Dastane Umargarh : One of the Oldest Estate of Jadaun Rajputs in Jalesar Pargana of Etah district of UP.दास्ताने ऊमरगढ : उत्तरप्रदेश के एटा जिले के जलेसर परगना में जादौन राजपूतों की सबसे प्राचीन एस्टेट
Dastane Umargarh : One of the Oldest Estate of Jadaun Rajputs in Jalesar Pargana of Etah district of UP.
दास्ताने ऊमरगढ : उत्तरप्रदेश के एटा जिले के जलेसर परगना में जादौन राजपूतों की सबसे प्राचीन एस्टेट ।ऊमरगढ जादौन राजपूतों की सबसे प्राचीन रियासत थी जो लगभग संवत् 1225 में बनी थी ।इस महत्वपूर्ण रियासत के इतिहास के विषय में बहुत कम हमारे समाज के भाइयों को जानकारी होगी ।नई पीढ़ी तो शायद नाम से भी परिचित न हो ।इस ऊमरगढ रियासत के इतिहास के विषय में कुछ जानकारी देने का प्रयास कर रहा हूँ जो कि बहुत महत्वपूर्ण है ।
Migration of Umargarh Jadaun Family from Bayana /Timangarh to Jalesar in Etah District .
ऊमरगढ जादौन राजपूत परिवार का राजस्थान के बयाना / तीमन गढ़ से उत्तरप्रदेशके एटा जिले के जलेसर परगना में विस्थापन ।
बयाना के राजा बिजयपाल की संवत 1103 में मो0 गजनी के सेनापति मसूद सलर के साथ घमासान युद्ध हुआ जिसमे राजा बिजय पाल मारे गये और बयाना पर जेहादीयो का अधिकार होगया था ।राजा बिजय पाल का दाह-संस्कार करकेउनके वंशज राजा सोनपाल अपने 6भाइयों के साथ उनकी अस्थि विसर्जन के लिए गंगा जी (सोरों ) जारहे थे ।साथ में कुछ फ़ौज भी लाये थे ।रास्ते में जलेसर आकर रुके ।रात में उनके कुछ घोड़े सोनगिरि के चाँद खां मेवाती ने चुरा लिए ।उस समय जलेसर के आस पास मेवातीओं का आधिपत्य था ।उस समय तो राजा सोनपाल गंगाजी सोरों चले गये और तिलांजलि रस्म पूरी करने के बाद वापस जलेसर आये और चाँद खां मेवाती से भयंकर लड़ाई हुई जिसमे 1600 मेवातीओं सहित चाँद खां को मार दिया गया और भारत की ध्वजा जलेसर की सीमा में पहरादी ।इसके बाद सोना गांव बसाया ।जिनके वंशज आगे चल कर सोनगिरिया भार्ध्वाज उर्फ़ भृगुदे जादों कहलाये ।
राजा सोनपाल के एक पुत्र जैनपाल जी हुये जिनकी माता पुंडीरनी थी जो हरिद्वार के राजा की पुत्री थी ।राजा जैनपाल ने जैन खां मेवाती को मारकर जैनपुरा की राजधानी की ।इसके बाद इन्होंने ऊमरगढ के उमर खां मेवाती को मार कर उससे ऊमरगढ हासिल कर लिया ।राजा जैनपाल के तीन रानियां थी जिनमे एक रानी गहलोतिन थी जो सहपऊ (सादावाद)के राजा की पुत्री थी जिनसे करनपाल और सोगीपाल दो पुत्र हुये ।संवत 1225 में राजा जैन पाल ने अपने राज्य में से 12 गांव मिला कर सोगीपाल को ऊमरगढ की राजधानी प्रदान की ।जिनके वंशज राव कहलाये ।
ऊमरगढ रियासत (Umargarh Estate )
