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कवि जदुनाथ के ग्रन्थ वृतविलास में वर्णित करौली जादों राजवंश की वंशावली का ऐतिहासिक शोध--

कवि जदुनाथ के वृतविलास ग्रन्थ में वर्णित करौली जादों राजवंश की वंशावली का ऐतिहासिक शोध  कवि जदुनाथ का "वृतविलास ग्रन्थ  "--- भरतपुर राज्य के बयाना नगर  का प्राचीन नाम 'श्रीपथापुरी' वहाँ फे शिलालेखों में लिखा मिलता है । प्राचीन स्थानों तथा वस्तुओं का निरीक्षण करने के अतिरिक्त  वहाँ के कई एक हस्तलिखित संस्कृत, प्राकृत और  हिन्दी के पुस्तक-संग्रहों का भी अध्ययन किया। बोहरा छाजूराम के संग्रह में कई  हस्तलिखित हिन्दी पुस्तकें भी मिली  जिनमें से वृतविलास और आनंद  राम कृत गीता के हिंदी अनुवाद भी मिले। 'वृतविलास हिन्दी पिंगल भाषा का ग्रंथ है और उसका रचयिता कवि जदुनाथ , प्रसिद्ध कवि चंदबरदाई का वंशज था। उसने करौली के राजा गोपालसिंह ( गोपालपाल )  की कीर्ति को चिरस्थाई करने के निमित्त उक्त ग्रंथ की रचना की और “ गोपालसिंह कीर्ति-प्रकाश " नाम से भी उसका परिचय दिया है । ग्रंथ के प्रारम्भ में कवि ने करौली के राजवंश  एवं अपने कुल का विस्तृत रूप से परिचय दिया है। ये दोनों  विषय हिंदी साहित्य एवं ऐतिहासिक खोज के लिये उपयोगी होने से मैंने उन अंशों की पूरी नक्ल कर ली है जो नीचे

त्रिपुरानगरी (ताहनगढ़ दुर्ग ) के यदुवंशी महाराजा तहनपाल के वंशजों का ऐतिहासिक शोध --

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त्रिपुरानगरी (ताहनगढ़ दुर्ग )के यदुवंशी महाराजा तिमनपाल के वंशज-- धर्मपाल एवं हरियाहरिपाल-- त्रिभुवनगिरि (ताहनगढ़) के यादव शासकों के बारे में अति विश्वसनीय श्रोत उपलब्ध नहीं है। इस लिए बाद के शासकों एवं उनके  वंशधरों के कालक्रम के  विषय में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता । महाराजा तिमनपाल का ज्येष्ठ पुत्र धर्मपाल था जिसे तिमनपाल ने अपना उत्तराधिकारी घोषित किया लेकिन उसका  दूसरा पुत्र हरिपाल बड़ा ही साहसी व बहादुर था। उसकी प्रशासनिक कुशलता से प्रभावित होकर  महाराजा तिमनपाल ने उसे शासन की जिम्मेदारी सौंप दी थी। कहा जाता है कि वह (हरिपाल) गजनी के सुल्तान के घोड़े को तिमनगढ़ ले आया था  तथा बयाना (विजयमन्दिर गढ़) के आक्रमणकारी अबुवक्रकन्धारी से उसने बदला लिया। इस बहादुरी से प्रसन्न होकर तिमनपाल ने राज्य का शासन उसके सुपुर्द कर दिया था। यद्यपि बड़ा पुत्र होने के आधार पर तिमनपाल की मृत्यु के उपरान्त , धर्मपाल राज्य का उत्तराधिकारी बना तथा उसका राज्याभिषेक हुआ। किन्तु उसके राज्यारोहण की स्थिति के विषय में स्प्ष्ट प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं । यद्यपि धर्मपाल राजगद्दी पर आसीन हुआ , लेकिन राज्य