ऐतिहासिक करौली परिक्षेत्र के प्राकृतिक सौंदर्य एवं दार्शनिक स्थल --

ऐतिहासिक करौली  परिक्षेत्र के प्राकृतिक सौन्दर्य  एवं दार्शनिक स्थल --- 

करौली राज्य की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि----


राजस्थान के पूर्व भाग में स्थित करौली एक छोटी सी  प्राचीन रियासत थी। जैसलमेर की भांति करोली के यादव भी अपने को भगवान कृष्ण के वंशज मानते थे। कृष्ण पहले बृज भूमि में राज करते थे, पर बाद में वे द्वारका चले गये थे। कृष्ण के बाद यादवों की एक शाखा ने पुनः बृज देश में (मथुरा) अपना राज्य स्थापित कर लिया था। ख्यातों के अनुसार मथुरा में सन 879 ई. के आसपास इच्छपाल यादव राज्य करता था। पर जब भारत की उत्तरी-पश्चमी सीमा से यवनों के आक्रमण बढ़ने लगे तो इच्छपाल का वंशज विजयपाल मथुरा छोड़कर मानी के पहाड़ियों में चला गया। उसने सन 1040 में वहां एक किला बनाया जो अब बयाना के किले के नाम से जाना जाता है। गजनवियों ने 1093 में इस किले पर अधिकार कर लिया और विजयपाल को मार डाला ।

विजयपाल के उत्तराधिकारी तवनपाल ने बयाना के निकट तवनगढ़ का किला बनवाया। उसने अलवर, भरतपुर, धोलपुर, करोली, आगरा, ग्वालियर और मथुरा के इलाकों पर अपना वर्चस्व स्थापित किया। उसने सार्वभौम शासक की तरह "परम भट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर' की उपाधि धारण की ।तिमनपाल की सन  1160 में मृत्यु हो और  उसके उत्तराधिकारी कमजोर सिद्ध हुये । उसके पोते कुंवरपाल को मुहम्मद गोरी ने सन् 1196 में हरा दिया और उसके राज्य पर अधिकार कर लिया। उसने रीवां में शरण ली। उसके वंशज लगभग 150 वर्षों तक इधर-उधर डोलते रहे। सन् 1327 ई. के लगभग ने अर्जुनपाल ने अपने पैतृक राज्य के कुछ भागों पर पुनः अधिकार किया। उसने सन् 1348 में करौली नगर बसाया और उसे अपनी राजधानी बनाया। उसके उत्तराधिकारी विक्रमादित्य अभयपाल, प्रतापरूद्रा आदि राजकाज चलाते रहे। प्रतापरूद्र का पुत्र चन्द्र पाल (चन्द्रसेन ) सन् 1449 में करोली की गद्दी पर बैठा। उसे मालव के सुल्तान महमूद खिलजी ने हराकर करौली पर अधिकार कर लिया। चन्द्रपाल के पोते गोपालदास ने अकबर के समय में पुनः इस क्षेत्र पर अधिकार कर लिया था।तभी से यह क्षेत्र यदुवंशी राजाओं के अधीन रहा है। 
   प्राचीन नाम कल्याणपुरी का अपभ्रंश स्वरूप नाम करौली है। करौली रियासत का सन् 1348 ई0 से लेकर सन 1947 तक  गौरवशाली इतिहास रहा है। यहां के किले व दुर्ग सामरिक दृष्टिकोण की अनेक महत्वपूर्ण 'घटनाओं व संघर्षों के साक्षी रहे है। करौली का समृद्ध इतिहास यहां के कण-कण में व्याप्त है।
करौली जनपद भौगोलिक दृष्टि से ब्रज क्षेत्र के अन्तर्गत आता है।उत्तरप्रदेश एवं मध्यप्रदेश की सीमाओं पर नदियों की धारा के बीच अरावली पर्वत श्रृंखलाओं में  राजस्थान के पूर्वी भाग में स्थित है।

