कवि जदुनाथ के ग्रन्थ वृतविलास में वर्णित करौली जादों राजवंश की वंशावली का ऐतिहासिक शोध--

कवि जदुनाथ के वृतविलास ग्रन्थ में वर्णित करौली जादों राजवंश की वंशावली का ऐतिहासिक शोध  कवि जदुनाथ का "वृतविलास ग्रन्थ  "---

भरतपुर राज्य के बयाना नगर  का प्राचीन नाम 'श्रीपथापुरी' वहाँ फे शिलालेखों में लिखा मिलता है । प्राचीन स्थानों तथा वस्तुओं का निरीक्षण करने के अतिरिक्त  वहाँ के कई एक हस्तलिखित संस्कृत, प्राकृत और 
हिन्दी के पुस्तक-संग्रहों का भी अध्ययन किया। बोहरा छाजूराम के संग्रह में कई 
हस्तलिखित हिन्दी पुस्तकें भी मिली  जिनमें से वृतविलास और आनंद 
राम कृत गीता के हिंदी अनुवाद भी मिले। 'वृतविलास हिन्दी पिंगल भाषा का ग्रंथ है और उसका रचयिता कवि जदुनाथ , प्रसिद्ध कवि चंदबरदाई का वंशज था। उसने करौली के राजा गोपालसिंह ( गोपालपाल )  की कीर्ति को चिरस्थाई करने के निमित्त उक्त ग्रंथ की रचना की और “गोपालसिंह कीर्ति-प्रकाश " नाम से भी उसका परिचय दिया है । ग्रंथ के प्रारम्भ में कवि ने करौली के राजवंश  एवं अपने कुल का विस्तृत रूप से परिचय दिया है। ये दोनों 
विषय हिंदी साहित्य एवं ऐतिहासिक खोज के लिये उपयोगी होने से मैंने उन अंशों की पूरी नक्ल कर ली है जो नीचे लिखे अनुसार है---- 

करौली के राजवंश का परिचय ---

भये कृष्ण के वंश में विजयपाल महिपाल। 
दिनके सुत परगत भये तिहुणपाल छितिपाल ।। 6।।
अश्वमेध जिहि जग्य किय दीने अगनित दान | 
हेम कोटि दस सहस गौ गज सहस्र परिमान ॥ 7।।

बीस सह (स ह) य सात सै सासन दीने आम | 
धर्मपाल तिनके भये भूप धरम के घाम॥ 8॥ 
कुँवरपाल विनके भये भूपति वष (स) तविलास । 
अजैपाल प्रगटें बहुरि कर्यो जगत प्रतिपाल । 9॥ 
हीरपाल तिनके भये भूप मुकुट जिमि हीर। 
विनके साहनुपालु नृप साहस समुद्र गंभीर ॥10 ।।
अनगपालु नृपु प्रगट हुव॒ तिनके प्रथ्वीपाल। 
तिनके सुत प्रगटे बहुरि राजपाल मद्दिपाल ॥11॥ 
तिलोफपाल तिनके भये वापलदेव महीप। 
आसलदेव भये वहुरि सहसदेव कुलदीप ॥12॥ 
घूघलदेव महीप हुव अर्जुनदेव भुवाल  । 
भये विक्रमाजीत नृपु  तिनके बखतबिलास ॥13॥ 
अभेचंदु तिनके भये भूपति पिरथीराज । 
तिनके  रुद्रप्रताप नृपु मये भूप सिरताज ॥14।।
चंद्रसेन प्रकटे बहुरि सकल भूमि भरतार। 
आयो अकबर साहि जू जा नृपु के दरबार ॥15॥ 
अकबर बहु विनती करौ धर्यों न माथै हाथ । 
देस दिये कर जोरि तव नाही दीनों साथ ॥16॥ 
भये भारतीचंद जू तिनके सुब भूपाल। 
प्रगटे श्रीगोपाल सम तिनके सुत गोपाल ॥17॥ 
भये भूप गोपाल के  नृपति द्वारिकादासु । 
जाको परगट मुहिम  पर भयो प्रताप प्रकासु ॥18॥ 
भये बंहुरि तिनके तनय ,श्रीमुकुंद महिपालु । 
सब जग में परगट भये तिनके नृपु जगपालु ॥19॥ 
तिनक सुत प्रगटे बहुरि छत्रपाल छितिपालु । 
छुत्रपती छत्रिनि मनि नृप मनि बखत विलासु ॥20॥ 
            छंद नाराच 

