Posts

Showing posts from November, 2021

श्री कृष्ण के वंशज यदुवंशी जादों क्षत्रियों के प्राचीन ऐतिहासिक नगर महावन (पौराणिक गोकुल ) का शोध--

Image
  श्री कृष्ण जी के वंशज यदुवंशी जादों क्षत्रियों के प्राचीन ऐतिहासिक नगर महावन (पौराणिक गोकुल) का शोध-- यमुना पार मथुरा से 14 किमी दूर नीचे की और बहने वाली यमुना की धारा के किनारे पर बसे हुए वर्तमान गोकुल से 4 किलोमीटर आगे, मथुरा से सादाबाद सड़क के सहारे ऊंचे टीले पर सन्निविष्ट महाबन ऐतिहासिक दृष्टि से ब्रज का अति महत्वपूर्ण प्राचीन कस्वा है। यह टीला 100 बीघा में फैला हुआ है, जो कुछ अंशतः प्राकृतिक तथा कुछ अंशत: कृत्रिम है। इसी पर महावन किला स्थित है। जैसा कि इसके नाम से जात होता है कि किसी समय महावन सघन जंगल रहा होगा, क्योंकि बादशाह जहाँ (1634 ई०) ने यहाँ शिकार खेलने/ करने का आदेश दिया था और 4 चीते मारे गये थे। इससे इसके नाम की उपयुक्तता सिद्ध होती महावन का गोकुल पर्यायवाची शब्द है क्योंकि यहाँ पर श्रीकृष्ण की बहुत सी चमत्कारपूर्ण साहसिक शैशवीय कौतुक-क्रीड़ाएँ सम्पन्न हुई थीं, पौराणिक साहित्य में महावन की अपेक्षा गोकुल का नामोल्लेख अधिक हुआ है। मथुरा और महावन (प्राचीन गोकुल) का परस्पर घनिष्ठ जुड़ाव (सम्बन्ध) सुदूर अतीत से रहा है क्योंकि कृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ और पालन पोषण महावन

मध्यकाल के वास्तविक (पौराणिक ) यादवा चन्द्रवंशी क्षत्रियों (राजपूतों ) का ऐतिहासिक शोध --

मध्यकाल के वास्तविक यादवा चन्द्रवंशी क्षत्रियों (राजपूतों ) का ऐतिहासिक शोध ----- वास्तविक (पौराणिक )यादवा क्षत्रिय (राजपूत ) चंद्रवंश के ययाति के पुत्र यदु   वंशधर  हैं। मनु के चार पुत्रों इक्ष्वाकु, प्रांगु, सुद्युम्न तौर शर्वाति ने भारत में सबसे पहले आर्य -राज्य स्थापित किये । यह घटना लगभग 2000 ई. पूर्व की है। इक्ष्वाकु के वंश में रामचन्द्र हुए थे। महाभारत के समय में इस वंश का राजा बृहद्रथ था। इनका वंश सूर्यवश कहलाया। मनु की पुत्री इला का पुत्र पुरूरवा ऐल (चन्द्रवंशी सोम (चन्द्रमा ) के पौत्र व बुध के पुत्र) का उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है। इसी वंश में यदु हुआ, जिसके वंशधर यादवा कहलाये। महाभारत काल में कृष्ण इसी वंश में हुए। महाभारत लगगग 1500 ई. पूर्व हुआ। इनका वंश चन्द्रवंश था । पुराणों में दी वशावलिाँ कहाँ तक सही हैं, ठीक से नहीं कहा जा सकता लेकिन इसमें कोई सन्देह नहीं कि कृष्ण व रामचन्द्र अलग-अलग वंशों में हुए थे- एक चन्द्रवंश से थे , तो दूसरे सूर्यवंश से थे। भारत में मुसलमानों के आने के पहले यादवों का राज्य काठियावाड़, कच्छ, राजस्थान, मथुरा के आस-पास का भाग (जो अब भरतपुर, क

The Yadavas (Modern Jadons ) of Karauli Royal House--

Image
The Yadavas (Modern Jadons )of Karauli Royal House--- Raja Vijayapala and his successors---- Like the Bhatis of Jaisalmer , the chiefs of Karauli  also belonged to the Yadava clan of Rajputs .This Yadava dynasty of Karauli  began with Vijayapala of Bayana . He migrated from Mathura and settled in the hilly region of eastern Rajasthan, where he laid the foundation of the fort and the capital of Vijayamandargarh in 1040.This fort was later  known as Bayana. The Khyata writers refer to his conflict with the Turkish invaders from Ghazni. In contemporary records he is called Paramabhattaraka, which establishes his political preeminence in this line .He may have lived till 1093 . The fort of Bayana , was captured by the Churid Invaders (1). Tahanpala  (1093-1159 ), son of Vijayapala, was a powerful king of this dynasty. In the course of a long reign of sixty-six years he did much to increase the power of his kingdom by constructing the fort of Tahangarh (the Thankar of Persian histories)

जादों राज्य करौली की ऐतिहासिक धरोहरें--

Image
जादों राज्य करौली की ऐतिहासिक धरोहरें- ---- जादों राजपूतों के करौली राज्य में  धार्मिक , प्राकृतिक एवं ऐतिहासिक पर्यटक स्थलों की अधिकता रही है।यहां  लगभग एक दर्जन प्राचीन किले तथा चम्बल घाटी के समानान्तर फैला हुआ कैलादेवी अभयारण्य  है जो यहाँ की विरासत है। यहाँ के प्राचीन भवनों में मुगल तथा राजपूत शैली की वास्तुकला एवं शिल्प का उपयोग हुआ है। रावल पैलेस-- करौली स्थापना के बाद यहाँ के विभिन्न नरेशों ने शाही आवासीय भवनों का निर्माण कराया। यहाँ के प्रसिद्ध मदनमोहन जी का मंदिर रावल पैलेस का ही एक भाग है। पैलेस का प्रमुख द्वार सिटी पुलिस चौकी के पास एक लम्बे चौड़े दालान में खुलता है। पूर्व की ओर एक विशाल दरवाजा है जिसे नगाडखाना दरवाजा कहते है। यह किले का बाहरी एवं पूर्वी द्वार है। इस दरवाजे के अंदर बने हुऐ एक बड़े चबूतरे पर किले की रक्षा के लिए तोपें रखी रहती थीं तथा दरवाजे के ऊपर सदैव नगाडे एवं शहनाईयाँ बजती रहती थी। उत्तर की ओर बने हुए हुआ प्रमुख प्रवेश द्वार में प्रवेश करने के बाद रावल के अलग-अलग भवनों में प्रवेश किया जा सकता है। पूर्व की ओर घोडो के अस्तबल बने हुए हैं। पश्चिम की ओर राजा भँ