Historical Research on Real Yaduvanshi (PauranikYadava/ Descendants of Yadukul Shiromani Vasudev Shri Krishna)
Historical Research on Real Yaduvanshi (PauranikYadava/ Descendants of Yadukul Shiromani Vasudev Shri Krishna)
वास्तविक यदुवंशी /पौराणिक यादवों / यदुकुल शिरोमणी भगवान् श्री कृष्ण के वंशजों का ऐतिहासिक शोध ----आधुनिक / वर्तमान परिवेश में वास्तविक यदुवंशी /पौराणिक यादव जो वास्तविक महाराज यदु ,वासुदेव 'यदुकुल शिरोमणी भगवान् श्रीकृष्ण केवास्तविक वंशज जो कालान्तर में विभिन्न वंशों में विभाजित हो गये जिनमे प्रमुख वंश निम्नप्रकार है।
जादौन ,जडेजा ,भाटी ,जादव , वनाफर ,चूड़ा शमा ,सरवैया ,रायजादा ,छौंकर ,वडेसरी ,जसावत ,जैसवार ,सोहा ,मुड़ेचा ,पोर्च ,बितमन ,बरगला ,नारा ,उरिया ये वंश अपने वास्तविक इतिहास ,संस्कृति ,एवं अस्तित्व से अनभिज्ञ है और वर्तमान समय के चलते जातीय घाल -मेल में दन्त कथाओं और अप्रमाणिक इतिहास को यत्र -तत्र पढ़ कर या सुनकर भृमित हो रहा है।किसी ने सत्य ही कहा है "जो अपना इतिहास नहीं जानता ,वह खुद को भी नहीं जानता "क्यों कि इतिहास से ही किसी व्यक्ति या समाज की पहचान बनती है।आज संसार की अनेक जातियाँ अपने जातीय इतिहास के ज्ञान के बिना लुप्त हो चुकी है।विद्वान और भागवताचार्य इस यदुवंश की महिमा का वर्णन करते रहते है लेकिन स्वयं यदुवंश समाज आज भी अपने ही गौरवशाली इतिहास और संस्कृति से अपरिचित तथा भृमित बना हुआ है।जब कि अन्य जातियां यदुवंश के विशेष नामों ,उपनामों तथा महापुरुषों का प्रयोग कर सामाजिक ,राजनैतिक ,एवं आर्थिक लाभ प्राप्त कर रही है।आज कल कुछ जातीय इतिहासकार /लेखक अपनी जाति के इतिहास लेखन में अप्रमाणित ,भर्मपूर्ण एवंकाल्पनिक विवरण लिख रहे है तथा हमारे वास्तविक क्षत्रियों के इतिहास के साथ अपने कल्पित इतिहासको जोड़ने की पूर्ण कोशिस कर रहे हैजिसे पढ़ कर पाठक भर्मित होजाता है।ऐसे भ्रामक ज्ञान से समाज के लोगों में कुतर्कों का जाल फैलता है ।यह भ्रामक छेड़ -छाड़ यदुवंश के विशाल इतिहास के साथ अत्यधिक दृष्टिगोचर है क्यों कि समस्त प्राचीन इतिहास का मूल श्रोत वेद और पुराण है जिनमें यदुवंश का इतिहास विस्तार से वर्णित है।अतीत के ज्ञान विना वर्तमान का सरलीकरण एवं भविष्य का मार्गदर्शन नहीं होता ।
वास्तविक यदुवंशी /पौराणिक यादवों / यदुकुल शिरोमणी भगवान् श्री कृष्ण के वंशजों का ऐतिहासिक शोध ----आधुनिक / वर्तमान परिवेश में वास्तविक यदुवंशी /पौराणिक यादव जो वास्तविक महाराज यदु ,वासुदेव 'यदुकुल शिरोमणी भगवान् श्रीकृष्ण केवास्तविक वंशज जो कालान्तर में विभिन्न वंशों में विभाजित हो गये जिनमे प्रमुख वंश निम्नप्रकार है।
जादौन ,जडेजा ,भाटी ,जादव , वनाफर ,चूड़ा शमा ,सरवैया ,रायजादा ,छौंकर ,वडेसरी ,जसावत ,जैसवार ,सोहा ,मुड़ेचा ,पोर्च ,बितमन ,बरगला ,नारा ,उरिया ये वंश अपने वास्तविक इतिहास ,संस्कृति ,एवं अस्तित्व से अनभिज्ञ है और वर्तमान समय के चलते जातीय घाल -मेल में दन्त कथाओं और अप्रमाणिक इतिहास को यत्र -तत्र पढ़ कर या सुनकर भृमित हो रहा है।किसी ने सत्य ही कहा है "जो अपना इतिहास नहीं जानता ,वह खुद को भी नहीं जानता "क्यों कि इतिहास से ही किसी व्यक्ति या समाज की पहचान बनती है।आज संसार की अनेक जातियाँ अपने जातीय इतिहास के ज्ञान के बिना लुप्त हो चुकी है।विद्वान और भागवताचार्य इस यदुवंश की महिमा का वर्णन करते रहते है लेकिन स्वयं यदुवंश समाज आज भी अपने ही गौरवशाली इतिहास और संस्कृति से अपरिचित तथा भृमित बना हुआ है।जब कि अन्य जातियां यदुवंश के विशेष नामों ,उपनामों तथा महापुरुषों का प्रयोग कर सामाजिक ,राजनैतिक ,एवं आर्थिक लाभ प्राप्त कर रही है।आज कल कुछ जातीय इतिहासकार /लेखक अपनी जाति के इतिहास लेखन में अप्रमाणित ,भर्मपूर्ण एवंकाल्पनिक विवरण लिख रहे है तथा हमारे वास्तविक क्षत्रियों के इतिहास के साथ अपने कल्पित इतिहासको जोड़ने की पूर्ण कोशिस कर रहे हैजिसे पढ़ कर पाठक भर्मित होजाता है।ऐसे भ्रामक ज्ञान से समाज के लोगों में कुतर्कों का जाल फैलता है ।यह भ्रामक छेड़ -छाड़ यदुवंश के विशाल इतिहास के साथ अत्यधिक दृष्टिगोचर है क्यों कि समस्त प्राचीन इतिहास का मूल श्रोत वेद और पुराण है जिनमें यदुवंश का इतिहास विस्तार से वर्णित है।अतीत के ज्ञान विना वर्तमान का सरलीकरण एवं भविष्य का मार्गदर्शन नहीं होता ।
Birth of yaduvansh from Chandravansh
चन्द्रवंश से यदुवंश का जन्म कैसे हुआ ?
