भदानक (बयाना ) के जादौन यदुवंशी राजपूतों की देशभक्ति --


भदानक (बयाना ) के जादौन यदुवंशी राजपूतों की देशभक्ति --
राजस्थान के भदानक प्रदेश के श्रीप्रस्थ दुर्ग जो बाद में विजय -मन्दिर गढ़   (बयाना )के नाम से मशहूर हुआ ।इस बयाना दुर्ग ने विदेशी मुस्लिम आक्रमणों का बहुत वीरता से सामना किया है ।बयाना का नाम भारतवर्ष के इतिहास में बड़ा प्रसिद्ध है ।यह नाम राजस्थान के इतिहास में एक बड़ा निर्णायक युद्ध की स्म्रति के साथ जुड़ा हुआ है ।बयाना के पास के खानवा नामक स्थान पर हुए घोर युद्ध में बाबर की विजय ने मुग़ल साम्राज्य -संस्थापन का पथ प्रशस्त किया था ।बयाना की राजपूतों की हार ने बढ़ती हुई राजपूतों की शक्ति को ऐसा धक्का दिया जिससे आगे चल कर वे कभी नहीं संभल सके ।
   मध्ययुग में बयाना का किला देश में बड़ा प्रसिद्ध रहा है ।उस समय के दुर्गम दुर्गों में इसकी गिनती की जाती थी ।इस दुर्ग का निर्माण यादव वंशीय (जादौन राजपूत)महाराजा विजयपाल ने 1040ई0 में करवाया था ।विजयपाल पहले शासक थे जिन्होंने मथुरा से अपनी राजधानी बयाना में स्थानांतरित की ।गजनी की ओर से होने वाले आक्रमणों से जान और माल की सुरक्षा दिनानुदिन कम होती जा रही थी इस लिए विजयपाल ने मथुरा के मैदान पर बनी अपनी प्राचीन राजधानी छोड़कर पूर्वी राजस्थान की मानी नामक पहाड़ी के शिखर भाग पर बयाना का दुर्ग का निर्माण कर वाया और यहां चले आये । विजयपाल रासो नामक ग्रन्थ में इस राजा के पराक्रम का अच्छा वर्णन है ।इसमे लिखा है कि महाराजा विजयपाल का 1045ई0 में अबूबकशाह कंधारी से घमासान युद्ध हुआ ।"ख्यात"के लेखक भी गजनी के शासक से उसके संघर्ष का उल्लेख करते है ।अंत में बयाना दुर्ग में जौहर करके यादव वीरों ने बिदेशी मुस्लिंम आक्रमणकारियों का बहुत अच्छा सामना किया और मातृभूमि पर मर मिटे ।समकालीन अभिलेखों नें राजा विजयपाल को "परमभट्टारक"कहा गया है ।इस राजा ने 53 वर्षों तक राज्य किया ।महाराजा बिजयपाल ने कई मुस्लिम हमलों का  दिल्ली के तंवर और शाकम्भरी के चौहानों के साथ मिलकर सफलता पूर्वक मुकाबिला किया और देश की रक्षा की थी  पर अन्त में शिव के मंदिर में इसने अपने आप को बलिदान कर दिया।सन् 1093 ई0 के आस पास बयाना पर मुसलमानों का आधिपत्य हो गया था ।
विजयपाल का पुत्र तवनपाल (1093- 1158)इस वंश का शक्तिशाली शासक था ।66वर्ष के दीर्घकालीन शासनकाल में उसने तवनगढ़ का किला (त्रिभुवन गिरी ) जो बयाना से 22 किलोमीटर की दूरी पर है बनवाया और एक योगी के आशीर्वाद से पुनः शक्ति अर्जित करके इसने आगे चलकर मुगलों से बयाना का दुर्ग पुनः छीन लिया ।बयाना पर मुस्लिम हमले का बदला लेने के लिए इसने गजनी के कई घोड़े बल पूर्वक उठा लिए ।इसने नई विजयें अर्जित कर अपने राज्य की शक्ति बढ़ाई।उसने डाँग ,अलवर , भरतपुर , गुणगाव ,धौलपुर , मथुरा ,आगरा तथा ग्वालियर के विशाल क्षेत्र जीतकर अपने राज्य का विस्तार किया ।इस विशाल क्षेत्र पर उसकी सत्ता उसके विरुद्ध  "परम भट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर "से भी सिद्ध होती है lराजा तिमन् पाल के बाद आये अगले 2 शासक धर्मपाल और हरपाल अपना पैतृक अधिकार स्थिर  नही रख सके ।कुछ पारवारिक झगड़ों के कारण और कुछ अपने सामन्तों की बढ़ती शक्ति के फलस्वरूप ।धर्मपाल धोल्डेरा(धौलपुर)के स्थान पर किला बना कर रहने लगा तथा हरपाल बयाना और ताहनगढ़ का शासक हुआ ।