ब्रज में छाता क्षेत्र के नरी -सेमरी गांव में विराजमान नरी सेमरी देवी माँ का इतिहास

ब्रज में छाता क्षेत्र के नरी -सेमरी गांव में विराजमान नरी सेमरी देवी माँ का इतिहास---

 एक बड़ा मेला जिसे नवदुर्गा में गांव नरी -सेमरी में आयोजित किया जाता है जो चैत के महीने में अंधेरी पाख में आयोजित होता है ।यही पर्व कोसी क्षेत्र में साँचौली और नगरकोट में  अलग अलग तिथियों मेंआयोजित होता है ।
ब्रज मंडल के छाता तहसील में मथुरा -दिल्ली मार्ग पर लगभग 25 किमी0 दूरी पर दायी ओर नरी -सेमरी का प्रवेश द्ववार दिखाई देता है ।दरअसल गांव का नाम सेमरी है ।इसके ठीक सामने पास में ही नरी गांव है , लेकिन पौराणिक समय से इसे सामूहिक नरी -सेमरी ही कहा जाता है ।ये दोनों गांव जादौन राजपूतों के बड़े एवं मशहूर गांव है ।अवागढ़ राज परिवार के पूर्वजों का भी मुल निकास इसी नरी गांव से था ।
सेमरी गांव में द्वापर की श्यामला सखी का निवास था ।गांव में मैया का भव्य मंदिर है ।ऐसा प्रतीत होता है कि गांव का नाम सेमरी भी श्यामला की नाम से लिया गया हैजो कि देवी माता के नाम श्यामला से सम्बंधित है । शब्द सेमरी श्यामला का अपभ्रंश है ।(The world Semri is a corruptionof Syamala -Ki ,with reference to the ancient shrine of Devi, who has Syamala for G of her names (compare Simika, an ant-hill,for Syamika ).मंदिर में गर्भगृह में सरस्वती , महाकाली और लक्ष्मी माता के दर्शनहोते है ।सिंहासन के नीचे कांगड़ा से लाई गई पिंडी स्थापित है जिसे नरी -सेमरी मैया के नाम से पूजा जाता है ।सामने चरणों की तरफ लागुंरा वीर प्रतिष्ठित है ।ब्रज क्षेत्र के अनेक लोग मैया को कुलदेवी के रूप में पूजते है ।मंदिर प्रांगड़ में राधा -कृष्ण की प्राचीन मूर्ति विराजमान है ।स्थानीय लोगों के अनुसार अजीत बाबा ने मंदिर का निर्माण कराया था ।इस की सेवा पूजा चार गांव  सेमरी , नगला देवी सिंह , नगला विरजा तथा दददी गढ़ी  के जादौन राजपूत जमींदार लोग करते है ।  ये चारों गांवों के जादौन राजपूत एक ही पूर्वज के वंशज है ।चैत की अमावस्या -पूर्णिमा तक माता का मेला लगता है जिसमें उनकी दिव्य आरती होती है ।नरी -सेमरी कुण्ड जलकुम्भी से पूर्ण भरा है जो देखने में सूंदर भी लगता है ।मंदिर में पूजा अर्चना के भी कुछ तिथि निर्धारित है  पहले दिन आगरा के लोगों के लिए ,दूसरा दिन क्षेत्र के जादौन राजपूतों का,तीसरा दिन अन्य सभी राजपूतों के लिए तथा बाद में सभी समाज के लोगों के लिए निर्धारित होता है ऐसा सुना गया है ।
  मैया का मंदिर लगभग चार सौ वर्ष पुराना है ।नरी -सेमरी मैया का इतिहास आगरा से जुड़ा हुआ है ऐसी किवदंती है कि आगरा के देवी भक्त सैकड़ों से नगरकोट कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश )की ब्रजेश्वरी देवी को अपनी आराध्य  कुलदेवी केरूप में पूजते आ रहे है ।मैया की जात बड़ी कठिन होती है ।ऐसा कहा जाता है कि पूर्व में आगरा के ध्यानू भक्त के मन में विचार आया कि क्यों न देवी को नगरकोट से आगरा ले चलें ।तब छड़ी धारक भक्त नगरकोट से मैया की पिंडी लेकर आगरा को चल पड़े ।भक्तो ने रात्रि में नरी -सेमरी कुण्ड के किनारे पड़ाव डाल दिया ।मंगल गीतों के बाद मैया की आरती करके शयन करा दिया गया ।प्रातः काल जब भक्तों ने यात्रा शुरू करनी चाही तो देवी यहाँ से नहीं हिलीं ।तभी मैया को नरी -सेमरी गांव में ही पथरा दिया गया तभी से नगर कोट की ये देवी माँ नरी -सेमरी मैया के नाम से जानी जाने लगीं ।आज भी नगर कोट कांगड़ा देवी के भक्त छड़ी लगा कर अपने शिस्यों के साथ  मेले में मैया का पूजन करते है ।
नरी -सेमरी गांव का पूर्व इतिहास---
नरी सेमरी के नाम से जुड़ी एक कथा कही जाती है, जो निम्न प्रकार है-
किसी समय मानिनी श्री राधिका का मान भंग नहीं हो रहा था। ललिता, विशाखा आदि सखियों ने भी बहुत चेष्टाएँ कीं, किन्तु मान और भी अधिक बढ़ता गया। अन्त में सखियों के परामर्श से श्रीकृष्ण 'श्यामरी' सखी बनकर वीणा बजाते हुए यहाँ आये। राधिका श्यामरी सखी का अद्भुत रूप तथा वीणा की स्वर लहरियों पर उतराव और चढ़ाव के साथ मूर्छना आदि रागों से अलंकृत संगीत को सुनकर ठगी-सी रह गईं। उन्होंने पूछा- "सखि! तुम्हारा नाम क्या है? और तुम्हारा निवास-स्थान कहाँ है?"