यदुवंश प्रायः चन्द्रवंश की एक प्रमुख शाखा है।ऋग्वेद में यदुवंशी तथा चंद्रवंशी अनेक राजाओं का वर्णन मिलता है जिनको शुद्ध क्षत्रिय कहा गया है।यदुवंश द्विजाति -संस्कारित है।प्राचीन पौराणिक इतिहास के अनुसार क्षत्रिय राजा ययाति का विवाह दैत्य गुरु शुक्राचार्य की पुत्री (ब्राह्मण कन्या )देवयानी से हुआ था जिसके बड़े पुत्र महाराज यदु थे जिनसे यदुवंश चला ।इसी कारण यदुवंश में उत्पन्न श्री कृष्णा एवंबलराम का यदुवंश के कुलगुरु गर्गाचार्य जी द्वारा वसुदेव जी के कहने पर नन्द गोप ने गोकुल में द्विजाति यज्ञोपवीत नामकरण संस्कार कराया था ।चन्द्रवंश में से यदुवंश का जन्म कैसे हुआ इसका वर्णन इस प्रकार है।
.....ब्रहमा के पुत्र अत्रि थे।जिनकी पत्नी भद्रा से सोम या चन्द्रमाका जन्म हुआ।इस लिए ये वंश सोम या चंद्र वंश के नाम से जाना गया।अत्रि ऋषि से इस वंश की उत्पती हुई इस लिए इस वंश के वंशजों का गोत्र अत्री माना गया।तथा इस वंश के वंशज चंद्रवंशी या सोमवंशी कहलाये।चंद्रमा जी ब्रह्स्पति जी की पत्नी तारा का चुपचाप हरण कर लाये।उनसे वुद्ध नामक पुत्र पैदा हुआ।उनके शूर्यवंशी मनु कीपुत्री इला से पुरुरुवा नाम का पुत्र हुआ।कालान्तर में वे चक्रवर्ती सम्राट हुए।इन्होंने प्रतिस्थानपुर जिसे प्रयाग कहते है बसाया।और अपने साम्राज्य की राजधानी बनाया।राजा पुरुरवा के उर्वशी के गर्भ से आयु आदि6 पुत्र हुए।महाराज आयु केसरभानुया राहु की पुत्रीप्रभा से नहुष आदि 5 पुत्र हुए।महाराज आयु अनेक आर्यों को लेकर भारत की ओर आयेऔर यमुना नदी के किनारे मथुरा नगर बसाया।राजा आयु के बड़े पुत्र नहुष राजा बने।महाराज नहुष के रानी वृजा से 6पुत्र पैदा हुए जिनमे यती सबसे बड़े थे लेकिन वे धार्मिक प्रवर्ती के होने के कारण राजा नही बनेऔर ययाति को राजा बनाया गया।राजा ययाति की दो रानियां थीजिन्मे एक देवयानी जोदैत्यगुरु शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी तथा दूसरी शर्मिष्ठा जो दानव राज वृषपर्वा की पुत्री थी।देवयानी से यदु और तुर्वसु तथा शर्मिष्ठा से द्रुह्यु अनु और पुरू हुए।सभी पांचों राजकुमार सयुक्त रूप से पाञ्चजन्य कहलाये।
राजा ययाति ने अपने बड़े बेटे यदु से उनका यौवन मागा जिसे उन्होंने नम्रतापूर्वक अस्वीकार कर दीया।सबसे छोटे पुत्र पुरू ने अपना यौवन पिता को देदीया।राजा ययाति ने अप्रसन्न होकर युवराज यदु को उनके बीजभूत उत्तराधिकार से वंचित करके कुमार पुरू को यह अधिकार पारतोषिक में देने की घोषणा की।राजा ययाति के पुत्रों में यदु और पुरू के वंशज ही भारतीय इतिहास का केंद्र रहे।
बुद्ध और ययाति तक के राजाओं के वंशज हीसोमवंशी या चंद्रवंशी कहलाये।राजा पुरू के वंशजोंको हीसोमवंशी या चंद्रवंशी कहलाने का अधिकार था।इस लिए क्यों क़ि यदू कुमार ने यौवन देने से इनकार कर दीया थाइस पर महाराज ययाति ने यदु को श्राप दिया की तुम्हारा कोई वंशज राजा नही बनेगा और तुम्हारे वंशज सोम या चंद्र वंशी कहलाने के अधिकारी नहीं होंगे।केवल राजा पुरू के वंशज ही सोम या चंद्रवंशी कहलायेंगे।इसमे कौरव और पांडव हुए।यदु महाराज ने राजाज्ञा दी की भविष्य में उनकी वंश परंम्परा"यदु या यादव "नाम से जानी जाय और मेरे वंशज"यदुवंशी या यादव"कहलायेंगे।राजा पुरू के वंशज,पौरव या पुरुवंशी ही अब आगे से सोमवंशी या चंद्रवंशी कहलाने के अधिकारी रह गये थे।राजा पुरू ,राजा दुष्यंत के पूर्वज थे जिनके राजकुमार भरत के नाम पर इस देश का नाम "भारत या भारतवर्ष"पड़ा।राजा पुरू के ही वंश मेराजा कुरु हुए जिनके कौरव और पांडव हुए जिनमे आपस में महाभारत युद्ध हुआ। प्रयाग से मध्य-देश पर राज्य करते हुए राजा ययाति अत्यधिक अतृप्त यौनाचार से थक गए इसलिए वृद्धावस्था में राज्य त्याग कर उन्होंने वानप्रस्थ का मार्ग अपनाया और जंगल में सन्यासी का जीवन व्यतीत करने चले गये।भारत में केबल यदु और पुरू की संतती शेष रही और इन्ही के वंशजों ने भारत के भावी भाग्य का निर्माण किया।
राजा ययाति ने अपने बड़े बेटे यदु से उनका यौवन मागा जिसे उन्होंने नम्रतापूर्वक अस्वीकार कर दीया।सबसे छोटे पुत्र पुरू ने अपना यौवन पिता को देदीया।राजा ययाति ने अप्रसन्न होकर युवराज यदु को उनके बीजभूत उत्तराधिकार से वंचित करके कुमार पुरू को यह अधिकार पारतोषिक में देने की घोषणा की।राजा ययाति के पुत्रों में यदु और पुरू के वंशज ही भारतीय इतिहास का केंद्र रहे।
बुद्ध और ययाति तक के राजाओं के वंशज हीसोमवंशी या चंद्रवंशी कहलाये।राजा पुरू के वंशजोंको हीसोमवंशी या चंद्रवंशी कहलाने का अधिकार था।इस लिए क्यों क़ि यदू कुमार ने यौवन देने से इनकार कर दीया थाइस पर महाराज ययाति ने यदु को श्राप दिया की तुम्हारा कोई वंशज राजा नही बनेगा और तुम्हारे वंशज सोम या चंद्र वंशी कहलाने के अधिकारी नहीं होंगे।केवल राजा पुरू के वंशज ही सोम या चंद्रवंशी कहलायेंगे।इसमे कौरव और पांडव हुए।यदु महाराज ने राजाज्ञा दी की भविष्य में उनकी वंश परंम्परा"यदु या यादव "नाम से जानी जाय और मेरे वंशज"यदुवंशी या यादव"कहलायेंगे।राजा पुरू के वंशज,पौरव या पुरुवंशी ही अब आगे से सोमवंशी या चंद्रवंशी कहलाने के अधिकारी रह गये थे।राजा पुरू ,राजा दुष्यंत के पूर्वज थे जिनके राजकुमार भरत के नाम पर इस देश का नाम "भारत या भारतवर्ष"पड़ा।राजा पुरू के ही वंश मेराजा कुरु हुए जिनके कौरव और पांडव हुए जिनमे आपस में महाभारत युद्ध हुआ। प्रयाग से मध्य-देश पर राज्य करते हुए राजा ययाति अत्यधिक अतृप्त यौनाचार से थक गए इसलिए वृद्धावस्था में राज्य त्याग कर उन्होंने वानप्रस्थ का मार्ग अपनाया और जंगल में सन्यासी का जीवन व्यतीत करने चले गये।भारत में केबल यदु और पुरू की संतती शेष रही और इन्ही के वंशजों ने भारत के भावी भाग्य का निर्माण किया।
Kul of yadyvanshis /pauranik yadavas kshtriyas
यदुवंशी /पौराणिक यादव क्षत्रियों के कुल
महाराज यदु के 4 पुत्र हुए जिनमें शाष्ट्राजित और क्रोष्ट्रा के वंशज अधिक प्रशिद्ध हुये ।शाष्ट्राजित के वंशज हैहय यादव कहलाये जो यदु के राज्य के उत्तरी भाग के शासक हुए ।
2 क्रोष्ट्रा --ये महाराज यदु के बाद प्रथम यदुवंशी शासक हुये जो दक्षिणी भाग यानी जूनागढ़ के शासक हुये ।महाराज क्रोष्ट्रा का कुल आगे चल कर कई उपकुलों में विभाजित हुआ ।जिनका विवरण इस प्रकार है।