भये महीप धर्मरूप भूप धर्म पालजू। 
कृपान दान जा समान आन को भुवालजू॥ 
लए अनेक जैतपत्र  शुद्ध जुद्ध मंडिकै। 
दवेदरीनि ( ?) जत्र  तत्र सत्रु  अत्रु छंडिकै ॥21 ॥ 
नृपाल धर्मपाल के भुवाल रत्नपाल भौ। 
दयाल नदलाल ज्यों  निहाल दीन जालु भौ ॥ 
प्रचंड  दौरदण्ड  सौ अखंड भूमि जीतिकै। 
दिशा सुपेत भीति सी करी सुनित्य कित्तिकै ॥22॥
 
                      दोहा 

नित्य नित्य जाकौ सुजसु वरनि सके न गनेसु  । 
रतनपाल के सुत भयौ कुँवरपाल सुनरेसु ॥23॥ 

        छंद हरिगीत 

श्रीकुँवरपाल नृपाल को जसु जग्यौँ सकल जिहान में । 
कलि करनु सो दुखहरनु असरन सरनु विद्त वषा (ख ) न में ॥ 
किरवान दान प्रमान जा सम सकति नहिं नृप आन में । 
 भुवमान   ज्यौ परताप जा सम साहिबी मघवान में ॥24।।
 
           छंद घनाक्षरी 

मही मघवान महीपालु श्रीकुंवरपालु 
जाको जस पूरन प्रसिद्ध देस देस भौ। 
छीरधि समान हिमवान सानुमान सीत 
भान कै प्रमान दीप दीपनि में बेस भौ । 
भूधुर घरन जदुवंश आभरन  कलि
करन ज्यौं  दीन  दुष  (ख) हरन हमेस भौ । 
संपति धनेसु महिमा करि महेसु
बुद्धि के गनेस भौ प्रताप के दिनेस  भौ ॥25॥
                 दोहा

भयो उदय दिन दिन निरषि  (खि) बाढ़यौ प्रजनि अनंदु | 
कुँवरपाल कलि करनु भौ रतनपाल  नृपनंदु ॥26॥ 
दुखी न कोऊ देखियै निसि दिन जाऊे देस। 
जदुकुल में परगट भयौ दूजो भूमि सुरेस॥27।।
कुँवरपाल के सुत भये भूपति श्रीगोपाल ।
जदुकुल में फिरे अवतरे मानों श्रीगोपाल ॥28॥ 
अरिवर केसी कंस से करिवर वर संघारि। 
द्वै भुज ऐसे देखियै मनौ लसत भुज चारि ।।29॥ 
चारौ चक्कनि मैं प्रगट जाको प्रबल प्रतापु ।
विविकर विलसत सहसकर छओ अर्क सम आपु ॥30॥ 
सकल अवनि जिहि सोधिकै कालिय से खल काढ़ि ! 
भयौ चक्रधर सौं  घरै तेग चक्र तै चाढ़ि॥31॥ 
        
            छंद घनाक्षरी 

बाढ्यो जाकौ चंदु परतापु नव खंडनि मैं
जगमग्यौ जाहिर जिहांन जस जालू है । 
दुनी पर दीननि के दारिद विदारिवे  कौ 
देवतरु सम देख्यो कर को हवालु है । 
पथ्य सो समथ्य श्री कुंवरपाल जू को लाल 
जासौं  जुरि जंग को गहतु करवालु है ।
  श्रीजदु- नृपालुकुल औतर्यो गुपाल सम 
बखत विलास श्रीगुपाल महिपालु है ॥32।।
         
              सवैया 

भूपति मैं दिखै भानु  समान 
प्रताप  अंतापनि की अधिकाई । 
जीति लई भुज  दंडनि सौ महि
नित्य  जगी जग कित्ति जुन्दाई । 