पुरातत्व का खजाना---

(1) तिमनगढ़ दुर्ग--
बयाना से 23 किमी दक्षिण में एक उन्नत शिकार पर स्थित है। महाराज तिमनपाल द्वारा  सन 1058 ई0 में निर्मित यह दुर्ग पाषाण की मूर्तियों के अमिट खजाने एवं हस्तशिल्प के बेजोड़ नमूनों के लिए अर्न्तराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त है। यह स्थान करौली से 42 किमी दूर मासलपुर के पास स्थित है। दुर्ग पर्वतमालाओं से आवृत वन सम्पदा से परिपूर्ण तथा नैसर्गिक सौंदर्य से सुशोभित है जो यदुवंशियों के शौर्य ,वीरता और पराक्रम की अनेक घटनाओं का साक्षी है।
 
(2) मण्डरायल दुर्ग --
 यह दुर्ग पूर्व मध्यकाल का एक प्रसिद्ध दुर्ग है जो चम्बल नदी के किनारे एक उन्नत पहाड़ी के शिखर भू-भाग पर स्थित है। इस दुर्ग का निर्माण बयाना के राजा विजयपाल के पुत्र मदनपाल ने सम्बत 1184 के लगभग कराया था।मध्यकाल में सामरिक दृष्टि से  यह महत्वपूर्ण दुर्ग रहा है। चम्बल नदी के किनारे पर्वत श्रृंखलाओं के बीच लाल पत्थरों से बना है। करौली से 40 किमी की दूरी पर स्थित है।

(3) उटगिरि किला -
यह दुर्ग घने जंगल के भीतरी भाग ।इन स्थित है।इस दुर्ग का निर्माण लोधी जाति के लोगों ने कराया था ।उन्होंने ही समय -समय पर यहां तालाब और बांध बनवाये ।महाराजा अर्जुनपाल ने सम्बत 1397 में इस दुर्ग को लोधियों को खदेड़ कर हस्तगत किया था।
 करौली से 40 किमी पश्चिम में करनपुर के पास पर्वत श्रृंखला की सुरंगनुमा पहाडी पर स्थित है। राजा प्रतापरुद्र ने उंटगिर को अपनी राजधानी बनाया।बाद में 15 वीं सदी में राजा चन्द्रसेन इस दुर्ग में रहे थे।
  
(4) बहादुरपुर किला -

   करौली शहर से 15 किमी  दूरी पर स्थित है तथा अपने  गौरवशाली अतीत की यादों का साक्षी बनकर खण्डर स्थित में खड़ा है। इसका विस्तार 1566 से 1644 तक होता रहा। इसका शिल्प अद्भुत है। दुर्ग के मुख्य प्रवेश द्वार के दोनों तरफ सुरक्षा सैनिकों के लिए प्रकोष्ठ बने हुए हैं।
 
(5) देवगिरि--
   इस किले का निर्माण महाराजा देव बहादुर गोपालदास के समय हुए होने के आधार पर इसका नाम देवगिरि रखा गया।यह दुर्ग उंटगिर के शासकों का आवास था।लोग देवगिरि में रहते थे।
 रणथम्भौर अभ्यारण्य क्षेत्र में उंटगिरि के पूर्व में चम्बल के किनारे ऊँचाई पर स्थित है। किले का अधिकांश भाग खण्डहर होते हुऐ भी अतीत की घटनाओं का साक्षी है।
   
 (6) महल गठमोरा - 
 जिले की नादौती तहसील के गठमोरा गांव राजा मोरध्वज महल एवं मन्दिर पुरातत्व की अमिट धरोहर है।

(7) शहरसोप किला --
नादौती में ही शहर का किला ऊँची पहाड़ी पर विनिर्मित है। यहां के ठिकानेदार आमेर के राजा पृथ्वीराज के पुत्र पच्चाण के वंशज है। 16 विशाल गुर्जो सहित  चारो ओर  वृहद परकोटा दूर से ही आकर्षित करते हैं। 


(8) फतेहपुर किला--
इस किले का निर्माण हरनगर के ठाकुर 
घासीराम ने सन 1702 ई0 में कराया था।
 करौली से 30 किमी दूर कंचनपुर मार्ग पर 250 वर्ष पूर्व निर्मित यह किला यदुवंशियों की 16 शाखाओं का मुख्यालय था। क़िले के अन्दर आवासीय भवनों के अलावा पानी के टाँके एवं हनुमान जी का मन्दिर है।
 