अ --राजा दर्शाह के वंशज दर्शाह यादव कहलाये ।
ब -राजा मधू के वंशज मधु यादव कहलाये ।
स-राजा सात्वत के वंशज सात्वत यादव कहलाये ।
द-राजा वृष्णी के वंशज वृष्णी यादव कहलाये जिनमें शूरसेन ,वासुदेव ,श्री कृष्ण ,अक्रूर ,उद्धव ,सात्यकी , कुन्ती ,सत्यभामाके पिता सत्राजित हुये ।
ध- राजा अंधक महाभोज के वंशज भोज वंशी यादव कहलाये जिनमे कुकर -के वंश में राजा उग्रसैन और देवक हुए और भजमन के वंश में कृतवर्मा और सतधनवा हुआ ।
न-कौशिक वंश के यादवों में चेदिराज दमघोष हुए जिनका पुत्र शिशुपाल हुआ ।
प -विदर्व वंशी यादवों में राजा भीष्मक हुए जिनकी पुत्री रुक्मणी जी थी ।
विष्णु पुराण के अनुसार दानवों का नाश करने के लिए देवताओं ने यदुवंश में जन्म लिया जिसमें कि 101 कुल थे।उनका नियंत्रण और स्वामित्व भगवान् श्री कृष्ण ने खुद किया (वि0 पु0 पेज 299) ।महाभारत में 56 कोटि यादवों का वर्णन आता है।इससे लोग अनुमान करते है कि 56 करोड़ यदुवंशी या यादव क्षत्रिय थे परंतु वास्तव में यह 56 शाखाएं थी जिन्हें कुल कहते है।इस लिए 56 करोड़ यादव क्षत्रिय मानना भूल है।मेजर अरसेकिंन साहिब ने भी राजपुताना गजेटियर सन् 1908 में यादव क्षत्रियों के 56 तड़नें या कुल माने है ।वायुपुराण के अनुसार यदुवंशियों के 11कुल कहे जाते है ।"कुलानि दश चैकं च यादवानाम महात्मनां " ।यदुवंश में यादव कुमारों को शिक्षा देने वाले आचार्यों की संख्या 3करोड़ 88 लाख थी फिर उन महात्मा यादवों की गणना कौन कर सकता था ।राजा उग्रसैन के साथ 1 नील के लगभग यदुवंशी सैनिक थे (श्रीमद्भभागवत पेज 598 )।चंद्रमा से श्री कृष्ण के समय तक कुल 46 राजाओं की पीढ़ीया हुई।भगवान् श्री राम कृष्ण जी से 21 पीढ़ी पहले हुये थे ।महाराज यदु की वंश में 42 पीढ़ी बाद वृष्णी राजा हुएजिनके पुत्र देवमीढुश हुये जिनकी अश्मकी नामक पत्नी से महाराज शूरसेन हुये जिनके मारिषा नाम की पत्नी से वासुदेव आदि 10 पुत्र व् कुन्ती आदि 5 पुत्रियां हुई ।वासुदेव जी की पत्नी देवकी जी जो अंधक वंशी यादव उग्रसैन के भाई देवक की पुत्री थीसे भगवान् श्री कृष्ण हुए ।कुछ जाति विशेष के इतिहासकारों ने अहीरों या गोपों के शासक नन्द जी को यदुवंशियों से जोड़ने के प्रयाश में श्री कृष्ण के 4पीढ़ी पूर्व देवमीढु यदुवंशी राजा की क्षत्रिय पत्नी जो इक्ष्वाकु वंश की राजकुमारी अश्मकी थी उससे महाराज शूरसेन पैदा हुए जिनके वासुदेव जी थे और देवमीढुश की वैश्य जाति की पत्नी से पर्जन्य उत्पन्न हुए जिनके पुत्र नन्द जी हुये जिनसे अहीर या गोप अपनी उत्तपति बताते है जो बिलकुल असत्य है जिसका कोई उल्लेख पौराणिक साहित्य या इतिहास में नही मिलता है ।ऐसे में पर्जन्य की उत्तपति एक मिथक प्रयास कहा जासकता है ।इस सम्बन्ध में पौराणिक एवं ऐतिहासिक कोई भी ऐसा उल्लेख नहीं मिलता जिससे यह प्रमाणित हो सके कि अहीर जाति राजा यदु से उत्पन्न यदुवंश में उत्पन्न है ।आधुनिक देशी व् विदेशी इतिहासकारों ने भी इस जाति का यदु के वंश से कोई सम्वन्ध नही बताया है ।और नही भगवान् कृष्ण के किसी वंशज से इनका सम्वन्ध है। पूर्व काल से ही गोपों और यदुवंशी क्षत्रियों का सामजिक जीवन भिन्न रहा है।इतिहास का अध्ययन व् चिंतन किये बिना कोई कुछ भी लिख दे तो वही सत्य नहीं माना जासकता है।आजकल व्यक्ति अपनी महत्वाकांक्षा के लिए सत्य को भुला कर असत्य की खोज करने में लगरहा है।
श्रीमद्वाभागवत और अन्य पौराणिक ग्रंथों के अनुसार वर्णन मिलता है कि श्री कृष्ण और बलराम के नामकरण संस्कार कराने के लिए वासुदेव जी ने यदुवंशियों के कुलगुरु महर्षि गर्गाचार्य को गोकुल में भेजा था जिन्होंने कंश के भय से गौशाला में छिप कर गर्गाचार्य जी नामकरण संस्कार कराया था ।यह रहस्य नन्द गोप ने अपने अन्य भाई बन्ध गोपों से भी छिपाया था ।यदि नन्द जी यदुवंश में उत्पन्न होते तो वे कृष्ण और बलराम जी का नामकरण अपने कुल गुरु महर्षि शाडिंलया से क्यों नहीं कराया ।क्यों कि एक ही वंश के दो कुलगुरु नहीं होसकते ।गर्गाचार्य जी को सम्पूर्ण श्रेष्ठ यादवों ने महाराज शूरसेन की इच्छा से मथुरापुरी में अपने पुरोहित पद पर प्रतिष्ठित किया था ।उस समय उग्रसेन मथुरा के राजा थे।गर्ग जी की इच्छा से ही वासुदेव और देवकी जी का विवाह हुआ था ।महावन में नंदपत्नी के गर्भ से योगमाया ने स्वतः जन्म ग्रहण किया था ।यशोदा जी को गोपी कहा गया है (गर्ग स0 पेज 30 ) ।नन्द जी ब्रज में शोणपुर के शासक थे।नन्द जी ने खुद कहा है कि मैं तो व्रजवासी गोप -गोपियों का आज्ञाकारी सेवक हूँ वरजेश्वर नंदराय जी कहते थे उनको सभी व्रजवासी ।नन्द जी और वासुदेव जी ने हमेशा हर जगह जहाँ भी मिले है एक दूसरे को मित्र ही कहा है सगे संबंधी नही ।
दुसरा प्रमाण यह है कि भगवान् श्री कृष्ण ने जरासंध के बार बार आक्रमण करने पर ब्रजमंडल की रक्षाभावना से योगमाया के द्वारा अपने समस्त स्वजन सम्बन्धियों को द्वारिका में पहुंचा दिया ।शेष प्रजा की रक्षा के लिए बलराम जी को मथुरा में छोड़ दिया ।इससे इस्पस्ट है कि श्री कृष्ण जी ने समस्त यदुवंशियों को ही द्वारिका पहुंचाया था जो उनके स्वजन संबंधी थे ,ना कि नन्द -यशोदा आदि गोपों को ।उनको तो ब्रज में ही छोड़ दिया था जिनसे काफी समय बाद सूर्यग्रहन पर्व पर कुरुक्षेत्र में आने पर पुनः नन्द ,यशोदा ,राधा जी तथा अन्य गोपों से ब्रज में मिले थे ।इससे प्रमाणित होता है कि नन्द जी गोप वंश के थे न कि यदुवंश से।नन्द आदि गोपों को यदुवंशियों का परम हितैषी कहा गया है न कि यदुवंस में उत्पन भाई के रूप में (श्रीमद् भागवत दशम स्कंध ,अध्य्याय 82 श्लोक 14 ) ।मत्स्य पुराण ,विष्णुपुराण ,गर्गसंहिता ,वायुपुराण ,हरिवंश पुराण ,अग्निपुराण ,महाभारत ,वरहमपुरान ,शुखसागर ,ब्रह्मवैवतरपुरान आदि अनेक पौराणिक ग्रंथों में नन्दादि गोपों का अहीर जाति के अनुसार वर्णन मिलता है ।श्री कृष्ण के लिए सभी जगह यादव /यदुवंशी शब्द का प्रयोग हुआ है ।अब यह बात अलग है कि कोई व्यक्ति किसी पौराणिक या ऐतिहासिक सन्दर्भ का अपने स्वार्थ या पक्ष में किस प्रकार अर्थ निकाल रहा है ,अर्थात अर्थ का अनर्थ कर रहा है ।इसके अलावा सैकड़ों प्रमाण है जिनसे यह सिद्ध होता है कि भगवान् श्री कृष्ण महाराज यदु के वंशज "यदुकुल शिरोमणी "है और नन्द जी के वंश का यदुवंश से कोई भी ताल -मेल का प्रमाण नही मिलता किसी भी प्रमाणिक सर्व मान्य ग्रन्थ या वेद में ।
