देवभाग आदि दस पुत्र एवं कुन्ती आदि पांच पुत्रियाँ पैदा हुई |यहाँ यह विवरण देना जरुरी था क्यों कि कुछ समाज विशेष के इतिहासकारों  ने देवमीढूस की एक वैश्य पत्नी से पर्च्जन्य का जन्म  गलत तरीके से जोड़ कर उनसे नन्द , उपनन्द एवं अन्य गोपों की उत्पति होना दर्शाया है,जिससे , वे अपने आप को यदु के  वंशज यादव कह सकें , जो निराधार असत्य है |किसी भी मान्यता प्राप्त वेद ,ग्रन्थ तथा पुराणों में ऐसा विवरण कहीं नहीं मिला जिससे ये उत्पति सत्यापित हो सके | वृष्णिवंशी महाराज शूरसेन ने अपने नाम पर शौरपुर (वर्तमान बटेश्वर ) बसा कर अपना पृथक् राज्य स्थापित किया था |यह शूरसेन महाराज अन्धक वंशीय महाराज उग्रसेन के समकालीन थे |इन्ही के पुत्र वसुदेव थे जिनको कंस की चचेरी बहिन देवक की पुत्री देवकी ब्याहीं थी |इन्हीं वसुदेव जी के रोहिणी एवं देवकी से श्रीकृष्ण तथा बलराम पैदा हुए |श्री कृष्ण जी के कारण यदुवंश गौरवशाली हुआ |श्री कृष्ण के समय में अन्धक-वृष्णि संघ बना हुआ था |यह संघ अन्धक और वृष्णि गोत्रों से उत्पन्न क्षत्रियों का था |उग्रसेन उसके राज –प्रमुख थे तथा श्री कृष्ण मुख्य |
इसी वृष्णि वंश में अनेक प्रसिद्ध यदुवंशी स्वफल्क , अक्रूर , चित्रक , देवभाग ,वसुदेव, उद्धव  ,सत्राजित  , प्रसेन  ,सत्यभामा ,श्री कृष्ण,बलराम  ,सात्यक ,सात्यकि आदि हुए है। 
वृष्णि-वंश के प्रमुख वंशजों का विवरण ----
 
शत्राजित --
 
यह अनमित्र के पुत्र निघ्न के महान पराक्रमी  पुत्र थे।इनके भाई का नाम प्रसेन था। शात्राजित के सूर्य भगवान प्राणों प्रिय मित्र थे।सूर्यभगवान ने इनको स्यमन्तक मणि दी थी ।इनकी पुत्री सत्यभामा जी थी जो श्री कृष्ण को ब्याही थी जो श्री कृष्ण की प्रियाओं में सबसे सुंदर थीं।इसकी पत्नियां  केकयराज की दस पुत्रियाँ थीं जिनसे सौ पुत्र पैदा हुए।जिनमें तीन प्रसिद्ध थे , सबसे बड़ा भंगकार ,वीरवातपति तथा उपस्वावान था।शात्राजित के सत्यभामा के अतिरिक्त दृढ़वृतधारिणी ब्रतिनी एवं प्रसवापिनी थी।

 प्रसेन (प्रसेनजित )--
 
ये शत्राजित के भाई थे जिनको उन्होंने स्यमन्तक मणि दी थी ।
 
सत्यक एवं सात्यकि -----
 
वृष्णि के पुत्र शनि के पुत्र सत्यक और सत्यक का पुत्र सात्यकि हुआ।यही सात्यकि यादवों की सेना का सेनापति था , जिसने ही महाभारत युद्ध में भूरिश्रवा को मारा था।यदुवंश - संहार में सात्यकि ने भोजवंशी कृतवर्मा को मार डाला था।ये दोनों  आपस में प्रभास क्षेत्र में एक दूसरे का उपहास कर रहे थे जिससे यादवों में झगड़ा हुआ ।सात्यकि श्री कृष्ण के सबसे अधिक विश्ववासपात्र थे ।सत्यक जो शनि के पुत्र थे वे परम् सत्यवादी , सत्याचरण -परायण थे ।इनके पुत्र सात्यकि को युयुधान नाम से भी जाना जाता था।सात्यकि के पुत्र भूति और भूति के पुत्र युगन्धर हुए।