ऊमरगढ एस्टेट एटा के जलेसर परगना मेंबहुत पुरानी एवं सबसे बड़ी गद्दी मानी जाती थी जिनके वंशज राव कहलाते थे ।राजा सोगीपाल के 22पीढ़ी बाद राव जवाहर सिंह हुये जिनके 3पुत्र 1-बहादुर सिंह ,2-रतन सिंह ,3-नर सिंह जी हुये ।राव बहादुर सिंह जी गद्दी पर बैठे ।इन्होंने ऊमरगढ रियासत का क्षेत्र 300 गांवों तक कर लिया था ।ये इन 300 गांवों के जमींदार कहलाने लगे ।ये बहुत ही प्रसिद्ध व्यक्ति थे जिन्होंने अपने ग्रामीण क्षेत्र में अपनी एक फ़ौज (Gallent defence )बना रखी थी।जब दौलत राव सिन्धिया ने इस क्षेत्र पर आक्रमण किया था तो ऊमरगढ के राव बहादुर सिंह जी की फ़ौज ने सिंधिया की फ़ौज के खिलाफ कुछ दिन लड़ाई लड़ी ।ये घटना सन् 1800 के आस -पास की है ।सिंधिया ने ऊमरगढ को तहस -नहस कर दिया था ।राव बहादुर सिंह के एक बेटे मोती सिंह जी हुये जिनकी मृत्यु सन् 1825 के लगभग हुई जिनके 3पुत्र पिरथी राज सिंह ,टीकम सिंह और सियोभान सिंह हुये ।राव पिरथी राज सिंह जी की मृत्यु सन् 1831 में होगई इसके बाद रियासत के मालिक राव टीकम सिंह हुये ।इस समय रियासत के मालिकाना हक़ को लेकर इनके परिवार में झगड़े भी हुये और ग्रेट ब्रिटेन प्रिवी कौंसिल में मुकदम्मे भी चले ।राव टीकम सिंहकी मदद से अवागढ़ के राजा साहब ने बरहन से धाकरे राजपूतों को विस्थापित करके बरहन के किले पर अधिकार कर लिया था ।राव टीकम सिंह जी के पास उनके आस पास के क्षेत्र के भाई बंधों की एक फ़ौज थी ।सभी क्षेत्र के उनके भाई लोग जादौन राजपूत ऊमरगढ परिवार का बहुत सम्मान करते थे और हर समय उनका सहयोग करने को तैयार रहते थे ।अवागढ़ के राजा साहिब के साथ बरहन में धाकरे राजपूतों से लड़ाई में एक राव टीकम सिंह ऊमरगढ के उनके पारिवारिक मुखीया राजावली के गौरधन सिंह जी की मृत्यु भी होगयी थी ।राव टीकम सिंहजी की मृत्यु सन् 1867 में हुई ।जिनके राव बुध पाल सिंह जी हुये ।ये राजा सोंगीपाल के बाद 27वीं पीढ़ी में पैदा हुये ।जिनकी मृत्यु 1 जौलाई सन् 1881 में हुई।जिनके 3 पुत्र नेत्रपाल सिंह ,जयसिंह पाल सिंह ,नृसिंहपाल सिंह तथा एक पुत्री बिट्टा जी हुई जो जयपुर राज्य की महारानी हुई ।बाद में राव नित्रपाल सिंह जी ऊमरगढ रियासत के जमींदार हुये ।इस राजपरिवार ने हमेशा अपना राव् का ही खिताव बरकरार रखा ।अंग्रेजी हुकूमत में बहुत से जागीरदारों ने अंग्रेजों की मदद करके राजा के खिताव ग्रहण कर लिए थे ।लेकिन ये हमेशा राव ही कहलाये ।राव इनके पूर्वजों की दीगयी पदवी थी ।रा व् नेत्रपाल के राव बिजेंद्र सिंह हुये ।राव बिजेंद्र सिंह जी के राव सुरेन्द्र सिंह जी है ।
Relation between Umargarh ,IsardaThikana and Jaipur Royal Rajpariwar