गर्ग जी ने स्वयं नन्द जी से श्री कृष्ण के नामकरण के समय कहा था कि यह तुम्हारा पुत्र पहले वासुदेव जी के घर भी पैदा हुआ है।इस लिए इस रहस्य को जानने वाले लोग इस बालक को "श्रीमान वासुदेव "भी कहते है ।कृष्ण के वंश का वर्णन भी इस प्रकार है।
श्री कृष्ण की 8 पटरानी थी जिनमे रुक्मणी ,सत्यभामा ,कालिंदी ,सत्या , मित्रविन्दा ,भद्रा ,लक्ष्मणा ,और जामवंती ।इसके अलावा श्री कृष्ण जी ने नरकासुर के वंदी घर से लाई हुई 16100 कन्याओं से भी एक ही लग्न में विविधकाय हो कर विवाह किया और प्रत्येक कन्या से वाद में एक -एक कन्या व् दस -दस पुत्र हुए।इसके आलावा 8 पटरानियों से भी दस -दस पुत्र और एक -एक कन्या हुई।इस प्रकार भगवान् श्री कृष्ण के कुल 1लाख 70 हजार 1 सौ 88 संतानें थी जिनमें प्रधुम्न ,चारुदेशन ,और शाम्ब आदि 13 पुत्र प्रधान थे ।प्रधुम्न ने रुक्मी की पुत्री रुक्मवती से विवाह किया जिससे अनिरुद्ध जी पैदा हुए ।अनिरुद्ध जी ने भी रुक्मी की पौत्री सुभद्रा से बिवाह किया जिससे यदुकुल शिरोमणी यदुवंश प्रवर्तक श्री वज्रनाभ जी पैदा हुए ।वज्रनाभ जी के पुत्र प्रतिवाहु ,प्रतिवाहु के सुवाहू ,सुबाहु के शांतसेन् और शांतसेन् के शतसेन हुये ।यहाँ से ये यदुवंश या यादव वंश फिर अनेक शाखाओं और उपशाखाओं जैसे जादौन ,जडेजा ,भाटी ,चुडासमा ,सरवैया ,छौंकर ,जादव ,रायजादा ,बरेसरी ,जसावत ,जैसवार ,वनाफ़र ,बरगला ,यदुवंशी ,सोहा ,मुड़ेचा ,सोमेचा ,बितमन ,नारा ,पोर्च ,उरिया ,आदि में विभाजित होगया ।सन् 1900 के दशक तक कुछ शिक्षित यदुवंश के लोग यदुवंशी या यादव सरनेम लिखते थे ।कुछ इतिहासकारों ने बाद में यदु या यादव का अपभ्रंश जदु ,जादव ,जादों या जादौन कर दिया जो बाद में प्रचलन में आया ।महाकवि तुलसीदास जी ने रामायण में यदु वंश को जदुवंश कहा है ।
मंडलकमीशंन के सचिव सदस्य S. S. Gilके अनुसार "सच पूछिये तो जाति चिन्ह के रूप में "यादव "शब्द को 1920 के दशक में ढूंडा गया ,जब कई परम्परागत पशु पालक जातियों ने एकजुट होकर भगवान् कृष्ण से अपने वंश का सम्बन्ध जताते हुये अपने इस्तर को ऊपर उठाना चाहा ।उनका कहना था कि कृष्ण स्वयंम पशुपालक थे और "राजा यदु "के वंशज थे ।इस लिए वे इस नतीजे पर पहुंचे कि यह सव जातियां वस्तुतः भगवान् कृष्ण के वंशज है इस लिए उन्हें अपने को "यादव" कहना चाहिये ।किंत्तु यह सही नहीं है ।यह ठीक है कि यादव उस समय विभिन्न गोत्रों /उपनामों का प्रयोग कर रहे थे और उनमें स्वयंम छोटे -बड़े की भावना घर कर गयी ।लेकिन अब समय के अनुसार सभी यदुवंशियों को पुनः संगठित होना चाहिए ।संगठन में बहुत बड़ी ताकत होती है ।इसके साथ -साथ शिक्षित भी होना अति आवस्यक है जिससे समाज में विकास संभव हो ।आज का युग शिक्षा और सम्रद्धि का युग है ।जिस समाज के पास ये दोनों है वही समाज आज विकास की ओर अग्रसर है ।जय हिन्द ।जय यदुवंश ।जय श्री कृष्णा ।
लेखक आभारी है श्री महावीर सिंह जी ,पूर्व प्रवक्ता हिंदी ,ग्राम -रणवारी ,तहसील -छाता ,जिला -मथुरा ,उत्तरप्रदेश जिनकी मदद से ये लेख लिखा गया है ।मैं उनका तहे दिल से आभार प्रकट करता हूँ और भविष्य में आशा करता हूँ कि वे अपना यदुवंश इतिहास लेखन में सहयोग देते रहेंगे ।जय श्री राधे -कृष्णा ।
लेखक - डा0 धीरेन्द्र सिंह जादौन
लेखक - डा0 धीरेन्द्र सिंह जादौन
गांव -लढोता ,सासनी ,जिला -हाथरस ,उत्तरप्रदेश ।
Naam to rajputo ka nah hi jadaun ka or nahi tmne jitne bataye un kisi ka bi naam na vedo me h na purano me h is hisaab se tmlog bi feku hue .jab sare yaduwansi aapas me ladne lage to bhot se yaduwansiyo ki maut ho gyi or jo bach gye unhe lekar arjun indraprasth gye jin me ekbhagwan krishna k parpotra vajra bi the bad me arjun ne unhe mathura ka raja banaya .jb sare yaduwansi dwarka chor chale gye to kaha se aa gye ???or bat rahi k ahir apne ko nand rai ya nand gope ji se jodd kar yaduwansi bata rhe to bhai phle hamari jati k bare pata kar liya hota .hamari jati me sb gwale nahi h ahiro me apna hi caste system h jisme yaduwansi ahir nandwansi ahir or gwalwansi ahir ye teen pramukh h .or hamare ahir jati me ek cast h krishnaut jo tmare or tumare baap k baap k paida hone se phle se krishnaut lagate aye h wo apne sida krishna ka vansaj mante h or sare ahir bi unhe krishna se vansh ka mante h .tmne chutiyapa bhot acha jiya par koi fayda nahi hoga iska rajput sabd ka prayog 6th century k baad aya h jbki mathura mile ek shilalekh k anusar 1st century bc me balram krishna or unke teen putro sahit pancho ko panchaheer k naam se puja jata tha .sri krishna k parpotra vajra ne mathura me kai mandiro ka nirmaan bi kiya h .dusre ko sikchha dene se phle khud to jankari sahi se le liya karo baad me vidhwan banna.
ReplyDeleteमतलब अब गूगल सिर्फ़ कुछ भी फ़ालतू की बाते करने के लिए रह गया है कही पर किसी भी पौराणिक ग्रंथ में जदौन भाटी जडेजा का ज़िक्र नही है फिर भी भगवान श्री कृष्ण को अपना बनाने के लिए लोग किस हद तक गिर सकते है कहा नही जा सकता। अरे इतना ही शौक़ है यदुवंशी बनने का तो लगाओ हमारा सर्नेम यादव अपने नाम के साथ। मतलब कुछ भी
Deleteजो इसमें लिखा गया है की, रामचरित मानस मे यदुवंश को जदुवंश कहा गया है सबसे बड़ा झूठ तो यही है, मै खुद पढ़ा हू और आप सभी भी पढ़ सकते है.....जदुवंश नहीं यदुवंश लिखा है,, और भगवान श्री कृष्णा के प्रपौत्र श्री ब्रजनाभ जी का पूरा वंशावली मेरे पास है,,, द्वारिका की राजधानी रेवाड़ी रियासत आज भी अहीरो के पास है......राव गोपालदेव, राव तुलाराम,राव बिजेन्दर सिंह, राव बीरेन्द्र सिंह, राव इंद्रजीत सिंह
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ReplyDeleteKya chutiyapa hai aheero se hi alag huye ek shakha hai jadaun jadeja bhati chudasama etc.
