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Showing posts from May, 2022

The Yadava Rajputs (Modern Jadon) of Karauli Royal House--

The Yadava Rajputs (Modern Jadons )of Karauli  Royal House  --- Raja Vijayapala and his successors---- Like the Bhatis of Jaisalmer , the chiefs of Karauli  also belonged to the Yadava clan of Rajputs .This Yadava dynasty of Karauli  began with Vijayapala of Bayana . He migrated from Mathura and settled in the hilly region of eastern Rajasthan, where he laid the foundation of the fort and the capital of Vijayamandargarh in 1040.This fort was later  known as Bayana. The Khyata writers refer to his conflict with the Turkish invaders from Ghazni. In contemporary records he is called Paramabhattaraka, which establishes his political preeminence in this line .He may have lived till 1093 . The fort of Bayana , was captured by the Churid Invaders (1). Tahanpala  (1093-1159 ), son of Vijayapala, was a powerful king of this dynasty. In the course of a long reign of sixty-six years he did much to increase the power of his kingdom by constructing the fort of Tahangarh (the Thankar of Persian

A Brief Sketch of the History of Lunar Race Yadava dynastry of Rajputs.

A Brief Sketch of the history of the Lunar race Yadava Dynasty of Rajputs --- In early times the Yamuna was the southern boundary for those Vedic Aryan settlers who might have set up frontier outposts on or near the site on Brajamndal.The earliest Aryan tribe , which came to be associated with this Braj area , seems to have been that of the yadus who are mentioned in the Rigveda as one of the ten tribes taking part in the Dasharajna  or battle of ten kings against Kingh Sudasa  of the Bharatas (1)., Who is said vanquished them (along with the purus and the Matsyas  etc.) after which they , with the closely allied tribe of Turvasa , migrated to these parts (2) For the dynastic history of the Yadus or Yadavas the chief sources of information are the Puranas , the Epics and Jain literature . Lunar race or Chandravansh -- Budh was an ancestor of a branch of the great Hindu people of the time prior to anthentic history.He is traced up to Brahma ,  from whom , he descends through Atri ,

देवगिरि के चंद्रवंशी जाधव (पौराणिक यादव ) राजपूतों का ऐतिहासिक अध्ययन--

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चन्द्रवंशीय जाधव (पौराणिक यादवा /यदुवंशी ) राजपूतों के राज्य देवगिरि (दौलताबाद )का ऐतिहासिक अध्ययन-- - "यहां ये उल्लेखित करना आवश्यक है कि भारतीय एवं विदेशी इतिहासकारों ने "यादवा " शब्द को संस्कृति भाषा का शब्द लिखा है जिसका हिन्दी में अर्थ "जादव " है।ब्रज भाषा में" य" वर्ण का उच्चारण "ज" बोला जाता है हिन्दी साहित्य का अध्ययन के अध्ययन करने पर पाया गया कि " यादवा या यादव " शब्द का अपभ्रंशरूप 16 वीं - 17 वीं शताब्दी के भक्ति काल में  दिखाई देता है। कुछ विद्वानों के अनुसार "यादव" संस्कृति का शब्द है जिसका  हिंदी  "जादव " है जिससे "जादों " हुआ ।भक्ति रचनाओं में तुलसीदास एवं सूरदास  ने अपने श्रेष्ठ रचनाओं जैसे रामायण ,सूरसागर ,आदि में जदुवंश ,जादों ,जदुपति ,जादवपति ,जादोंराय आदि शब्दों का प्रयोग बहुतायत से किया है । तुलसीदास जी ने रामायण में कुछ इस प्रकार लिखा है---          जब जदुबंस कृष्न  अवतारा।            होइहि हरन महा महिभारा।।         कृष्न तनय होइहि पति तोरा ।। .         बचनु अन्यथा होइ न मो

मथुरा जनपद के विस्मृत जादों राजपूत स्वतंत्रता संग्राम सैनानी--

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मथुरा जनपद के विस्मृत जादों राजपूत स्वतंत्रता सैनानी --- 1- रसमई गांव -- रसमई गांव ने भी स्वतंत्रता के युद्ध में प्रशंसनीय भाग लिया ।यहां के अधिकांश ठाकुर अच्छे शिक्षित थे और उन्होंने स्वतंत्रता के युद्ध में सहर्ष भाग लिया और क्षत्रियोचित कार्यों से इस गांव के नाम को गौरवान्वित किया।यही नहीं यहां के पुरुषों ने भाग लिया लेकिन 1932 में तो रसमई की लक्ष्मीदेवी हरभेजी देवी ने भाग लेकर महीनों जेल की यातनाओं को सहन किया ।रसमई के देशभक्त ठाकुरों में निम्न प्रमुख थे। 1-ठाकुर गजराज सिंह पुत्र कीरत सिंह 20-6-1932 में जेल गए। 2-ठाकुर सरदार सिंह पुत्र वीरी सिंह 6 माह जेल। 3-ठाकुर भगत सिंह 4-लक्ष्मीदेवी , 8-4-1932 , 6 माह जेल। 5-हरिभेजीदेवी 2-कुंजेरा गांव- - गोवर्धन मंडल के अंतर्गत कुंजेरा गांव भी भुलाया नहीं जा सकता ।यहां के भी कुछ देश भक्तों ने अपने अनुपम त्याग से ब्रजभूमि को गौरवान्वित किया।कुंजेरा गांव भी देशभक्तों को उत्पन्न करने वाला गांव प्रमाणित हुआ।यहां के उक्त उल्लेखनीय देशभक्तों ने आगे चलकर सन 1932  के आन्दोलन में जेल यात्रा की और इनको अनेक कष्ट सहने पड़े।इन लोगों को आर्थिक कष्ट