सयुक्त देशान्तर्गत ,एटा के जलेसर प्रान्त में लगभग एक हजार वर्ष की प्राचीन रियासत जो बाद में राव बुद्धपाल सिंह जी के समय 30 -35 छोटे -बड़े गांवों से युक्त 60 -70 सहस्त्र की आय का 30 -35 पीढ़ीयों से उपयुक्त ऊमरगढ नाम की एक रियासत थी ।उस प्रान्त के समस्त जादौन राजपूतों में टिकाई राव बुद्धपाल सिंह जी उस स्थान ऊमरगढ के मुख्य जमींदार थे ।उनके 3 पुत्र और एक पुत्री हुई ।पुत्री को लाड़ली अवस्था में वे वित्टा जी नाम से संबोधित करते थे ।पुनः यही नाम उनका बिख्यात होगया ।राव बुद्धपाल सिंह अपनी बेटी बिट्टा जी को तीनों पुत्रों से अधिक प्रिय मानते थे ।वे अपने समीपी सहकारियों तथा सम्बन्धियों से प्रायः कहा करते थे कि यह साक्षात् देवी का आंशिक अवतार है ,किसी दिन हमारे यादव कुल को देदीप्यमान प्रकाशित करेगी ।जब इनका विवाह ठिकाना ईसरदा( जिला सवाईमाधोपुर )के सामंत ठाकुर रघुनाथ सिंह जी के कनिष्ठ पुत्र कायम सिंह जी(महाराजाधिराज सवाई माधोसिंह बहादुर दुतीय )से सन् 1875 में संपन्न होगया ,तब तो दृढ़ विश्वासपूर्वक भविष्य बाणी प्रकट कर चुके थे कि यह मेरी बेटी बिट्टा जी एक दिन जयपुर राज्य की महारानी होगी ।इस वाणी के प्रयोग से बड़े श्री जी यानी कायम सिंह जी पूर्ण परिचित थे ।निदान वही श्रीमती महारानी बिट्टा जी श्री जादवन जी जयपुर राजमहिषी हुई ।कायम सिंह जी सन् 1880 में जयपुर के महाराजा बने और सवाईमाधोसिंह दुतीय के नाम से जाने गये ।
महारानी जादौन जी बिट्टा जी का पूण्य अखिल भारत में प्रशंसनीय रहा ।उनने सबसे प्रथम वृंदावन के सवाई माधवनिवास में मंदिर बनवाया ।गोपालगढ़ (वृंदावन)में गोपालजी का मंदिर और ब्रहाचारी जी की छतरी बनवाई ।वरसाने की यात्रा में श्री लाड़ली जी का मंदिरबनवाया ।श्री हरिद्वार यात्रा और गंगोत्री धाम में श्री जी का मंदिर जादौन महारानी जी ने ही बनवाया था ।
सन् 1891 -92 में जयपुर की महारानी जादौन जी बिट्टा जी ने ऊमरगढ में अपने पिता राव बुद्धपाल सिंह जी की समृति में एक छतरी भी बनवारी थी जिसका फ़ोटो भी में इस पोस्ट में डाल रहा हूँ ।महारानी जादौन जी ने जयपुर में लाड़ली जी का मंदिर ,बैनाडे में श्री कल्याण जी का मंदिर 'जय निवास में बड़े दरवार तथा गंगा जी पर कई मंदिरों के निर्माण में उनकी ही अनुमति थी ।वे बड़ी दूरदर्शी थी और महाराजा उनकी प्रार्थनाओं का आदर अटल सिद्धांत के साथ करते थे ।इस के अलावा महारानी जी ने लंदन में चैरिटेबल संस्थानों के लिए भी 1907 में एक लाख रूपये का दान दिया ।जिसका वर्णन A history of jaipur में इस प्रकार लिखा है "To the King Hospital Fund in London ,maharaja donated Rs.75,000 (in 1902 )and to Queen Alexandra for hospitals in London one lakh (in 1908),besides the 1 lakh sent to Her Majesty by Maharani Jadaun ji in 1907 for distribution among Charitable institutions in London .