पृश्नि ---

वृष्णि की पत्नी माद्री के पुत्र युधाजित से पृश्नि नाम का विख्यात पुत्र हुआ।पृश्नि के स्वफल्क तथा चित्रक दो पुत्र पैदा हुए।

स्वफल्क ---

महाराज स्वफल्क परम् धर्मात्मा थे।वे जहां विद्यमान रहते थे वहां पर व्याधियों एवं अनावृष्टि का भय नहीं रहता था।एक बार कभी सर्व समर्थ काशिराज के राज्य में इन्द्र ने तीन वर्ष तक लगातार वर्षा नहीं की थी ।काशिराज ने परमसम्माननिय महाराज स्वफल्क को अपने यहां बुलाकर निवास कराया ।स्वफल्क के वास करते ही इन्द्र ने वहां वर्षा की।काशिराज ने अपनी पुत्री गांदिनी का विवाह स्वफल्क के साथ किया।उनसे परमदानी , परम् यज्ञकर्ता , शूरवीर ,वेदज्ञ ,अतिथि सेवक अक्रूर जी पैदा हुए।अक्रूर के अतिरिक्त महाराज स्वफल्क के उपमंगू ,मंगु , मृदुर , अरिमेजय ,गिरिरक्ष , यक्ष ,शत्रुघ्न , धर्मभूत , शुष्ट्चय , वर्गमोच , आवाहू , तथा प्रतिवाहू पुत्र थे।उनके एक परमसुन्दरी वसुदेवा नाम की एक कन्या भी थी।हरिवंश पुराण में इस कन्या का नाम बरांगना था जो कहीं- कंही  शीलवती भी बताई गई है जो श्री कृष्ण को ब्याही थी।

अक्रूर जी---

अक्रूर जी की पत्नी रत्ना जो राजा शिवि की पुत्री थी उनके गर्भ से ग्यारह महावली पुत्रों का जन्म हुआ।उनके नाम इस प्रकार है--उपलम्भ, सदालम्भ , वृकल , वार्य , सविता , सदापक्ष ,शत्रुघ्न , वारिमेजय ,धर्मवर्मा , धर्मभ्रद और घृष्टमान ।ये सभी पुत्र यज्ञादि करने वाले थे।अक्रूर की दूसरी पत्नी उग्रसेना से देववाम तथा उपदेव नामक दो  पुत्र हुये जो देवताओं के समान शोभाशाली और वंश-विस्तारक थे।अक्रूर की तीसरी पत्नी अश्रीनि के गर्भ से पृथु , विपृथु , अश्वस्थामा , सुवाहु ,सुपाश्वरक , गवेषण , वृष्टीनेम , शर्याति , अभूमि ,वज्रभूमि , शर्मिष्ठ तथा श्रवण ये तेरह पुत्र भी पैदा हुए थे।

चित्रक ---
अक्रूर के चाचा चित्रक के श्रविष्ठा एवं श्रवणा नामक दो पत्नियों से पृथु , विपथू , अश्वग्रीव , अश्ववाहू , सुपाश्वरक ,गवेषण , अरिष्टनेम ,अश्व , चर्मभूत , वर्मभूत , अभूमि और बहुभुमी आदि पुत्र हुए।

 देवमीढूस ---

सात्वत पुत्र वृष्णि की पत्नी माद्री से युधाजित , देवमीढुष ,और अनमित्र नामक पुत्र हुए।ये तीनों पुरुष श्रेष्ठ थे।इनके शूरसेन नामक पुत्र हुए ।

