मथुरा जनपद के विस्मृत जादों राजपूत स्वतंत्रता संग्राम सैनानी--

मथुरा जनपद के विस्मृत जादों राजपूत स्वतंत्रता सैनानी ---

1-रसमई गांव --

रसमई गांव ने भी स्वतंत्रता के युद्ध में प्रशंसनीय भाग लिया ।यहां के अधिकांश ठाकुर अच्छे शिक्षित थे और उन्होंने स्वतंत्रता के युद्ध में सहर्ष भाग लिया और क्षत्रियोचित कार्यों से इस गांव के नाम को गौरवान्वित किया।यही नहीं यहां के पुरुषों ने भाग लिया लेकिन 1932 में तो रसमई की लक्ष्मीदेवी हरभेजी देवी ने भाग लेकर महीनों जेल की यातनाओं को सहन किया ।रसमई के देशभक्त ठाकुरों में निम्न प्रमुख थे।

1-ठाकुर गजराज सिंह पुत्र कीरत सिंह 20-6-1932 में जेल गए।
2-ठाकुर सरदार सिंह पुत्र वीरी सिंह 6 माह जेल।
3-ठाकुर भगत सिंह
4-लक्ष्मीदेवी ,8-4-1932 , 6 माह जेल।
5-हरिभेजीदेवी

2-कुंजेरा गांव--

गोवर्धन मंडल के अंतर्गत कुंजेरा गांव भी भुलाया नहीं जा सकता ।यहां के भी कुछ देश भक्तों ने अपने अनुपम त्याग से ब्रजभूमि को गौरवान्वित किया।कुंजेरा गांव भी देशभक्तों को उत्पन्न करने वाला गांव प्रमाणित हुआ।यहां के उक्त उल्लेखनीय देशभक्तों ने आगे चलकर सन 1932  के आन्दोलन में जेल यात्रा की और इनको अनेक कष्ट सहने पड़े।इन लोगों को आर्थिक कष्ट एवं संकट के दिन भी व्यतीत करने पड़े।
1-ठाकुर सोनपाल सिंह -कुंजेरा के देशभक्त ठाकुर सोनपाल सिंह की मां और धर्मपत्नी भी स्वतंत्रता के आंदोलन के पुनीत यज्ञ में सम्मलित हुई।
2-ठाकुर भोजपाल सिंह और उनकी धर्मपत्नी ने भी आन्दोलन में कार्य किया। इनको 1932 में 6 माह जेल में रहना पड़ा।
3-ठाकुर चिमन सिंह ,4-3-1932, 3माह जेल 20रुपये जुर्माना ।
4-परशराम सिंह ,4-3-1933,3 माह जेल ,20 रुपये जुर्माना ।
5-दुलारी देवी पत्नी ठाकुर सोनपाल सिंह 25-01-1932 को जेल गयी तथा 6 माह जेल में रही।
6-ग्यारसो देवी पत्नी ठाकुर पत्नी भोजपाल सिंह 25-1-1932 जेल ,6 माह जेल रही।
7-धनकोर माता ठाकुर भोजपाल सिंह 25-1 1932 , 6 माह जेल।
8-ठाकुर शेर सिंह पुत्र चन्दन सिंह 8-8-1933 ,6 माह जेल।
9-ग्यासीराम पुत्र मेंडू सिंह जेल गए।
10-शेरसिंह पुत्र लहर सिंह 2-2-1933 ,6माह जेल 20 रुपये जुर्माना ।

3-बन्दी गांव--

1-ठाकुर पोखपाल सिंह ,जेल यात्री रहे।
2-ठाकुर कृष्णपाल सिंह ,3 माह जेल 20 रुपये जुर्माना ।
3-ठाकुर मदन सिंह, 3माह जेल 20 रुपये जुर्माना ।
4-नारायण बाबा , जेल यात्री ।
5-लालाराम ,कई दफ़ाएँ इन पर लगाई ,काफी समय जेल में रहे।

4-छाता --

1-हरेकृष्ण सिंह पुत्र चन्दा सिंह 23-8-1932, 1 वर्ष जेल ,कठोर यातनाएं सही।
2-खेम सिंह ,1932 ,3 माह जेल।
3-गंगाधर सिंह 17-8-1932 , 6 माह जेल ,10 रुपये जुर्माना ।
4-चरण सिंह पुत्र विरजी सिंह ,16-9-1932,6 माह जेल 10 रुपये जुर्माना।

5- नरी गांव--

1-ठाकुर विजयपाल सिंह

6-कोसी गांव-यहां के ठाकुरों ने भी इस राष्ट्र यज्ञ में राष्ट्रीय जोश के साथ भाग लिया।