गोद्विज को प्रतिपालू  करै
भयो दीनदयालू  सदा सुखदाई । 
सिंघ गुपाल नृपाल  को हाल 
विसाल बढ़ी पुहमी प्रभुताई ॥33॥
          
               दोहा 

प्रमुताई प्रभु जिमि करै पृथिवीपति गोपालु । 
सुखित रहे निसि दिन प्रजा निरखत वखत विसालु ॥34॥ 
भयौ  नंदसुत  ज्यौं  प्रगट कुँवरपाल नृपनंद्‌ । 
वस्यो धरम चार्यो चरन ज्याके देस बिलंद ॥35॥ 
पूरब उत्तर आदि दे अरु दच्छिन दिस देस। सुन्यौ न ऐसो भूमि पर भयो से औरु नरेस॥36।।
सरस राजधानी लसै विदित करौरी नाम। 
वसत सकल नर सुखित जँह पूरि रहे धनधाम ॥37॥ 
त्रेता औधिपुरी भयो जैसो रघुवर राम । 
भयो करौरी त्यौं प्रगट नृप गुपाल इह नाम ॥38॥ 
जैसी बिलसी द्वारिका श्रीगुपाल प्रभु पाइ। 
तैसी नृप गोपालजुत लसति करौरी आइ ॥39॥ 
ज्यौं  अंबर अमृरावती भोगवती पाताल । 
लसति करौरी भूमिपद त्यौं नृपजुत गोपाल ॥40॥ 
प्रजा सुखित दिन रैनि जँह  चारि वरन सुभ कर्म। 
दुखी न  कोउ देखियै चलत आपने धर्म ॥41॥ 
रीति जु वेद पुरान की सुनी सकल निरधारि। 
ताही मारग चलत हैं आश्रम वरन विचारि॥42।। 
        
           छंद घनाक्षरी 

संकर वरन सुन्यौ चित्र रचना में जहाँ 
चोरी सुनि यति पर विपत्ति बिलास की। 
भुजिनि में कंपु हिमकर में कलंक सुन्यौ  
छल सुन्यौ तहाँ जहाँ विद्या इंद्रजाल की । 
वैदक में रोग सुन्यौ सपने वियोगु चित्त 
चिंता सुनी जहाँ सबही के प्रतिपाल की । 
औधि की सी रीति अधिकानी जगजानी ऐसी 
राजे राजधानी श्रीगुपाल महिपाल की ॥43॥ 

                    दोहा 

कव चक्रपानी मैं सुनी जहाँ कालिमा नाहिं ।
कनकदंड लखियै जहाँ एक छत्र ही माहिं ॥44॥ 
मुखर जहाँ नूपुर सुनै चरचा में दृढ़वन्ध । 
अश्रु होत मख-घृम सौं गजवर जहाँ मदंध ॥45॥ 
वसत जहाँ गुणवंत नर चाप हि मैं गुणभंग। 
लखै चाबुकनि मारियत केवल तरल तूरंग ॥46॥ 
पुरी अधूरी ज्यौं लसी द्वाराबती निदान। 
त्यौं  गुपाल नृपजुत  लखी पुरी करौरी थान ॥47॥ 
मदनमोहनहिआदि देव [ब]सत जहाँ सब देव । 
बरत सेव नरनारि जुत भुंमिदेव  नरदेव ॥48॥ 
सोभा देवालयन की विलसति अमित अपार । 
कहौ यहाँ लो वर्रिण के होत अंध-विस्तार ॥49।।
तातै कछु कविकुल वरनि करिये छंद विचार | 
ग्रंथनि को मतु देखि के निज मति के अनुसार ॥50॥ 
   


इति श्रीमन्महाराजाधिराज जदुवंशावतँस श्रीमहीपाल गोपालसिंह कीर्तिप्रकासे सुकवि जदुनाथ विरचिते वृत्तविलासे दृंडकप्रकरने
वर्णबृत्तवर्णन नाम द्वितीयोह्ञासः | समाप्तोयं वृतविलास: ॥