(9) किला नारौली गांव - 

सपोटरा के नारौली गांव में ऊँची पहाड़ी पर स्थित इस किले का निर्माण सन 1783ई0 में करौली के यदुवंशी मुकुन्दपाल के वंशजों ने कराया था। राजा भंवरपाल जी ने किले के चारों ओर परकोटा एवं कचहरी का निर्माण कराया था ।
(10) रामठरा किला --
इस किले का निर्माण करौली के यादवों ने कराया था।सन 1645 में इस किले का करौली महाराजा ने अपने पुत्र भोजपाल को जागीरदार बना कर इस किले का अधिकारी बनाया था।
करौली के सपोटरा उपखण्ड में स्थित यह किला कैलादेवी अभ्यारण्य से 15 किमी दूरी पर है। इसकी दिवारों व छतों पर आकर्षक चित्रकारी की गई है। यहां पर्यटकों के ठहरने की भी व्यवस्था है।

(11)सपोटरा दुर्ग--
सपोटरा दुर्ग करौली के महाराजा धर्मपाल के वंशज राव उदयपाल ने बनवाया था जो महाराजा रतनपल के पुत्र थे।राव उदयपाल को सपोटरा ठिकाना दिया गया था तथा उनके भाई कुंवरपाल करौली के सन 1688 में राजा बने थे।ये दुर्ग जीरौता से 11किमी पूर्व में है।इसमें एक खूबसूरत तालाब भी बना हुआ था।

(12)थाली दुर्ग -
यह दुर्ग मचीलपुर से उत्तर-पश्चिम में एक पहाड़ी पर स्थित है। इस दुर्ग का निर्माण
महाराजा  हरबख्श पाल ने कराया था। इस दुर्ग में अन्दर एक कुंआ है जिससे जलापूर्ति की जाती भी ।
(13) कुरा दुर्ग --

मचीलपुर से 3 किमी. पूर्व में यह दुर्ग स्थित है। यह किला  महाराजा गोपालदास ने बनवाया था। दुर्ग के पास एक नाला बहता है जिस पर आम के बाग थे।  दुर्ग के अन्दर एक गहरा पूल है।

(14 )मांची दुर्ग--
यह दुर्ग मांची गांव में था। यह हरिदास ठाकुर के वंशजों की रियासत थी। यहां पर एक दुर्ग था जो महाराजा  प्रतापपाल द्वारा तोड़ कर ध्वस्त किया गया था क्यों कि मांची ठाकुर उनके समय में विद्रोही थे। 

(15)अमरगढ़ दुर्ग--
अमरगढ़ दुर्ग---

यह करौली रियासत का सशक्त ठिकाना रहा । यहाँ का पहला ठाकुर राजा जगमन का बेटा अमरमान था। इसी ने इस गिरि दुर्ग का निर्माण कराया और दुर्ग के नीचे आबादी विकसित कराई। यहाँ के ठाकुरों का आमतौर पर अपने शासकों से मतभेद रहा करता था। महाराजा मानिक पाल (1722-1804 ई) के शासन में कुँवर अमोलक पाल ने सन् 1802 ई0 में यह किला उमरगढ़ के ठाकुरों से छीन लिया। इसी प्रकार महाराजा हरबक्स पाल (1804-1837 ई) ने भी अपने समय में इस गढ़ को एक बार हस्तगत कर लिया था।
महाराणा प्रताप्रपाल (1837-40 ई) ने यहाँ के ठाकुर लक्ष्मणपाल को विरोधियों की मदद करने के इल्जाम में (सन् 1947 ई) पन्द्रह हजार रूपयों से दंडित किया। यह गढ़ आज भी सुरक्षित है जिसमे ठाकुरों के वंशज रहते हैं। इस दुर्ग से कुछ ही दूरी पर क्षेत्र की प्रसिद्ध गुफा घण्टेश्वर है, जो वन्यजीवों के साथ अपनी प्राकृतिक सम्पदा से अकूत है।"
अमरगढ़ दुर्ग में पानी के संग्रहण हेतु एक ताल भी था।