ReplyDeleteMere bhai division tum hmara ho na ki hm tumhara
DeleteBhai ASI tak ne jaudons bhattis chudasama ko ahirs ka division kaha hai
Deleteजादौन स्वयं अहीर यदुवंशियों की एक शाखा मात्र है यह स्वयं को श्रेष्ठ बताने के प्रयास में इतिहास को तोड़ मरोड़ रहे हैं झूठा इतिहास लिखना और उसे प्रसारित करना बंद करो जाओ जाकर श्रीमद्भागवत महाभारत और प्राचीन भारतीय साहित्य में देखो नंदबाबा और वसुदेव में रक्त संबंध है वैवाहिक संबंध होते थे महाराज वासुदेव की पत्नी देवकी और बलराम की माता रोहिणी दोनों सगी बहनें हैं इस प्रकार झूठा इतिहास भ्रामक प्रचार कर साबित क्या करना चाहते हो प्राचीन भारतीय इतिहास में जो दर्ज है उसे कैसे मिटाओगे
ReplyDeletekutte kabhi ser ki barabari nahi kar sakte,salo nich jati ke ho,or rahoge,yaduvanshiyo ki barabari kabhi nahi kar sakte ho
DeleteBhai gurjar ko chora
DeleteAap ne kabhi OBC list dekhi hai ki nahi
Kyunki ussmein bohut saare kshatriyas bhi hain
Aap adhuri bataun pe tark na banaye
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ReplyDeleteKya chutiyapa hai aheero se hi alag huye ek shakha hai jadaun jadeja bhati chudasama etc.
ReplyDeleteभारत में जादौन ठाकुर तो जादौन पठानों का छठी सदी में हुआ क्षत्रिय करण रूप है ।
ReplyDeleteक्योंकि अफगानिस्तान अथवा सिन्धु नदी के मुअाने पर बसे हुए जादौन पठानों का सामन्तीय अथवा जमीदारीय
खिताब था तक्वुर जो भारतीय भाषाओं में ठक्कुर - ठाकुर ,टैंगॉर तथा ठाकरे रूपों में प्रकाशित हुआ।
जमीदारी खिताबो के तौर पर भारत में इस शब्द का प्रयोग उन लोगों के लिए सबसे पहले हुआ ---जो तुर्की काल में जागीरों के या भू-खण्डों के मालिक थे ।
उस समय पश्चिमीय एशिया तथा भारतीय प्राय द्वीप में इस्लामीय विचार धाराओं का भी आग़ाज (प्रारम्भ) नहीं हुआ था। उसके लगभग एक शतक बाद ई०सन् 712 में मौहम्मद बिन-काशिम अरब़ से चल कर ईरान में होता हुआ भारत में सिन्धु के मुहाने पर उपस्थित होता है।
उस समय जादौन पठानों के कबीलों में अपने रुतबे का इज़हार करने के लिए सामन्तीय अथवा जमीदारीय
खिताब के रूप में तक्वुर( tekvur) शब्द का प्रचलन था । तब जादौन पठान ईरानी एवं यहूदी विचार धारा से ओत-प्रोत थे । सर्वत्र ईसाई विचार धारा का बोल-बाला था । यहाँ ठाकुर शब्द की व्युत्पत्ति पर एक प्रमाण
Origin and meaning of tekvur name..
The Turkish name, Tekfur Saray, means "Palace of the Sovereign" from the Persian word meaning "Wearer of the Crown". It is the only well preserved example of Byzantine domestic architecture at Constantinople. The top story was a vast throne room. The facade was decorated with heraldic symbols of the Palaiologan Imperial dynasty and it was originally called the House of the Porphyrogennetos - which means "born in the Purple Chamber". It was built for Constantine, third son of Michael VIII and dates between 1261 and
From Middle Armenian թագւոր (tʿagwor), from Old Armenian թագաւոր (tʿagawor).
Attested in Ibn Bibi's works......
(Classical Persian) /tækˈwuɾ/
(Iranian Persian) /tækˈvoɾ/
تکور • (takvor) (plural تکورا__ن_ हिन्दी उच्चारण ठक्कुरन) (takvorân) or تکورها (takvor-hâ))
alternative form of
Persian
in Dehkhoda Dictionary
तुर्कों की कुछ शाखाऐं सातवीं से बारहवीं सदी के बीच में मध्य एशिया से यहाँ आकर बसीं।
इससे पहले यहाँ से पश्चिम में आर्य (यवन, हेलेनिक) और पूर्व में कॉकेशियाइ जातियों का बसाव रहा था।
यहाँ हर्षवर्धन (590-647 ई.) प्राचीन भारत में एक राजा था जिसने उत्तरी भारत में अपना एक सुदृढ़ साम्राज्य स्थापित किया था।
उसके राज्यविस्तार के पतन के बाद यहाँ विदेशीयों हूणों कुषाणों तथा तुर्कों एवं सीथियन Scythian जन-जातियाें का राजपूतीकरण हुआ ।
जिनमें सिन्धु और अफगानिस्तान के गादौन / जादौन पठानों की भी संख्या थी।
ठाकुर शब्द के मूल रूप के विषय में हम आपको बताऐं!
कि तुर्किस्तान में (तेकुर अथवा टेक्फुर ) परवर्ती सेल्जुक तुर्की राजाओं की उपाधि थी।
बारहवीं सदी में तक्वुर शब्द ही संस्कृत भाषा में ठक्कुर शब्द के रूप में उदिय हुआ ।
संस्कृत शब्दकोशों में इसे
ठक्कुर के रूप में लिखा गया है।
कुछ समय तक ब्राह्मणों के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता रहा है ।
क्योंकि ब्राह्मण भी जागीरों के मालिक होते थे ।
जो उन्हें राजपूतों द्वारा दान रूप में मिलती थी।
और आज भी गुजरात तथा पश्चिमीय बंगाल में ठाकुर ब्राह्मणों की ही उपाधि है।
तुर्की ,ईरानी अथवा आरमेनियन भाषाओ का तक्वुर शब्द एक जमींदारों की उपाधि थी ।
समीप वर्ती उस्मान खलीफा के समय का हम इस सन्दर्भों में उल्लेख करते हैं।
कि " जो तुर्की राजा स्वायत्त अथवा अर्द्ध स्वायत्त होते थे ; वे ही तक्वुर अथवा ठक्कुर कहलाते थे "
उसमान खलीफ का समय (644 - 656 ) ई०सन् के समकक्ष रहा है । भारत में यहाँ हर्षवर्धन का शासन तब क्षीण होता जारहा था ।
उस्मान को शिया लोग ख़लीफा नहीं मानते थे।
सत्तर साल के तीसरे खलीफा उस्मान (644-656 राज्य करते रहे हैं) उनको एक धर्म प्रशासक के रूप में निर्वाचित किया गया था।
उन्होंने राज्यविस्तार के लिए अपने पूर्ववर्ती शासकों- की नीति प्रदर्शन को जारी रखा ।
इन्हीं के मार्ग दर्शन में तुर्कों ने इस्लामीय मज़हब को स्वीकार किया।
ठाकुर शब्द विशेषत तुर्की अथवा ईरानी संस्कृति
में अफगानिस्तान के पठान जागीर-दारों में भी प्रचलित था पख़्तून लोक-मान्यता के अनुसार यही जादौन पठान जाति ‘बनी इस्राएल’ यानी यहूदी वंश की है।
इस कथा की पृष्ठ-भूमि के अनुसार पश्चिमी एशिया में असीरियन साम्राज्य के समय पर लगभग 2800 साल पहले बनी-इस्राएल के दस कबीलों को देश -निकाला दे दिया गया था।
और यही कबीले पख़्तून थे ।
मुग़ल काल में भी अकबर से लेकर अन्तिम मुग़ल बादशाह बहादुर शाह जफ़र तक , हर मुग़ल शासक अकबर के बाद तक़रीबन सारे बादशाह राजपूत कन्याओ से ही पैदा हुए ।
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Mool roop se ye ahiro k hi nsl hai. Us jagah pe aaj bhi aheer pthan maujood hai
DeleteThakur Shree Krishna ko bhi kaha jata tha .