संवत् 1950 या 51 के लगभग महाराजा सवाई माधोसिंह दुतीय महारानी जादौन जी बिट्टा जी के साथ ऊमरगढ पधारे थे ।कोटला /जातऊ के ठाकुर उमराव सिंह जी ने आगरा में कोटला हाउस जिसे पहले बाघफरजाना कोठी कहते थे में उनका स्वागत -सत्कार किया था । जब महाराजा एवं महारानी जी का कोटला के ठाकुर उमराव सिंह जी से परिचय हुआ तो वे बहुत अधिक प्रभावित हुये तो उनकी इन पर अत्यंत श्रद्धा हो गई।बल्कि महाराजा साहिब ने कहा था कि समस्त ऊमरगढ के सेवक संघ में मेरे काम का यह एक व्यक्ति आया है ।बाद में महाराजा और महारानी जी ठाकुर उमराव सिंह जी पर परम संतुष्ट हुये ।श्रीमती महारानी जी महोदया तो उमराव सिंह जी को पिता तुल्य मानने लगी क्यों कि वे उनके ही खानदान के थे ।महाराजा और महारानी जी ने ठाकुर उमराव सिंह जीको जयपुर राज्य की सेवा सम्पादन करने पर बाध्य किया ।तब आदेशानुसार ठाकुर उमराव सिंह जी को महकम : महोत्समः आलियः कौंसिल सीग्रेकलक्ट्री के मेम्बरी पद से सुशोभित किया ।जब महाराजा सवाई माधोसिंह दुतीय सन् 1902 में The Coronation In London की यात्रा पर गये थे तो उस समय राज्य के सर्वे सर्वा कार्य भार को महारानी जी के मतानुसार 'सम्पादन करने का सौभाग्य ठाकुर उमराव सिंह जी को प्रदान होगया था और उक्त समय के कार्य को उनने परम पशंसा जनक सम्पादन किया और जयपुर राज्य की राजस्व आमद में परिपूर्ण व्रद्धि करके दिखलाई ।उस समय ठाकुर उमराव सिंह जी का क्षत्रियों के उत्थान में महत्वपूर्ण योगदान रहा था ।वे बहुत प्रतिभाशाली व्यक्ति थे।उनको अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान था जो उस समय हमारे समाज में बहुत कम देखने को मिलता था ।अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा अवागढ़ के राजा बलवंत सिंह जी के सहयोग से उन्होंने ही सन् 1897 में बनाई थी जिसका पूर्ण श्रेय राजा बलवंत सिंह जी अवागढ़ को दिया गया था ।राजपूत समाज के उत्थान में ठाकुर उमराव सिंह जी के योगदान का वर्णन आगे की पोस्ट में करूँगा ।जय हिन्द ।जय राजपूताना ।।
References ---1 pothi of jadaun jaga late shri Kulbhan Singh ji of Akolpura village Madrayal road Karauli .
2-Shreeman Sujas Chandravilaas darwari book of Jaipur Rajay .
3-District Gazetter of the United Provinces Agra and Qudh .Voll .12. 1934.
4-Privy Council Judgement of Appeals from India .Voll .7.
5-A memoris of Mathura by F S. Growse.
6-A History of Jaipur by Yadunath Sarkar .
7-District Gazetter of Etah .
मुझे इस लेख को लिखने में ऊमरगढ परिवार के एक प्रतिभावान व्यक्ति बड़े भाई डॉ0 सागर पाल सिंह जी का सराहनीय सहयोग मिला जिससे यह लेख मैं अच्छी जानकारी से लिख पाया ।मैं उनका तहे दिल से आभार व्यक्त करता हूँ ।आशा है कि वे भविष्य में भी अपना अमूल्य सहयोग देते रहेंगे ।
लेखक - डॉ0 धीरेन्द्र सिंह जादौन ,गांव -लढोता ,सासनी ,जिला -हाथरस ,उत्तरप्रदेश ।
Comments
Post a Comment