(16) बाजना दुर्ग -
बाजना में भी एक किला था जो अब खण्डहर अवस्था में है।


(17) जम्बुरा दुर्ग--
यह दुर्ग मचीलपुर परगने के पूर्वी इलाके में लगभग 3 मील दूरी पर था। 
(18) निन्दा किला -यह किला मंडरायल के उत्तर में 3 मील दूरी पर स्थित था अब खण्डहर है।

(19)उन्ड का किला-
 यह किला मंडरायल के उत्तरी-पूर्वी भाग में चम्बल के पास स्थित था।

(20)खुर्दयी  का किला--
यह किला मंडरायल के पास स्थित है।

(21) दौलतपुरा का किला --

उंटगिरी के पास 14 मील पश्चिमी क्षेत्र में है।





करौली के दर्शनीय ऐतिहासिक स्थल---

1. शिकार गंज महल
2. रावल पैलेस
3. भंवर विलास पैलेस 
4. हरसुख विलास उद्यान
5. गोपाल सिंह की छत्तरी
6. सुख विलास बाग एवं शाही कुण्ड
7. दरगाह कबीर शाह

प्राकृतिक स्थल----

चम्बल नदी के किनारे 2 मील तक फैले हुए बीहड (रिवाइन्स ) यहां की प्रमुख विशेषता है।इसी लिए डांग क्षेत्र कहलाता है।
करौली जिला क्षेत्र प्रकृति की अनुपम धरोहर हैं । यहां डांग क्षेत्र में मनोरम घाटियां है एवं अनेक खोह, कन्दरा एवं झरने है। साथ ही रणथम्भौर अभ्यारण्य से जुड़े वन क्षेत्र में असंख्य वन्य जीवों की शरण स्थलियां तथा विभिन्न प्रजातियों के वृक्ष है। वर्षा ऋतु में यहां की छटा अद्भुत दिखाई देती है। हिण्डौन के जगरौटी क्षेत्र व टोडाभीम नादौती में भी प्राकृतिक स्थलों की कमी नहीं है। 

(1) कैलादेवी वन अभ्यारण्य -

जिला मुख्यालय से मात्र 23 किमी दक्षिण में रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान से जुडा हुआ व 782 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला वफर वन क्षेत्र कैलादेवी अभ्यारण्य कहलाता है। प्राकृतिक सम्पदा से भरपूर इस क्षेत्र को  1955 में संरक्षित क्षेत्र घोषित किया वहीं जुलाई 1983 भारत सरकार ने वन अभ्यारण घोषित किया।

(2) राष्ट्रीय चम्बल घडियाल अभ्यारण्य ---
 घडियालों की लुप्त होती जा रही प्रजाति को सुरक्षित रखने के लिए 280 वर्ग किमी जलीय क्षेत्र को अभ्यारण्य घोषित किया है। यहां घडियाल, मगरमच्छ, उदबिलाव तथा टरटल्स पाये जाते हैं। साथ ही 150 प्रजातियों के पक्षियों व स्थानीय वन्यजीवों की बहुतायत है।

धार्मिक आस्था के केन्द्र---

धार्मिक आस्था केन्द्रों व मन्दिरों की बहुलता के कारण करौली को राजस्थान का मिनी वृन्दावन कहा जाता है। अकेले करौली नगर में ही लगभग 200 छोटे-बड़े प्राचीन मन्दिर है जिनमें मदन मोहन जी के अलावा कल्याण राय, नवलबिहारी जी, राधा गोपाल जी, गोविन्द देव जी, प्रताप शिरोमणि, सूर्यनारायण मन्दिर आदि दर्शनीय है।

(1) करौली का मदनमोहन जी का मन्दिर---
 
महाराज गोपालसिंह को इष्टदेव द्वारा स्वप्न में दिये जाने पर श्रीजी की चमत्कारिक प्रतिमा की स्थापना कर भव्य मन्दिर निर्माण किया। देश भर से लाखों कृष्ण भक्त श्रृद्धालु वर्ष भर आते रहते है।