7-अड़ींग गांव के जादों ठाकुरों का बलिदान (जनश्रुति के आधार पर)--

   मथुरा गोवर्धन मार्ग (सड़क) पर बसा हुआ जादों ठाकुरों  का गांव अड़ीग भी स्वतंत्रता की क्रान्ति में सक्रिय रहा था। यहां पर फोंदाराम जाट द्वारा निर्मित एक मिट्टी का किला था जो अब लगभग ध्वस्तवस्था में है।फोंदाराम भरतपुर के राजा सूरजमल (1755-63 ई0 )  का एक जागीरदार था।क्रान्तिकारियों ने यहाँ के खजाने पर अधिकार करने के लिये चढ़ाई की थी लेकिन जमींदारों और सरकारी अधिकारियों के सक्रिय अवरोध के कारण वे अपने उद्देश्य में सफल न हो सके। उन्हें सूचना मिलते ही पीछे हटने को बाध्य होना पड़ा। क्रान्तिकारियों का एक और दल उन्हीं दिनों अड़ीग आया था। यहां के पटवारी भजनलाल को जब यह सूचना मिली तो उसने अग्रेजों को अपने मकान में छिपा लिया । जब क्रान्तिकारी आये तो उसके लिये दावत भी दी। क्रान्तिकारियों को यह कल्पना नहीं थी कि उस आतिथ्य का पीछे भजनलाल का एक देशद्रोहिता पूर्ण कार्य छिपा हुआ है। अन्त में क्रान्तिकारी लोग अड़ींग को बिना किसी प्रकार की क्षति पहुंचाये हुए वहां से चले गये । 2अक्टूबर  1857 के अन्तिम दिनों ब्रिटिश पुलिस ने यहां 9 क्रान्तिकारियों को प्रचुर सोना के साथ गिरफ्तार किया था। इन्हें आगरा भेज दिया गया था और सोना पकड़ने वालों में बाँट दिया गया था। सन् 1857 के स्वातंत्र्य  युद्ध में अंडींग के  जादों ठाकुरों ने विशेषतः सक्रिय भाग लिया था । उस समय इनके 80 या 85 घर थे। प्रायः अडींग की सब जमींदारी  इन्हीं लोगों के हाथ में थी। उस समय अडींग एक तहसील थी और ऊंचे टीले पर स्थित भरतपुर राज्य के खानदानी फौदाराम जाट की हवेली थी जो आज टूटी-फूटी दशा में है। कहते हैं कि फोदाराम ने क्रान्ति के पूर्व ही जहर खाकर अपने जीवन का अन्त कर लिया था। स्वतन्त्रता के युद्ध में अड़ीग के आसपास के गांवों ने सहयोग प्रदान किया था जिसमें नैनूपटटी के जाट भी सम्मिलित थे। बाद में अडींग के लगभग 70 देशभक्त जादों ठाकुरों को तहसील लूटने के अपराध में फौदाराम जाट की हवेली में फांसी पर लटका दिया था। उनकी जमींदारियाँ जप्त करली गयीं थी।अत्याचारों के कारण यहां के ठाकुरों को बड़ी संख्या में पलायन करना पड़ा था।इस राष्ट्रमुक्ति संघर्ष में सेठ के प्रतिनिधि लाला रामवक्स ने विदेशियों को प्रश्रय देकर देश-द्रोहिता का परिचय दिया था।अंग्रेजों ने उसे तथा मुन्शी भजनलाल पटवारी को पुरस्कार भी दिया था।
स्थानीय ठाकुर रघुनाथ सिंह से प्राप्त जानकारी के अनुसार आज की टूटी-फूटी भटियारों की सराय में जो 1857 में अच्छी दशा में थी देशभक्तों को गिरफ्तार किया गया था।देशभक्त जादों ठाकुरों के परिवारों को गिन-गिन कर फांसी पर चढ़ा दिया था।यहां तक कि अबोध बच्चों को भी नहीं छोड़ा गया था।जब अड़ींग के जादों ठाकुरों का उन्मूलन करने विदेशी कुकृत्य एवं विनाश में संलग्न थे उसी समय ठाकुर हरदेवसिंह की गर्भवती पत्नी किसी प्रकार बचकर कुंजेरा गांव पहुंच गई थी वहीं पर ठाकुर फकीरचन्द का जन्म हुआ ।इन्हीं के खानदान के कुछ घर अड़ींग में हैं।

लेखक-डा0 धीरेन्द्र सिंह जादौन
गांव -लढोता , तहसील -सासनी 
जनपद- हाथरस, उत्तर प्रदेश ।
एसोसिएट प्रोफेसर कृषि मृदा विज्ञान
शहीद कैप्टन रिपुदमन सिंह राजकीय महाविद्यालय ,सवाईमाधोपुर ,राजस्थान ।


Comments

Popular posts from this blog

जादों /जादौन (हिन्दी ) /पौराणिक यादव (संस्कृति शब्द ) चंद्रवंशी क्षत्रियों का ऐतिहासिक शोध --

History of Lunar Race Chhonkarjadon Rajput---

Vajranabha, the great grand son of Shri Krishna and founder of modern Braj and Jadon Clan ( Pauranic Yadavas /Jaduvansis ) of Lunar Race Kshatriyas-----