DeleteAhir jati ki aurate Thakuro ke ghar kyu rakhel hoti thi itne bare kshatriya thai toh aap . Search kro Marwar Ahir concubine .
Bihar mein itne saal mai ek bhi ahir samrajya nhi rha jabki sabdr kyada shankhya inhi ki hai . Bihar mein jabki Rajput jab gay toh kuch saalo ke bhitar khudh jameen jiti aur raaj kiya . Example Chandel or Gidhaur , Parmar of Shahabad and Saharsa madhepura , Bundela etc.
Apni nich mansikta sai tum rajputo ka islamikaran krnai mai lage ho jinkai paas vanshvali hai . Accha Suryavanshi Rajputo se apki jaati ka vivah kyu nhi hota . Ya phir Puruvanshi se hi kyu nhi hota .
Jaat of bharatpur bhi jadoun thakuro ke jaat concubine se nikale hai .
Pathak ahir jo ki yadu ke vanshaj hone ka dawa bhi krtai hai vanshavali hai kehtai hai saath hi khudh ko mewar ke sisodia rajput aur unki ahir rani ka vanshaj mante hai .
Apki jaati ke bare mai kaha gya hai ki ye pashu chor hai shahabad kshetra mai . Aap bhojpuri kahawate pg 186 check kr le waha likhi har bat aam logo se li gyi hai .
Bhgwan Shri Krishna Yadav ahir the ....or Yadav ahir hii Shri Krishna k vanshaj hai.....muglo ko bhen beti dene wale nhi
DeleteYahan ek bhai tak ko yeh nahi pata thakur koi jaati nahi hai ek subsidiary title hai jo ki bohut log use karte hain madhya pradesh mein yadavon yani ahirs ko thakur kaha jata hai aur kayi Brahmans bhi apne naame mein thakur upathi roop lagate hain like devki Nandan ji jab aapko pata na... 5oh gyan nahi dena chahiye
DeleteYadavs ahirs hi hqin ecen epigraphic proofs hain abhiras kr krishna ko abhira ke liye 😆
मुकाबला हमसे करो इतिहास की विस्तृत जानकारी हो जाएगा
ReplyDeleteव्हाट्सप् न० 8077160219
Pehle pichdi jaati ke aadhar par reservation ki bheekh mangna band karo. Fir muh khol
DeleteDoctor sahab Bhagwankrishna ko shishir kaha jata hai kalia nag ka mardan karane se aheer kipadavi paye the
ReplyDeleteAbe chutia hum krishnaut/vrishni vansi Yadav hai,,,,tu bata ,,tu hai kya??
ReplyDeleteNand Baba ko Apmanit karne wala ko krishna ji chorenge nahi..
Ye Harivans puran se hai...hindi roop me
ReplyDeleteनारद की इस बात पर भगवान विष्णु बोले, हे नारद, इस समय में मैं विचार कर रहा हूँ कि कहां और किस वंश में जन्म लूँ । अभी तक मैं इसका निर्णय नहीं कर सका हूँ । मुनिवरों । भगवान विष्णु के इस कथन पर नारदजी ने उनको कश्यप का वर्णन करते हुए कहा कि वह महात्मा वरुम से गायें मांगकर ले गये, बाद में वापस नहीं की । इस पर वरुण मेरे पास आया । तब मैनें कश्यप को ग्वाला हो जाने का शाप दे दिया । इस समय कश्यप वासुदेव के रुप मे मेराश्राप भोग रहे है । उनकी दोनों पत्नियां देवकी और रोहिणी के रुप में उनके साथ है । वह पापी कंस के अधीन रह कर बड़ा दुख पा रहे है । वरुण के साथ विश्वासघात करने और मेरे श्राप का फल पा रहे है । मेरा तो यह सुझाव है कि आप उनके यहां ही अवतार लें । नारद का यह प्रस्ताव भगवान विष्णु ने स्वीकार कर लिया । व श्रीर सागर में स्थित उत्तर दिशा में अपने निवास में चले गए । फिर मेरु पर्वत की पार्वती गुफा में प्रवेश कर अपनी दिव्य देह त्यागकर वासुदेव के यहां जन्म ग्रहण करने के लिये चले गये ।
Dekh ye Ramanand Sagar ka Mahabharat
ReplyDeletehttps://youtu.be/MKmv9gxptVk
ye Rajpoot yadavo ko kya bol rahe hai
https://youtu.be/6vjIRHdj4EI
Dekh Modi YADAV pe kya bole hai..
https://youtu.be/Hp--LxEsOss
Jadaun banjare k aulad hote hai.. Pta kr le.. Chala hai yadav bn ne
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DeleteSirf karauli k jadaun hi yaduvanshi hai. Ur ye rajput jati bna hi 12 th century m
ReplyDeleteUr ek bhi proof de de jis se ye proof ho jaye ki tm asli ho ur hm nakli... Bc
ReplyDeleteMixbreed banjare k aulad. Yadav bn ne ki koshish m lage raha aise hi aaj kl chamar bhi yadav bnne laga hai
ReplyDeleteTeri ma ka bhosra maru bahn ke lode jadon ke nam pe 3 kile regiterd he or bahart ke sasak rahe he...or banzara jadan alag he unka kam bhatakna hota he...randwe jaise jamindar me thakur likhta he waise bal katne wala nayi bhi thakur likhta he par dono me antar he ...waise hi jadon ek riyast he jiske 3 kile bane hue he or banzara jadan alaag he jo teri ma ke chut se nahi nikle he...jara jakar wikepidya pe dekh le...waha kya kya dikhata he shi se padhna...agar bhais charana ho gaya ho to
DeleteBhai anonymous ahiron ke naam pe bhi 7 kile aur kuch 6 monuments hain check karlo Google pe
DeleteAbe tu ek randi ki aulad hai ma ka dudh piya hai to ye sabit kar ke dikha ki nand baba aur vasudev ji alag alag vansh ke the tere jaise hizde jo mughlu ki chudai ke natteje hai aise hi itihas ke saath chedkhani karte hai
ReplyDeleteNad baba gop the gau palak ...or krihsn yaduvshi chatriya the...or us rajya me bahaut se yadav ahir gand mara rahe the to chatiya gai charane wala nahi hota chatriya wo hota he jiske pas hathi gote top yudh ke aujar hote he baish pe baith ke jung nahi ladta he koi...or gop vansh ke the nand ji...unka vansh alag tha ..jaise yayati ke 4 beto se alag alag vansh suru hui the waise hi ...gop vansh gai palane wala tha or krihsn chatiya raja ke gharane me the isliye dono ke karam me farak tha..or purane smay me karam ko lekar hi dharam banayi jati thi...raja chatriya hota tha...gai charane wala or ahir nokar chudra mana jata tha...chudra jiska jikar mahrisi vyas ka smriti chapter 1 me slok 10 11 12 me he jakar padh le
Deleteyadav ak hai
ReplyDeleteएकता बनाएं सभी यदुवंशी चाहे यादव हो या जादौन
ReplyDeleteएकता में ही शक्ति है
ReplyDeleteएकता तो तब होगी जब जहर उगलना बन्द करें
ReplyDeleteऊपर लिखे लेख और कमेंट पढकर अत्यंत दुख हुआ।
ReplyDeleteइस भारत में यदुवंश इतना पुराना वंश है,जिसकी आज हजारों शाखायें होंगी। जो हजारों जातियों के रूप में जानी जाती होंगी। वे सभी हजारों शाखायें या जातियां यदुवन्स की ही शाखायें हैं । फिर असली नकली की लड़ाई बेमानी है ।
इतना पुराना वंश होने के कारण अधिकांश भारत को इसी वंश ने बसाया।
इसी वंश की कुछ शाखायें जो सिन्ध प्रांत में बसी हुई थी,जैसे समैचा,बिदमन,सोहा इत्यादि इसलामिक दरिंदगी का शिकार होकर इस्लाम मे परवर्तीत हो गयी।
अत: किसी एक शाखा द्वारा स्वयं को असली कह दूसरी को नकली कहना उचित नही।
आज की महती आवश्यकता है कि सभी हिन्दू एकजुट होकर अपने देश,धर्म,संस्कृति को को बचाना ।जिसे इस्लाम और इसाईयत दोनो ही निगलने के प्रयास मे पूरी ताकत से लगी हुई है ।
सही कहा आपने ,देश, काल ,परिस्थिति के कारण यदुकुल विभिन्न जातीयों में बट गया ,इसमें कोई शक नहीं है,
DeleteJai Yaduvnsh,Jai Shree Krishna.