2) शक्तिपीठ कैलादेवी- 

करौली से 22 किमी दूर दक्षिण में त्रिकुट पर्वत पर यह प्राचीन मन्दिर स्थित है। वर्ष भर लाखों श्रृद्धालु देश के विभिन्न मागों से दर्शनार्थ आते है। चैत्रमास में। प्रसिद्ध लख्खी मेला भरता है जिसमें श्रृद्धालु उतरप्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात, दिल्ली, हरियाणा व अन्य। स्थानों से पैदल व वाहनों से आते है। जगह-जगह ढोल-नगाड़ो की थाप पर नृत्य व लांगुरियां गीतों का गायन लोक संस्कृति को विशिष्ट पहचान है। - करनपुर गांव में प्राचीन मन्दिर स्थित है।


(3) बीजासन माता का मन्दिर --

कैलादेवी से 3 किमी खोहरी गांव में प्राचीन मन्दिर है। 
(4) गुमानो माता का मन्दिर - 
कैलादेवी से 35 किमी दूर करनपुर गांव में प्राचीन मन्दिर स्थित है।

(5) अंजनीमाता का मन्दिर - 

करौली से 3 किमी विश्वास गांव की पहाड़ी पर स्थित इस मन्दिर में बालक हनुमान जी को स्तनपान कराती माता अंजनी की चमत्कारिक प्रतिमा है।करौली एवं सबलगढ़ के समस्त यदुवंशी राजपूत इनको अपनी कुलदेवी मानते हैं।
(6) जैन तीर्थ श्री महावीर जी --

करौली से 45 किमी बम्बई-दिल्ली रेल मार्ग पर सम्पूर्ण भारत के जैन मतावलम्बियोंका आस्था केन्द्र श्री महावीर जी जिले का प्रमुख धार्मिक पर्यटन स्थल है। यहाँ लगभग 400 वर्ष पूर्व भूगर्भ से निकली भगवान महावीर की वाम्रवर्णी पद्मासन प्रतिमा मुख्य मन्दिर में स्थापित हैं। यही गम्भीर नदी तट पर भगवान शांतिनाथ की 32 फिट ऊँची भव्य प्रतिमा है तथा महिला महाविद्यालय परिसर में भगवान पार्श्वनाथ का कांच का चित्राकर्षक जिनालय है। मन्दिर ट्रस्ट द्वारा हजारों लोगों को ठहराने की सुन्दर व्यवस्था की गई है।

 (7) मेहन्दीपुर बालाजी - 
 
करौली नगर  से 80 किमी उत्तर में राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 11 पर यह प्रसिद्ध धार्मिक स्थल समस्त भारत के हनुमान भक्तों की आस्था का केन्द्र बना हुआ है। यात्रियों के ठहरने के लिए करीब ढाई सौ धर्मशाला, होटल बने हुऐ है।

(8) कैमरी का जगदीश मन्दिर --
करौली जिले की नादौती तहसील के कैमरी गांव में जगदीश भगवान का मन्दिर क्षेत्रीय नागरिकों के श्रद्धाभक्ति का प्रमुख केन्द्र है।

करौली के मेले---

राजस्थान के करौली जिले के विभिन्न अंचलों में आयोजित मेले यहां की अनूठी लोक संस्कृति के परिचायक है। हर उम्र जाति वर्ग के नर -नारियों की सोल्लास सहभागिता लोकरंजन की तस्वीर प्रस्तुत करती है। इन मेलों में यहां के लोक जीवन की विशिष्ट शैली, सांस्कृतिक मूल्यों, जन विश्वास व आस्था की अभिव्यक्ति दिखाई देती है। 

(1) कैलादेवी का मेला ---

चैत्र कृष्णा एकादशी नवरात्रा स्थापना से अष्टमी तक लख्खी
 मेला श्री महावीरजी के मेले की सवारी से चैत्र शुक्ल दसवी तक तथा कार्तिक मास में। प्रतिवर्ष आयोजित होता है। लाखों दर्शनार्थी लांगुरियां गीतों पर नाचते-गाते, ढोल, ढप बजाते माता के दरबार में माथा टेंकते है। जगह-जगह जोगनियों के नृत्य व लांगुरिया गीतों की गूंज सुनाई पड़ती है।

