जैसलमेर के यदुवंशी भाटी राजपूतों के राजचिन्ह एवं ध्वज का ऐतिहासिक वर्णन

जैसलमेर के यदुवंशी भाटी राजपूतों के राजचिन्ह एवं ध्वज का ऐतिहासिक वर्णन ---

जैसलमेर राज्य के यदुवंशी /पौराणिक यादव राजपूतों के राजचिन्ह में एक ढाल है ,जिस पर खंजन चिड़िया (सुगन चिडी ,पलंब )बैठी है।ढाल के दोनों तरफ एक -एक हिरन  चित्रित है।ढाल के बीच में किले की एक बुर्ज है और एक बलिष्ठ पुरुष की नंगी भुजा में एक तरफ से टूटा हुआ भाला आक्रमण करते हुये दिखाया गया है।यह राज्य चिन्ह किसी संन्यासी का बताया हुआ कहा जाता है और यह दरबार के झंडे पर ही लगा रहता है।यहां का शाही झंडा भगवा रंग का है क्यों कि कनफते योगी रतन नाथ ,रावल देवराज का गुरु था और उसने अपने शिष्य को कई प्रकार से लाभ पहुंचाया ।कुछ इतिहासकार कहते है कि यह राजचिन्ह जोगी रतननाथ द्वारा प्रदान किया गया था और दरबार के भगवे रंग के झंडे पर लगा रहता है।
   ढाल का रंग नारंगी  है,लेकिन उस पर किले की बुर्ज जो काले रंग की है वे जैसलमेर किले को सूचित करती है और इस राज्य चिन्ह पर भाले के निशान् से इस वंश की कुल देवी स्वांगीयाजी सूचित होती है।भाले का निशांन ,कुलदेवी सांगियाजी की मगध के राजा जरासंध पर विजय का सूचक है।सांगियाजी का अर्थ है ,स्वांगी अर्थात भाला या सांग रखने वाली या ग्रहण करने वाली ।कहते हैकि श्री कृष्ण के समय में मगध नरेश जरासन्धके पास यह भाला था जो उसे देवताओं से प्राप्त हुआ था और जिसका प्रभाव था कि जब तक यह भाला उनके पास होता ,तब तक वह अजेय थे और कोई भी इस भाले के बार से नहीं बच सकता था।जिस किसी की ओर यह भाला लगाया जाता वह निश्चित मर जाता ।श्री कृष्ण जी ने कालिका देवी से प्रार्थना करके यह भाला राजा जरासंध से छिन वाया ।देवी ने राजा जरासंध से युद्ध करके यादवों के लिए यह भाला छीन लिया।उसकी छीना -झपटी में भाले काएक सिरा टूट गया ,इसी लिए राज्य चिन्ह में टूटा हुआ भाला दर्शाया गया है।
  खंजन पक्षी ,जिसे सुगन चिड़ी भी कहते है,देवी सांगियाजी की प्रतीक है। कहते है कि ये खंजन पक्षी महारावल बिजैराज के सिर पर आ बैठी थी ।वास्तव में ये पक्षी न था इनकी कुलदेवी स्वागिया देवी थी।कुछ तथ्य ये भी बताते है कि देवी के वरदान से यह चिड़िया महारावल बिजेराव "चुडाला " के घोड़े की कन्नौती के बीच में बैठती थी और अपनी अद्रश्य तलवारों से युद्ध में उनका साथ देती थी।इससे रावल की जीत रही।
    राज्य चिन्ह में ढाल केनीचे "छत्राला यादवपति "लिखा हुआ है और उस ढाल के नीचे "उत्तर भड़ किवाड़ भाटी "अंकित है जिसका अर्थ यह है कि "भाटी उत्तर भारत के द्वार रक्षक है "अर्थात इन्होंने समय -समय पर भारत पर उत्तर से आक्रमण करने वालों का सबसे पहले मुकाबला किया है।यहां के नरेश पंजाब से राजपूताने में आने के कारण अपने को "पश्चिम के बादशाह "भी कहते है।
   जब कुण्डलपुर के राजा भीष्मक की राजकुमारी रुक्मणी जी के स्वयंवर में श्री कृष्ण जी गये हुए थे ,तब देवराज इंद्र ने उनके लिए स्वर्ग से लवाजमा भेजा था ,जिसमें "मेघाडम्बर छत्र भी था।स्वयंमवर के बाद उन्होंने सारा लवाजमा तो स्वर्ग लौटा दिया ,किन्तु मेघाडम्बर छत्र नहीं लौटाया।इसे अपने और अपने यदुवंशी वंशजों के लिए प्रतीक स्वरूप रख लिया ।इस छत्र के कारण यदुवंशी ,छत्राला "कहलाये।राजतिलक के समय जैसलमेर के नरेश सोने -चांदी के छत्र चारणों को दान में देते है।जैसलमेर के भाटी यादवों में पद में सबसे वरिष्ठ होने के कारण ,"यादवपति "कहलाते है।इस लिए "छत्राला यादवपति "की उपाधि से सम्मानित है।महारावल बिजयराव लाँझा के अन्हिलवाड़ पाटन में विवाहोत्सव में उपस्थित पश्चिमी और उत्तरी भारत के राजाओं ने भाटी राजपूतों को उत्तर और उत्तर -पश्चिम से मुसलमानों के आक्रमणों को रोकने का दायित्व सौंपा और उन्हें  "उत्तर भड़किवाड़ भाटी "के सम्बोधन से सुशोभित किया ।

संदर्भ--

1-जैसलमेर राज्य का इतिहास। -लेखक माँगी लाल मयंक।
2-पूगल का इतिहास -लेखक हरिसिंह भाटी
3-राजपूताने का इतिहास -लेखक जगदीश सिंह गहलौत ।
4-राजपूताने का इतिहास -राजपूत राज्यों का उद्भव एवं अधिपतन ।
5-जैसलमेर का इतिहास -टॉड कर्नल।
6-गजनी से जैसलमेर -लेखक हरिसिंह भाटी
7-जैसलमेर का इतिहास -लेखक पण्डित हरिद्दत गोविंद व्यास।
8-जैसलमेर दिग्दर्शन -लेखक दीनदयाल ओझा ।
9-तवारिख जैसलमेर -लेखक लक्ष्मी चन्द ।
10-जैसलमेर री ख्यात -संपादक डा0 नारायण सिंह भाटी।
11-बांकीदास की ख्यात ।
12-मुंहता नैनसी ख्यात भाग I, II,III.
13-युग कालीन वल्लप्रदेश , जैसलमेर -लेखक नंदकिशोर शर्मा ।
14-हिस्ट्री आफ जैसलमेर -लेखक सोमानी।
15-भारतीय संस्कृति और उसका इतिहास -लेखक सत्यकेतु विद्यालंकार।

लेखक-डॉ0 धीरेन्द्र सिंह जादौन
गाँव-लढोता ,सासनी
जनपद -हाथरस,उत्तरप्रदेश
एसोसिएट प्रोफेसर कृषि मृदा विज्ञान
शहीद कैप्टन रिपुदमन सिंह राजकीय महाविद्यालय ,सवाईमाधोपुर ,राजस्थान ,322001

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