शूरसेन ---

देवमीढूस के अस्मकी नाम की पत्नी से केवल शूरसेन ही अकेले पुत्र थे जिनका विवाह भोज पुत्री मारिषा से हुआ जिनके वासुदेव ,देवभाग ,देवश्रवा ,अष्टक ,ककुच्च्क्र ,वत्सधारक ,स्रंजय ,श्याम ,शमिक ,तथा गंडूष आदि दस पुत्र एवं पृथा(कुन्ती) ,श्रुतदेवा ,श्रुतिकीर्ति , श्रुतश्रवा ,तथा राजाधिदेवी आदि पांच पुत्रियाँ हुई |ये सभी वीर पुत्रों की माताएं हुई |शूरसेन के सभी पुत्रों में वसुदेव एवं देवभाग के वंशज अधिक प्रसिद्ध हुए जिनमें श्री कृष्ण ,बलराम तथा उद्धव प्रमुख थे |

देवभाग

शूरसेन के पुत्र देवभाग के महाभाग्यवान उद्धव तथा दुसरी पत्नी कंसा जो कंस की बहिन थी उससे चित्रकेतु और बृहदल आदि दो पुत्र भी हुए | 

उद्धव जी–

ये देवताओं के समान कीर्ति वाले एवं परम पंडित तथा ज्ञानी के रूप में समस्त यदुवंशियों में प्रसिद्ध थे तथा श्रीकृष्ण के प्रिय सखा भी थे |

वसुदेव जी (आनकदुन्दुभि)---

वसुदेव जी का उपनाम आनकदुन्दुभि भी था | पुराणों में कहा जाता है कि इनके जन्म लेने पर स्वर्ग में आकाश में दुन्दुभियाँ बजी थी तथा स्वर्ग में –आकाश में नगारों का बड़ा भारी शब्द हुआ था |इसी लिए वसुदेव जी का नाम ‘’आनकदुन्दुभि’’ पड़ा |साथ ही इनके जन्म के समय शूर के घर पर पुष्पों की बड़ी भारी वर्षा हुई थी |पुरुषों में अग्रगण्य  वसुदेव जी की कान्ति चन्द्रमा के सामान थी ,इनके समान रूपवान सम्पूर्ण मनुष्य –लोक में कोई नहीं था |
वसुदेव जी की तेरह परम सुन्दरी पत्नियाँ थीं जिनमें पौरवी ,रोहिणी ,देवकी ,मदिरा ,भद्रा ,वैशाखी तथा अपरा आदि सात पटरानियाँ थी |सुगन्धि और वनराजी ये दो परिचारिकाएँ थी | रोहिणी एवं पौरव़ी ये दोनों बाल्मीकि की कन्याएं थी [वायु पुराण ]हरिवंश पुराण के अनुसार वसुदेव जी की चौदह पत्नियाँ थी जिनमें रोहिनीं ,इन्द्रिरा ,वैशाखी ,भद्रा तथा सुनाम्नी ये पाँचों पौरव क्षत्रिय वंश की थी |देवकी ,सहदेवा ,शान्तिदेवा ,श्रीदेवा ,देवरक्षिता ,वृकदेवी ,तथा उपदेवा ये सात बहिनें अंधक वंशी यदुवंशी महाराज उग्रसेन के छोटे भाई देवक की पुत्रियाँ थी |सुतून तथा वडवा ,ये दोनों उनकी परिचर्या करने वाली स्त्रियाँ थी |

1 -रोहिणी जी- 

पौरववंश के महाराज शान्तनु के बड़े भाई वाहिक की पुत्री थीं |वे वसुदेव जी की प्रियतमा बड़ी पत्नी थीं |ये नन्द गोप के भवन में गोकुल में रहने लगीं थी जिनसे बलराम ,सारण,दुर्दम ,दमन ,शुभ्र ,पिन्डारक ,निशव तथा उशीनर आदि आठ पुत्र एवं चित्रा नाम की कन्या हुई जो रोहिणी से जन्म लेते ही मर गयी थी ऐसा पुरानों में वर्णित है |यह चित्रा एक अप्सरा थी। इसने मरते समय अपने को धिक्कारा था कि मैं यादव कुल में जन्म धारण करके भी यदुवंश में उत्तपन्न होने वाले भगवान की लीलाओं को न देख सकी ।इस वासना के कारण यह चित्रा ही दूसरी बार सुभद्रा बन कर पैदा हुई थी।इस प्रकार रौहिणी जी की दस सन्तानें हुई।