वृतविलास ग्रन्थ रचना का समय --

कवि जदुनाथ के लेख से ही पाया जाता है कि उसने अपने  ग्रन्थ 'वृत्तविलास' को करौली के राजा गोपाल सिंह के समय में रचा। गोपाल सिंह करौली के राजा कुंवरपाल  ( द्वितीय ) का पुत्र था और उसने विक्रम स० 1781 से 1814 तक करौली पर राज्य किया था। अतएव वृत्तविलास की रचना वि० सं० 1800 के आसपास होना अनुमान 
किया जा सकता है ।

करौली का राजवंश --

वृतविलास हिन्दी के पिंगल का उत्तम ग्रन्थ होने के अतिरिक्त उसमें 
राजा बिजयपाल से लेकर राजा गोपाल सिंह तक की करौली के राजवंश
के 31 राजाओं के नामों वाली जो वंशावली दी है, वह कम महत्व की नहीं है । 
यह विवरण मुझे 'नागरी प्रचारिणी पत्रिका' (काशी) - भाग 5, सं. 1981, अंक 2 अंक 4 एवं ओझा निबन्ध संग्रह भाग 3 में छपे राजपूताने के बहुप्रसिद्ध इतिहासकार राय बहादुर पण्डित गौरीशंकर हीराचंद ओझा द्वारा लिखित विस्तृत लेख से प्राप्त हुआ। 'वृत्तविलास' के अनुसार 'करौली का राजवंश' इस प्रकार है (मूल प्रति के अनुसार)

1. विजयपाल 2. तिहुणपाल 3. धर्मपाल (प्रथम) 4. कुँवरपाल (प्रथम) 5. अजैपाल 6. हीरपाल 7. साहनपालु 8. अनंगपाल 9. पृथ्वीपाल 10. राजपाल 11. तिलोकपाल 12. बापलदेव 13. आसलदेव 14. सहसदेव 15. घूघलदेव 16. अर्जुनदेव 17. विक्रमाजीत 18 अभेचंदु 19. पिरथीराज 20. रुद्रप्रताप 21 चन्द्रसेन 22. भारथीचंद 23. गोपाल (प्रथम) 24. द्वारकादासु 25. मुकुददास 26. जगपाल 27. छत्रपाल 28. धर्मपाल (द्वितीय) 29. रतनपाल 30. कुंवरपाल (द्वितीय) 31. गोपाल सिंह (द्वितीय) ।

करौली के राजा मथुरा के यादवों के वंशधर हैं औऱ उनका वंश बहुत प्राचीन है। परन्तु राजा  बिजयपाल के पूर्व की उनकी विश्वसनीय  वंशावली नहीं मिलती । जनरल कर्निंगघम ने मूकजी भाट की  पुस्तक के आधार 
पर, महामहोपाध्याय कविराज श्यामलदास जी ने अपने "वीर विनोद " में करौली के इतिहास के प्रसंग में  और मेजर स्ट्रेटन ने  कैप्टन पाउलेट के करौली के गजेटियर के आधार पर लिखी हुई शॉट अका-उन्ट ऑफ करौली ( करौली का संक्षिप्त  वृत्तांत) नामक छोटी सी पुस्तक से करौली के राजवंश की नामावली देने का प्रयत्न किया है, परंतु उन सब में कुछ न कुछ त्रुटि अवश्य है। किसी में कुछ नाम रह गए हैं, तो किसी में कुछ अधिक हैं। उन सब से पुरानी वंशावली ( जो आज से अनुमान 180 वर्ष पूर्व की लिखी हुई है) कवि जदुनाथ की है। उसीको विश्वास योग्य माना जा सकता है। 

लेखक -डॉ0 धीरेन्द्र सिंह जादौन 
गांव-लाढोता ,सासनी 
जिला-हाथरस ,उत्तरप्रपदेश
एसोसिएट प्रोफेसर ,कृषि मृदा विज्ञान 
शहीद कैप्टन रिपुदमन सिंह राजकीय महाविद्यालय ,सवाईमाधोपुर ,राज












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