धर्मपाल के पुत्र कुंवरपाल ने हरपाल को मार कर ताहनगढ़ और बयाना छीन लिये ।कुंवरपाल ने लगभग सन् 1195ई0 तक राज्य किया ।सन् 1196ई0 में मोहम्मद गौरी ने बयाना और ताहनगढ़ पर चढाई करदी ।घमासान युद्ध हुआजिसमें राजा कुंवरपाल की हार हुई और दोनों किलों पर मोहम्मद गौरी का अधिकार होगया ।कुंवरपाल बहुत समय तक डाँग की पहाड़ियों में मारा मारा फिरता रहा और चम्बल नदी के पार सबलगढ़ के जंगलों में यादव वाटी क्षेत्र बना कर बयाना को पुनः प्राप्त करने का प्रयास करता रहा ।
कुछ समय बाद बहाउदीन तुगरिल की बयाना में मृत्यु हो गयी और इस प्रकार अवसर देख कर फिर यदुवंशियों ने कुंवरपाल के नेतृत्व में 1204 -1211 ई0 के मध्य बयाना का राज्य हस्तगत कर लिया ।इसके बाद पुनः इल्तुतमिश ने बयाना पर आक्रमण किया जिसमें यदुवंशी राजपूतों की पुनः हार हुई और बयाना तथा ताहनगढ़ पर मुगलों का पुनः अधिकार होगया । सन् 1196 से 1327 तक इस क्षेत्र पर अधिकांशतः मुसलमानों का शासन रहा तथा इस यादव राजपूत वंश का तिथिक्रम भी संदिग्ध है ।ऐसा प्रतीत होता है कि इस युग में अराजकता रही और वंश का भाग्य कुछ समय के लिए अस्त होगया ।इसी समय में काफी यदुवंशी राजपूतो ने मुगलों के अत्याचारों   की बजह से धर्म परिवर्तन कर लिया जिनमें अलवर के मेव तथा खान जादा  आते है तथा कुछ धर्म परिवर्तन नीति के कारण अन्य दूरस्थ स्थानों पर माइग्रेट कर गये ।यह समय इस वंश का सबसे संवेदन शील व् गिरावट का समय था ।इसके बाद गोकुलदेव के पुत्र राजा अर्जुनपाल (1327-61)पुनः यदुवंशियों को संगठित करके मंडरायल के शासक मियां मक्खन, जो इस क्षेत्र में बहुत अलोकप्रिय था , को पराजित कर उसने फिर स्वदेश में अपने पैर जमा लिए और सारे भू -भाग पर अधिकार कर लिया ।सन् 1348 में राजा अर्जुनपाल ने कल्याणपुरी नामक नगर बसाया और उसे सुन्दर भवनों , तालाबों , बागों तथा मंदिरों से सूंदर बनाया।यह नगर आगे चल कर "करौली "के नाम से मशहूर हुआ और इसके बाद उनके वंशज "करौली के यादव "कहलाने लगे ।
  राजा अर्जुनपाल के उत्तराधिकारी लगभग साधारण शासक थे ।वे पारवारिक झगड़ों में उलझ गये और इस लिए वे अपनेशत्रुओं का सामना करने के लिए दुर्बल होगये ।राजा पृथ्वीपाल के शासन काल में अफगानों ने ताहनगढ़ पर पंद्रहवीं शताब्दी के प्रथम 25 वर्षों में अधिकार कर लिया ।यद्दपि उसने ग्वालियर के शासक का आक्रमण विफल कर दिया किन्तु वह मीणाओं का दमन नही कर सका जो दुर्जेय बन गये थे ।15वें वंशज महाराज चंद्रपाल एक धर्मपरायण शासक थे ।सन् 1454 ई0में मालवा के शासक महमूद ख़िलजी ने महाराजा चंद्रपाल के राज्य करौली पर चढाई करदी और करौली पर अधिकार कर लिया ।विजयी सुल्तान अपने पुत्र फिद्ववी खाँ को करौली सौंप कर अपनी राजधानी लौट गया ।करौली  से निकाले जाने पर राजा चंद्रपाल जी उंटगढ़ में सन्यासी जीवन व्यतीत करने लगे ।ऐसा प्रतीत होता है कि वह तथा उनके उत्तराधिकारी अपने सुरक्षित स्थान के निकट थोड़े प्रदेश पर अपना अधिकार बनाये रहे ।
इस प्रकार 400 वर्षों तक यदुवंशियों ने विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारियों से लड़ाईयां लड़ी और भारत माता की रक्षा की ।जय हिन्द।जय राजपूताना।।
लेखक -डा0 धीरेन्द्र सिंह जादौन , गांव -लढोता ,सासनी , जिला-हाथरस , उत्तरप्रदेश ।



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