बलराम (बलभद्र )---

बलराम जी के लिए राजा रैवत की पुत्री रेवती जी ब्याही थीं जिनसे विशठ और उलमुक नामक दो पुत्र हुए।कहा जाता है कि इनके अलावा पार्श्वी , पार्श्वनन्दी , शिशु ,सत्यघृति , मन्दवाहा, रामाणगिरिक , गिर ,सुलकगुल्म ,गुलमदरिदरान्तक नामक पुत्र भी बलराम जी के थे।

2- मन्दिरा— 

नन्द ,उपनन्द ,मित्र ,कुक्षिमित्र ,चल ,पुष्टि ,और सुदेव आदि पुत्र हुए तथा उपचित्रा नाम की कन्या हुई |ये नन्द एवं उपनन्द गोपवंश वाले नहीं है यह यहां ध्यान रखने की बात है।

3 -वैशाखी  --

इनसे कौशिक नामक परमयोग्य  पुत्र हुआ |

4 -देवरक्षिता –इनके उपासडवर हुए |

5 -वृकदेवी

इनसे महात्मा अगावह जी उत्पन्न हुए |ये त्रिगर्तराज की कन्या थी |

6 -देवकी

वसुदेव जी के देवकी से महायशस्वी श्रीकृष्ण जी उत्पन्न हुए |इनके अलावा सुषेण ,कीर्तिमान ,तदय  ,भद्रसेन ,यजुदाय और भद्रविद नामक छह पुत्रों को कंस ने मार डाला था |इनसे सुभद्रा नाम की कन्या भी पैदा हुई जो अर्जुन पांडव को ब्याही गई जो बाद में कृष्णा नाम से भी विख्यात हुई थी जिनसे अभिमन्यु का जन्म हुआ |

7 -भद्रा –उपबिम्ब , बिम्ब ,सत्वदंत ,और महौजा आदि चार महाबली एवं विख्यात पुत्र हुए |
8 -सहदेवा –इनसे परमवीर भयासख नामक पुत्र हुआ |
9 -शौरी ---इनसे कुलोदह नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ |

10 -उपदेवा-इनसे उपसंग,  बसु ,देव ,रक्षित ,विजय ,रोचन ,उपसंग ,तथा वर्धमान आदि पुत्र हुए |इनको भी कंस ने मार डाला था |

11 –शान्तिदेवा – इनसे भोज एवं विजय ये दो पुत्र हुए 

12 शैव्या –इनसे कौशिक नाम का पुत्र हुआ |
13 सुनाम्नी ---वृकदेव और गद नामक पुत्र हुए |

शूरसेन के अन्य पुत्र ------

देवश्रवा ---शूरसेन के पुत्र देवश्रवा के  कंसावती से सुवीर एवं इषुमान नामक पुत्र हुए |
आनक –इनकी पत्नी कन्का से सत्यजित एवं पुरुजित दो पुत्र हुए |

सृजजय –इनके पत्नी राष्ट्रपालिका से वृष और दुमर्शर्ण हुए |

शमीक –शमिक की पत्नी सुदामिनी से सुमित्रा और अर्जुनपाल  आदि कई पुत्रों को जन्म दिया |

कन्क —इनकी पत्नी कर्णिका से ऋतधाम तथा जय पुत्र हुए | 

वृक —इनकी पत्नी दुर्वाहती से तक्ष ,पुष्कर और शाल आदि पुत्र हुए |

अनाध्रष्टि—अश्मकी पत्नी से यशस्वी नामक पुत्र हुआ |

कनवक –तन्द्रिज और तनिन्द्रपाल दो पुत्र हुए |
शूरसेन की पुत्रियों की संस्तुति ------

1 – कुंती (पृथा )

शूरसेन ने पृथा को अपने परम मित्र पूज्य तथा वृद्ध ,निसंतान राजा कुन्तिभोज को दे दिया था |कुन्ति भोज की पोषित पुत्री होने के कारण वह कुन्ती नाम से विख्यात हुई ,जो कुरुवंशियों में वीर पांडु की पत्नी हुई |युधिष्ठर ,भीम तथा अर्जुन इन्हीं कुन्ती के पुत्र थे |