सखी बने हुए कृष्ण ने उत्तर दिया- "मेरा नाम श्यामरी है। मैं स्वर्ग की किन्नरी हूँ।" राधिका श्यामरी किन्नरी का वीणा वाद्य एवं सुललित संगीत सुनकर अत्यन्त विह्वल हो गईं और अपने गले से रत्नों का हार श्यामरी किन्नरी के गले में अर्पण करने के लिए प्रस्तुत हुई, किन्तु श्यामरी किन्नरी ने हाथ जोड़कर उनके श्री चरणों में निवदेन किया कि आप कृपा कर अपना मान रूपी रत्न मुझे प्रदान करें। इतना सुनते ही राधिका जी समझ गईं कि ये मेरे प्रियतम ही मुझसे मान रत्न मांग रहे हैं। फिर तो प्रसन्न होकर उनसे मिलीं। सखियाँ भी उनका परस्पर मिलन कराकर अत्यन्त प्रसन्न हुईं। इस मधुर लीला के कारण ही इस स्थान का नाम 'किन्नरी' से 'नरी' तथा 'श्यामरी' से 'सेमरी' हो गया है।

'वृन्दावनलीलामृत' के अनुसार 'हरि' शब्द के अपभ्रंश के रूप में इस गाँव का नाम 'नरी' हुआ है।अन्य प्रसंग जिस समय कृष्ण बलराम ब्रज छोड़कर मथुरा के लिए प्रस्थान करने लगे, अक्रूर ने उन दोनों को रथ पर चढ़ाकर बड़ी शीघ्रता से मथुरा की ओर रथ को हाँक दिया। गोपियाँ खड़ी हो गईं और एकटक से रथ की ओर देखने लगीं। किन्तु धीरे-धीरे रथ आँखों से ओझल हो गया। धीरे-धीरे उड़ती हुई धूल भी शान्त हो गई। तब वे "हा हरि! हा हरि!" कहती हुईं पछाड़ खाकर धरती पर गिर पड़ीं। इस लीला की स्मृति की रक्षा के लिए महाराज वज्रनाभ ने वहाँ जो गाँव बसाया, वह गाँव ब्रजमें हरि नाम से प्रसिद्ध हुआ। धीरे-धीरे हरि शब्द का हीअपभ्रंश ही नरी हो गया। नरी गाँव में किशोरी कुण्ड, संकर्षण कुण्ड और श्री बलदेव जी का दर्शन है।

नरी गांव से  ही जुड़ा  हुआ है अवागढ़ राज्य का इतिहास  ----सन् 1196ई0 में जब मुहम्मद गौरी ने बयाना -तिमन् गढ़ के जादौन राजपूत शासक राजा कुँवरपाल  पर आक्रमण किया जिसमें गौरी की जीत हुई और इस क्षेत्र पर मुगलों का अधिकार हो गया ।सन् 1196 से सन् 1327ई0 तक इस क्षेत्र में बड़ी अराजकता रही जिससे  अधिकांस यदुवंशी राजपूत विभिन्न स्थानों पर पलायन कर गये ।राजा कुँवरपाल के एक पुत्र आनंदपाल बयाना से मथुरा के वृन्दावन क्षेत्र में जाकर बस गये ।आनंदपाल के वंसज सुखदेवपाल  नरी गांव के जमींदार थे इनको आनंदपाल की 14वीं पीढ़ी में माना जाता है ।इन्ही सुखदेवपाल के वंशज ठाकुर चतुर्भुज सिंह  जो एक जमींदार थे नरी गांव से  सन् 1704 ई0 के आस पास जलेसर क्षेत्र में जाकर रहने लगे जिनके वंशजों ने बाद में अवागढ़ राज्य की स्थापना की जिसमे बहुप्रसिद्ध राजा बलवंत सिंह हुये जिन्होंने आगरा में एक राजपूत कॉलेज की स्थापना की जो बाद में बलवंत राजपूत कॉलेज और अब राजा बलवंत सिंह कॉलेज के नाम से जाना जाता है ।
जय हिन्द ।जय नरी -सेमरी देवी माँ ।
लेखक -डा0 धीरेन्द्र सिंह जादौन ,गांव -लढोता ,सासनी ,जिला-हाथरस ,उत्तरप्रदेश ।

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