ReplyDeleteSabhi Yadav Bhaio ko mera Pranam.
Main sabhi Yadav Bhaio Se ek baat kahna chhata hu ki, hum sabhi ek aise vanse main paida hue hai jo ki sansar ka sabse acchacha vansh hai. Hame apne per Garv Karte hue apne value, apne vanse ka naam ko baneai rakhe. Apna vikash, apne vanse ka vikas Kare. Sabhi Yadav Bhaio main ekta hone chahia.
Bolo, Jai Shree Krishna. Jai Yaduvnsh ki. Jai Bharat Mata ki.
Jai Yaduvnsh,Jai Shree Krishna.
ReplyDeleteSabhi Yadav Bhaio ko mera Pranam.
Main sabhi Yadav Bhaio Se ek baat kahna chhata hu ki, hum sabhi ek aise vanse main paida hue hai jo ki sansar ka sabse acchacha vansh hai. Hame apne per Garv Karte hue apne value, apne vanse ka naam ko baneai rakhe. Apna vikash, apne vanse ka vikas Kare. Sabhi Yadav Bhaio main ekta hone chahia.
Bolo, Jai Shree Krishna. Jai Yaduvnsh ki. Jai Bharat Mata ki.
Jai Yaduvnsh,Jai Shree Krishna.
ReplyDeleteSabhi Yadav Bhaio ko mera Pranam.
Main sabhi Yadav Bhaio Se ek baat kahna chhata hu ki, hum sabhi ek aise vanse main paida hue hai jo ki sansar ka sabse acchacha vansh hai. Hame apne per Garv Karte hue apne value, apne vanse ka naam ko baneai rakhe. Apna vikash, apne vanse ka vikas Kare. Sabhi Yadav Bhaio main ekta hone chahia.
Bolo, Jai Shree Krishna. Jai Yaduvnsh ki. Jai Bharat Mata ki.
Jai Yaduvnsh,Jai Shree Krishna.
ReplyDeleteSabhi Yadav Bhaio ko mera Pranam.
Main sabhi Yadav Bhaio Se ek baat kahna chhata hu ki, hum sabhi ek aise vanse main paida hue hai jo ki sansar ka sabse acchacha vansh hai. Hame apne per Garv Karte hue apne value, apne vanse ka naam ko baneai rakhe. Apna vikash, apne vanse ka vikas Kare. Sabhi Yadav Bhaio main ekta hone chahia.
Bolo, Jai Shree Krishna. Jai Yaduvnsh ki. Jai Bharat Mata ki.
Khangar rajput ko kyu choddiya
ReplyDeleteजय हो यदुवंश की पर कुछ लोग यदुवंश में सम्लित होकर यदुवंश को नीचा दिखाने की कोसिस कर रहे है उनका क्या करे।जो शोशल मीडिया पर गली बक रहे है उनके ऊपर कारबाही होना चाहिए।जय श्री कृष्णा
ReplyDeleteJo yh kha rha hai ki nand GOP the abe jaake Phir se padho vishnu Puraan me
ReplyDeleteYe ahir jaati ke log kitne yaduvanshi hai iska pata iss post ke comment section se hi pata chal gya hoga. Innki asli nasal apko dekhni hai toh bihar mai jakar dekh le inki asliyat .
ReplyDeleteasliyat to tumhari khul gayi hai tabhi to tilmila gae ho
Deleteek mast fact batata ho Yadavo me ek sub cast hai jinhe gop yadav kehte hai
ReplyDeleteAur jante ho narayani sena ka dosra naam kya tha Gopayan yani gop/gwalo se bani sena
https://books.google.co.in/books?id=8YtjAAAAMAAJ&q=%E0%A4%B5%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A3%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%82%E0%A4%B6%E0%A5%80%E0%A4%AF+%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A4%A8%E0%A5%8C%E0%A4%A4&dq=%E0%A4%B5%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A3%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%82%E0%A4%B6%E0%A5%80%E0%A4%AF+%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A4%A8%E0%A5%8C%E0%A4%A4&hl=en&sa=X&ved=2ahUKEwiuldqS2sX2AhXAyzgGHYreDk0Q6AF6BAgDEAM
ReplyDeleteआज कुछ प्रश्न है जिनका उत्तर देना है
ReplyDeleteपहला प्रश्न है - भगवान कृष्ण का जन्म किस जाति में हुआ था और उनका पालन पोषण किस जाति में हुआ था??????
उत्तर- ऋग्वेद में भारतवर्ष के पांच प्रसिद्ध राजा का उल्लेख मिलता है उनसे से एक राजा है ' यदु' , जिनको कि ऋग्वेद में यदु को गोप कहा गया है क्योकि जैसे कि हम पढ़ते है NCERT या स्कूल/कॉलेज की किताब में कि ऋग्वेदिक समाज मुख्यत पशु पालक और योद्धा थी।
महाभारत के खिल भाग हरिवंश पुराण में कृष्ण जी के जैविक पिता वसुदेव जी को ' गोप' जाति का बताया गया है। उनके पालक पिता नंद बाबा को 'गोप' बताया गया है।
यहाँ तक कि पोंड्रक भी कृष्ण जी यादव कुल उत्पन्न बसुदेव गोप पुत्र कह कर संबोधित करते है।
Reference- Anthropological survey of India
https://books.google.co.in/books?hl=hi&id=wT-BAAAAMAAJ&dq=gopala+kshatriyas&focus=searchwithinvolume&q=gop%C4%81+vasudeo+90%2F36
विष्णु पुराण के अनुसार ब्रह्मा ने सभी देवताओ को गोप ( यादव) में जन्म लेने को कहा।
Refrence- Vishnu Puran
https://books.google.co.in/books?id=BjwqAAAAYAAJ&dq=Gopas%2C+Yadava&focus=searchwithinvolume&q=Gopas
महाभारत में ही कृष्ण जी की विश्वविजयी सेना - ( नारायणी सेना) को गोप सेना बताया गया है।
Source- Anthropological Survey of India
https://books.google.co.in/books?id=wT-BAAAAMAAJ&dq=%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%AA+%E0%A4%95%E0%A5%80+%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A3%E0%A5%80+%E0%A4%B8%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A4%BE&focus=searchwithinvolume&q=Narayani+sena
भागवत पुराण के अनुसार कृष्ण जी के पालक पिता नंद बाबा और जैविक पिता वसुदेव आपस में चचेरे भाई थे।
Reference- Anthropological survey of India
https://books.google.co.in/books?id=wT-BAAAAMAAJ&dq=gopala+kshatriyas&focus=searchwithinvolume&q=Nanda+king+kshatriya+Gopal
~~पदम पुराण के अनुसार कृष्ण जी का जन्म मथुरा के अभिरो ( अहिरो) मे हुआ था।
इसके अलावा शक्तिसंगम तंत्र के अनुसार अभीर यादव कुल के राजा अहुक के वंसज है.
शक्ति संगम तंत्र, पृष्ठ 164)
आहुक वंशात समुद्भूता आभीरा इति प्रकीर्तिता।
Reference--Jesus and Moses Are Buried in India, Birthplace of Abraham and the Hebrews!
By Gene Matlock
https://books.google.co.in/books?id=WOQ5bucsDyAC&pg=PA40&dq=O+Abhira+of+mathura+I+born+among+you&hl=en&sa=X&
अब प्रश्न उठता है कि राजपुत जाति दावा करती है कि कृष्ण जी उनके जाति की था????