फिरोजाबाद जिले के जादों राजपूतों के रजावली गांव का ऐतिहासिक अध्ययन--

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  फिरोजाबाद जनपद में रजावली गांव के जादों राजपूतों का ऐतिहासिक अध्ययन-- पौराणिक इतिहास -- वृषभ वैवत पुराण के अनुसार मौजूदा रजावली गांव का पौराणिक नाम राजा वली के नाम पर पड़ा हुआ था जो अपभ्रंश होकर रजावली हो गया।एक प्रसिद्ध क्षेत्रीय किवदंती के अनुसार यह गांव राजा बली ने बसाया था जिनकी समाधि आज भी प्रत्यक्षरुप से "कदमखण्डी " आश्रम के रूप में रजावली गांव में विद्यमान है।कहा जाता है कि यहां पर वामन भगवान ने राजा बली से साड़े तीन पग जमीन मांगी थी।भगवान ने तीन पगों में तीनों लोकों को नाप लिया था।आधा पग नापने के लिए राजा बली ने स्वयं अपना शरीर नपवा दिया था जो कि उनके चौरासी बीघा जमीन पड़ी हुई है। विख्यात है रजाबली का कदमखण्डी आश्रम-- वह चौरासी बीघा जमीन आज भी "कदमखण्डी आश्रम "के नाम से विद्यमान है तथा धार्मिक स्थल के रूप में क्षेत्र में जाना जाता है ।इस आश्रम में एक एकड़ अधिक क्षेत्रफल में फैला हुआ एक प्राचीन तलाब है जिसमें वर्षभर जल भरा रहता है।कहा जाता है कि श्रद्धा से इस तलाब में स्नान करने से कुष्ठ रोग से निजात मिल जाती है। काफी बड़े क्षेत्रफल में कदम के सुहावने वृ

क्षत्रिय यदुवंश :अखण्ड आर्यावर्त का प्रतीक-

क्षत्रिय यदुवंश : अखण्ड आर्यावर्त का प्रतीक ---- ( उत्तर-पूर्वी राजपूताने - मथुरा, करौली , भरतपुर ,अलवर ,धौलपुर के यादव (जादों ), जैसलमेर के यादव भाटी ,जूनागढ़ एवं जामनगर के चुडासमा, सरवैया,रायजादा और जडेजा यादव ,देवगिरि के जाधव यादव ,द्वारसमुद्र तथा विजयनगर के यादव ,  मैसूर के वडियार यादव ,महोबा के बनाफर यादव ) समस्त राजपूतों के इतिहास में साहस, शौर्य, एवं बलिदान और शहीदों का वर्णन मिलता है। अपनी रियासत राज्य व संस्कृति के गौरव को अक्षुण्ण बनाये रखने में राजपूतों का योगदान इतिहास के पृष्ठों में स्वर्णिम आभायुक्त है। नई पीढ़ी अपने पूर्वजों के इस उज्ज्वल अतीत से प्रेरित होकर समाज के संगठन को मजबूत कर जाति सेवा व राष्ट्र सेवा में समर्पित भावना से अपना बहुमूल्य योगदान कर सकती है। अपने पूर्वजों, वंशों, कुलों का ज्ञान होना नितान्त आवश्यक है। इसी प्रसंग में जातीय बन्धुओं के लिये क्षत्रियों अथवा राजपूत वंशों की जानकारी परमावश्यक है। यहां मैं यदुवंश के विषय में लिखना अति आवश्यक समझता हूं क्यों कि आज कल समस्त क्षत्रियों के इतिहास में कुछ समाज विशेष जोड़-तोड़ कर अपनी महत्वाकांक्षा के लिए अपना गौर

अलीगढ़ जनपद के यदुवंशी जनकवि ठाकुर खेमसिंह "नागर " नगला पदम की गौरव गाथा--

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अलीगढ़ जनपदीय  स्वतंत्रता की क्रांति के एक महानायक जनकवि  ठाकुर खेमसिंह "नागर " नगला पदम् की गौरवशाली जीवन गाथा ---- खेमसिंह नागर सर्वतो मुखी प्रतिभा के धनी जन कवि थे।जन साहित्य और कला के क्षेत्र में ही नहीं , जीवन और जगत के प्रायः सभी क्षेत्रों में इन्होंने मानवता के लिए अपना अभूतपूर्व योगदान दिया है।इनका व्यक्तित्व  प्रभाव शाली था।नागर जी विकास और प्रगति के दृढ़ अंकुर थे ।जीवन के प्रत्येक क्षण में नागर जी क्रियाशील एवं प्रगतिशील रहे थे ।देश के विभिन्न जिलों में इन्होंने देहातों में जाकर स्वरचित देशभक्ति से ओतप्रोत लोकगीत गाये।देहातों में नागर जी ने स्वतंत्रता की क्रांति का स्वर किसानों ,गरीवों एवं मज़दूरों तक में भी फूंक दिया।नागर जी के गीतों का नेताओं की सभाओं और भाषणों की अपेक्षा अधिक प्रभाव पड़ रहा था।नागर जी के गीत लोकगीतों के क्षेत्र में अभूतपूर्व थे।श्रीकृष्ण एवं राधिका जी के जीवन से सम्बंधित गीत लिखे।इन्होंने इन गीतों के भाव और स्वरूप को परिवर्तित किया उनको नया रूप ,नई वाणी दी तथा नई वाणी में नव जाग्रति का संदेश जन -जन तक पहुंचाया। अलीगढ़ के स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर टोडर स