2 –श्रुतदेवा –

ये कारुष नरेश वृद्धशर्मा को ब्याही थी उनके गर्भ से दन्तवक्र उत्पन्न हुआ |ये वही दन्तवक्र था जो पूर्व जन्म में सनकादि ऋषियों के शाप से हिरणयाक्ष हुआ था |

3 –श्रुतिकीर्ति –

इनका विवाह कैकय देश के राजा धृष्टकेतु के साथ हुआ |इनके संतद्रन ,चेकितान और व्रहनक्षत्र महावली पुत्र हुए |

4 – राजाधिदेवी ---
इनका विवाह अवन्ती नरेश जयसेन से हुआ जिनके विन्द और अनुविन्दु दो पुत्र और एक पुत्री हुई मित्रविन्दा  हुई जिसने श्रीकृष्ण को स्वयंवर में अपना पति बनाना चाहती थी जिसको श्रीकृष्ण राजाओं की भरी सभा में उसे बलपूर्वक हरण करके लाये थे ,सभी लोग देखते ही रह गये |इसके दोनों भाई दुर्योधन के अनुयायी थे |

5 –श्रुतश्रुवा ---

 इनका विवाह चेदिराज दमघोष को हुआ जिनका पुत्र शिशुपाल हुआ |

अन्धक-वंशीय कुकुर और भजमान के वंशज तथा उग्रसेन एवं देवक की उत्पति एवं उनकी संस्तुति -------

सात्वत पुत्र अन्धक के काशिराज दृढाश्व की  पुत्री से चार  कुकुर ,भजमान ,शमी तथा कम्बलवहर्षि नामक पुत्र  हुए जिनमें  कुकुर तथा भजमान के वंशज अधिक प्रसिद्ध हुए | 

भजमान के वंशज ----

भजमान के वंशजों मे विदुरथ,शमी ,स्वयंभोज ,हदिक् हुए ।हदिक जिसके दस भयानक पराक्रमी पुत्र हुए जिनमें  कृतवर्मा तथा शतधन्वा अधिक प्रसिद्ध हुए तथा अन्य सुदांत ,छियांत ,नाकवान ,भिषक,वनाह्र,दवाह्र,दैवतरथ आदि सभी भोजवंशी यादव कहलाये | |कृतवर्मा महाभारत के युद्ध में कौरवों की ओर लडा था जिसकी इस युद्ध में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका थी तथा इसी वजह से बाद में यदुवंशियों में आपसी फूट भी पड़ी थी |
कुकुर के वंशज--

कुकुर के पुत्र वृष्टि थे ।वृष्टि के पुत्र का नाम कपोतरोमा था।कपोतरोमा का पुत्र रेवत थे।उस रेवत का पुत्र तुम्बुरुसला हुआ जो परम् प्रसिद्ध विद्वान था।इसी के नाम को " चन्दनोदकदुंदुभि " भी कहते है ।इनका पुत्र अभिजित हुआ ।परम प्रसिद्ध अभिजित  ने पुत्र प्राप्ति के लिए अश्वमेघ यज्ञ का अनुष्ठान किया उस विशाल यज्ञ  में पुनर्वसु नामक पुत्र का प्रादुभुर्त हुआ था |ये पुनर्वसु अतिरात्र में मध्य सभा बीच प्रकट हुआ था ,इस लिए वह विद्वान ,शुभा-शुभ कर्मों का ज्ञाता ,यशपरायण और दानी था |पुनर्वसु के दो जुडवा सन्तान उत्पन्न हुए –ऐसी प्रसिद्धि है कि जिनके नाम अपने वाहुबल तथा वाणों से कभी पराजित नहीं होने वाले आहुक और आहुकी थे |आहुक के काशिराज की पुत्री से देवकुमारों के समान सुन्दर उग्रसेन एवं देवक नाम के दो पुत्र हुए |अन्धक वंशियों ने आहुकी को अवन्ति के राजवंश में ब्याह दी थी |