इस प्रश्न का उत्तर आप राजपुत कुल में पैदा हुई और राजपुत कुल की बहु महान कृष्ण भक्तिनी मीरा बाई से ले सकते है
मीरा बाई ने अपने भजनों में कृष्ण जी को ' अहीर' जाति का बताई है।
" मीरा के प्रभु गिरधर नागर, आखिर जात अहीर रे "।
मीरा बाई जी का भजना- पदावली में कृष्ण जी की जाति 'अहीर' लिखी है
https://books.google.co.in/books?id=bbFjAAAAMAAJ&q=%E0%A4%86%E0%A4%96%E0%A4%BF%E0%A4%B0+%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A4+%E0%A4%85%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%B0&dq=%E0%A4%86%E0%A4%96%E0%A4%BF%E0%A4%B0+%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A4+%E0%A4%85%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%B0&hl=en&sa=X&ved=2ahUKEwjXupqj7ZD2AhWYwjgGHS-jAScQ6AF6BAgEEAM
राजपुत समाज आम लेखको के लिखे किताब के मध्यम से दावा करते है मध्यकाल के प्रसिद्ध योद्धा आल्हा- उदल उनके जाति के थे लेकिन Archiological survey of India रिकॉर्ड मे आल्हा- उदल को अहीर सरदार लिखा हुआ है
https://books.google.co.in/books?id=6exhXmVQixUC&pg=PA73&dq=Alha-+Udal+Ahir&hl=en&sa=X&ved=2ahUKEwj-vpSj7JD2AhURxDgGHaPMD0wQ6AF6BAgFEAM#v=onepage&q=Alha-%20Udal%20Ahir&f=false
महान इतिहासकार अलेक्डेन्जर कांनिंघम ने भी आल्हा- उदल को अहीर सरदार लिखा है
https://books.google.co.in/books?id=1s8OAAAAQAAJ&pg=PA73&dq=Alha-+Udal+Ahir&hl=en&sa=X&ved=2ahUKEwj-vpSj7JD2AhURxDgGHaPMD0wQ6AF6BAgEEAM#v=onepage&q=Alha-%20Udal%20Ahir&f=false
राजपूतीकरण- पार्ट 2.
ReplyDeleteआज जदोन, भाटी, चुदासमा और जडेजा के राजपूतीकरण के बारे जानेंगे.
करौली के यादव अपने नाम के साथ सिंह की जगह पाल लगाते थे सिर्फ इसलिये की यदुवंशी श्री कृष्ण की परंपरा का पालन करते हुए गौ पालक और गौ संरक्षक होते हैँ। उनमे गौ रक्षा के लिये इतना आग्रह होता है की वो गौ भक्षक सिंह की जगह पाल का उपयोग करते हैँ।
https://karauli.rajasthan.gov.in/content/raj/karauli/en/stone-industries/about-karauli/history.html#
करौली राजवंश के संस्थापक ब्रह्म पाल के बेटे दिग्गपाल को अहीर राजा कहा गया.
Source- Seattlement of District, Karauli.
https://books.google.co.in/books?id=7ZoIAAAAQAAJ&pg=RA1-PA23&dq=digpal+mahaban+ahir&hl=en&sa=X&ved=2ahUKEwik89qc1O3uAhW0IaYKHd3_CEAQ6AEwAHoECAEQAg#v=onepage&q=digpal%20mahaban%20ahir&f=false
करैली के राजवंश यादव या अहीर है.
Source- Joseph Davey Cunningham( famous Historian).
Asian Educational Service
https://books.google.co.in/books?redir_esc=y&id=FdPFkAsDJVgC&q=Ahir
जीतने भी राजपूत खुद को यदुवंशी राजपूत बोलते है उनकी उत्पति यदुवंशी अहीर से है. नारायणी सेना जो महाभारत काल की सबसे शक्तिशाली सेना थी, जिसके भय से सभी राजा श्री कृष्ण जी से मित्रता करते थे वो सेना अहीर ( गोप) की थी.
Source- Indian Statuary commision.
https://books.google.co.in/books?hl=hi&id=KTEoAAAAMAAJ&dq=narayani+army+of+Yadava&focus=searchwithinvolume&q=narayani+army+
यदुवंशी क्षत्रिय सिर्फ अहीर है.
Source-Anthropological survey of India
https://books.google.co.in/books?id=wT-BAAAAMAAJ&dq=cattle+and+the+stick&focus=searchwithinvolume&q=Kshatriyas
1818 तक के सरकारी रेकॉर्ड मे किसी जादौन नाम के प्रजाति का नाम नही है. स्थानीय बोलचाल मे जादौन को किरार बोला जाता है, माना जाता है ये लोग करौली के असली यादव/अहीर राजा के वंसज नही है.
जादौन एक बंजारे का गोत्र है.
Source-The Banjara https://books.google.co.in/books?id=JNvGp4Yuk4QC&pg=PA19&dq=Jadaun+sub+caste+of+Banjara&hl=en&sa=X&ved=2ahUKEwi1ksSMw4TvAhUVfH0KHXOWBEcQ6AEwAHoECAMQAw#v=onepage&q=Jadaun%20sub%20caste%20of%20Banjara&f=false
भाटी.
भाटी के शिलालेख के अनुसार ये लोग यादवों के प्राचीन राजधानी काशी से अफगनिस्तां और फिर तुर्क के तरफ चले गए फिर 12 वी सदी मे जैसलमेर आये और अपना राज स्थापित किया.
भाटी खुद को जादम कुल से उत्पन्न बताते है जो की एक अहीर सरदार थे. जादम कुल के जाट, गुज्जर और राजपूत मे भी पाया जाता है लेकिन मुख्य रूप से ये अहीर का कुल है.
बहुत से अहीर का कुल उनके सरदार के नाम पर पड़ा, जिसमे गंवाल, जादम, दाबर, दहमीवाल आदि.
Source- Richard Gabrarl fox, duke univercity, program in comparstive studies on South Asia.
https://books.google.co.in/books?redir_esc=y&id=CAXULggU0QMC&focus=searchwithinvolume&q=Jadam
जडेजा & चुदासमा.
जडेजा सीरिया के मुस्लिम अबी जाहल के वंसज है उसने जाम सरनेम पैगंबर नूह से पाए है जो अपने नाम के साथ 'जाम' लगाते थे. पैगंबर नुह के बेटे का नाम 'साम' था, इसीलिए इन्हें समा वंशी भी कहते है. राजपुताना ( राजस्थान) या राजपूतों के इतिहास पर शोध करने वाले कर्नल टॉड ने सम्मा को कृष्णजी के पुत्र साम्ब से जोड़ दिया.
Source: Bombay Presidency Gazeteer
https://books.google.co.in/books?id=JH7q-DP30HUC&pg=RA1-PA57&dq=jadeja+rajput+are+descendants+of+muslim+bombay+Gazetteer+Jam+unar&hl=hi&sa=X&ved=0ahUKEwj6gIqah_TqAhX7zTgGHSLnBkcQ6AEIMjAB#v=snippet&q=Tod%20connects&f=false
जडेजा अपने नाम के साथ 'जाम' टाइटल लगाते है और कच्छ और जाम नगर मे उन्हे जाम साहब कहा जाता है. 'जाम' टाइटल सिंध के मुस्लिम बादशाह का होता था.
Source- Gujrat state gazettere; Jam Nagar.
https://books.google.co.in/books?id=WLNhAAAAIAAJ&dq=Jadeja+Egypt+origin&focus=searchwithinvolume&q=Muslim+ruler+Jam+Yama
Archeological survey of India का रिपोर्ट के मुताबिक चुदासमा सिंध का 'अभीर' थे जो 875 AD मे कच्छ आये. चुदासमा युवराज गृहरिपु को सिंध का 'अभीर' या 'यादव' कहा गया है.
Source- Archiological survey of India.
https://books.google.co.in/books?id=2eIcAAAAMAAJ&q=Chudasama+Abhira&dq=Chudasama+Abhira&hl=en&sa=X&ved=2ahUKEwiE8Jyw9f_vAhVdyzgGHag5C6kQ6AEwA3oECAIQAw
Yadav (Ahir) ke baare me to tumne acche se tulna kar ke bata diya ki yadav or ahir alag hai
ReplyDeleteAb ye bhi bata do ki jadaun, Jadeja, bhati, jadhav, Chudasama ye sab asli Yaduvanshi hai
dusro pe ungli uthane se pahele apne aap ko dekh lete ki tumhara itihas kiya hai