(2) मेला महावीर जी --

श्री महावीरजी में चैत्र शुक्ला त्रयोदशी से वैशाख कृष्णा प्रतिपदा तक विशाल मेला लगता है। जिसमें जैन धर्मावलम्बियों के साथ स्थानीय जातियों के लोग भी भारी संख्या में सम्मलित  होते है। रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम, कवि सम्मेलन, भजन संध्या आदि कार्यक्रमों का भव्य आयोजन होता है।

 (3) जगदीश जी का मेला - नादौती के
कैमरी गांव में स्थित इस प्रमुख धार्मिक केन्द्र पर बसंत पंचमी के अवसर पर विशेष मेले का आयोजन किया जाता है।

(4) अंजनीमाता का मेला - करौली हिण्डौन मार्ग पर स्थित माता अंजनी के मन्दिर पर
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में देव उठनी एकादशी को भव्य मेला लगता है। 

(5) करौली में गणेश जी के मेले --

प्रतिवर्ष गणेश चतुर्थी पर करौली नगर के प्राचीन गणेश मंदिरों में मेलों का आयोजन किया जाता है।

(6) शिवरात्रि का मेला--

 माघ शुक्ल 12 से फाल्गुन कृष्ण 6 तक करौली में रियासत काल से ही मेला लगता है। यहां पहले विशाल पशुमेला तथा बाद में बच्चों का मेला लगता है।
 
संदर्भ---
1-गज़ेटियर ऑफ करौली स्टेट -पेरी -पौलेट ,1874ई0
2-करौली का इतिहास -लेखक महावीर प्रसाद शर्मा
3-करौली पोथी जगा स्वर्गीय कुलभान सिंह जी अकोलपुरा 
4-राजपूताने का इतिहास -लेखक जगदीश सिंह गहलोत
5-राजपुताना का यदुवंशी राज्य करौली -लेखक ठाकुर तेजभान सिंह यदुवंशी 
6-करौली राज्य का इतिहास -लेखक दामोदर लाल गर्ग
7-यदुवंश का इतिहास -लेखक महावीर सिंह यदुवंशी 
8-अध्यात्मक ,पुरातत्व एवं प्रकृति की रंगोली करौली  -जिला करौली 
9-करौली जिले का सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक अध्ययन-लेखक डा0 मोहन लाल गुप्ता
10-वीर-विनोद -लेखक स्यामलदास 
11-गज़ेटियर ऑफ ईस्टर्न राजपुताना (भरतपुर ,धौलपुर एवं 
करौली )स्टेट्स  -ड्रेक ब्रोचमन एच0 ई0 ,190
12-सल्तनत काल में हिन्दू-प्रतिरोध -लेखक अशोक कुमार सिंह
13-राजस्थान के प्रमुख दुर्ग -लेखक रतन लाल मिश्र 
14-राजस्थान के प्रमुख दुर्ग-डा0 राघवेंद्र सिंह मनोहर
15-तिमनगढ़-दुर्ग ,कला एवं सांस्कृतिक अध्ययन 
16-करौली का यादव राज्य ;रणबांकुरा मासिक में (जुलाई 1992 ) कुंवर देवीसिंह मंडावा का लेख ।

लेखक -डॉ0 धीरेन्द्र सिंह जादौन 
गांव-लाढोता ,सासनी 
जिला-हाथरस ,उत्तरप्रदेश
एसोसिएट प्रोफेसर ,कृषि मृदा विज्ञान 
शहीद कैप्टन रिपुदमन सिंह राजकीय महाविद्यालय ,सवाईमाधोपुर ,राज


Comments

Popular posts from this blog

जादों /जादौन (हिन्दी ) /पौराणिक यादव (संस्कृति शब्द ) चंद्रवंशी क्षत्रियों का ऐतिहासिक शोध --

History of Lunar Race Chhonkarjadon Rajput---

Vajranabha, the great grand son of Shri Krishna and founder of modern Braj and Jadon Clan ( Pauranic Yadavas /Jaduvansis ) of Lunar Race Kshatriyas-----