महाराज उग्रसेन -----

महाराज उग्रसेन यदु ,भोज ,और अंधक वंश के अधिनायक थे|
उग्रसेन के नौ पुत्र थे |उनमें कंस सबसे बड़ा था |शेष पुत्र सुनाया ,कंक,शंकु ,शुभुमिप ,राष्ट्रपाल ,सुतून ,अनाघ्रष्टि और पुष्टिमान थे तथा कंसा ,कंसवती ,सुतनु ,राष्ट्रपाली और ,कंका आदि पांच पुत्रियाँ थी जो सभी वसुदेव जी के भाइयों को ब्याही थी |

देवक ---

देवक के चार पुत्र देववान ,उपदेव ,सहदेव तथा देवरक्षित थे और सात  पुत्रियाँ देवकी ,शान्तिदेवा ,श्रीदेवा ,उपदेवा ,सहदेवा ,देवरक्षिता  तथा वृकदेवा थीं जो सभी वसुदेव जी को ब्याहीं थी |

संदर्भ---

1-ऋग्वेद -दयानद संस्थान ,दिल्ली
2-यजुर्वेद -दयानन्द संस्थान ,दिल्ली
3-मनुस्मति -मनु कृत-वेंकटेश्वर प्रेस ,बम्बई
4-श्रीमद्भागवत महापुराण -गीताप्रेस ,गोरखपुर
5- संक्षिप्त महाभारत-गीता प्रेस ,गोरखपुर
6-वायुपुराण 
7-विष्णुपुराण
8-हरिवंश पुराण
9-मत्स्यपुराण
10-अग्नि पुराण 
11-रामायण तुलसी एवं बाल्मीक कृत
12-सूरसागर महात्मा सुरदास
13-भारत का वृहत इतिहास (भाग 1,2,3)-रमेश चंद्र मजूमदार
14-गजनी से जैसलमेर -हरि सिंह भाटी
15-यदुवंश का इतिहास - महावीर सिंह यदुवंशी
16-ब्रज का सांस्कृतिक इतिहास प्रथम भाग -प्रभु दयाल मित्तल
17-मथुरा -ए डिस्ट्रिक्ट मेमॉयर -ग्रोउस
18-ब्रज का इतिहास प्रथम खण्ड-कृष्णदत्त वाजपेयी
19-मथुरा जनपद का राजनैतिक इतिहास-प्रो0 चिन्तामणि शुक्ल 
20-प्राचीन भारतीय इतिहास का वैदिक युग-,सत्यकेतु विद्याशंकर
21-विद्याभवन राष्ट्रभाषा ग्रंथमाला पुराण -विमर्श -आचार्य बलदेव उपाध्याय
22-प्राचीन भारत में हिन्दू राज्य -बाबू बृन्दावन दास
23-प्राचीन भारत का इतिहास रमाशंकर त्रिपाठी
24-पाणिनीकालीन भारतवर्ष -डा0 वासुदेव शरण अग्रवाल
25-भारतीय पूरा -इतिहास कोश-अरुण 
26-ऐष्यन्त इंडियन हिस्टारिकल ट्रेडिसन -पाजिटर
27-अर्ली हिस्ट्री ऑफ राजपूत -सी0 वी0 वैद्य

लेखक – डॉ. धीरेन्द्र सिंह जादौन  
गांव-लढोता, सासनी 
जिला-हाथरस ,उत्तरप्रदेश 
एसोसिएट प्रोफेसर ,कृषि विज्ञान
शहीद कैप्टन रिपुदमन सिंह ,राजकीय महाविद्यालय ,सवाईमाधोपुर ,राजस्थान ,322001

Comments

Popular posts from this blog

जादों /जादौन (हिन्दी ) /पौराणिक यादव (संस्कृति शब्द ) चंद्रवंशी क्षत्रियों का ऐतिहासिक शोध --

History of Lunar Race Chhonkarjadon Rajput---

Vajranabha, the great grand son of Shri Krishna and founder of modern Braj and Jadon Clan ( Pauranic Yadavas /Jaduvansis ) of Lunar Race Kshatriyas-----