Historical Research of jadaun Rajputs of some areas in Madhypradesh---मध्यप्रदेश के कुछ क्षेत्रों पाये जाने वाले जादौन राजपूतों का ऐतिहासिक शोध --

Historical Research of jadaun Rajputs of  some areas in Madhypradesh---
मध्यप्रदेश के कुछ क्षेत्रों पाये जाने वाले जादौन राजपूतों का ऐतिहासिक शोध --
  मथुरा के महाराजा जायेंद्रपाल जो भगवान् कृष्ण के 87 वीं पीढ़ी में मथुरा के राजा थे।ये मथुरा की गद्दी पर चतुर्थमास की कार्तिक सुदी एकादसी सम्वत 1023 सन् 966 बैठे।इन्होंने गुर्जर प्रतिहारों के पतन के बाद पहली वार बयाना पर अधिकार किया।इनके 11 पुत्र हुये जिनमें विजयपाल ज्येष्ठ पुत्र थे।विजयपाल महाराजा जयेंद्रपाल की मृत्यु के बाद सम्वत 1056 सन् 999 में मथुरा की गद्दी के वारिस हुए। सन् 1018 के लगभग कन्नौज को जीतने के बाद महमूद गजनवी पशिचमोत्तर में बढ़ा जहाँ वह मथुरा लूटने के लिए आरहा था तो राजा विजयपाल यवनों की बजह से अपनी राजधानी सुरक्षित स्थान मानी पहाड़ी पर लेआये।इसी पहाड़ी पर इन्होंने 1043 ई0 में विजयमन्दिरगढ़ नाम के एक विशाल दुर्ग का जीर्णोद्धार करवाया था कहा जाता है की ये दुर्ग वाणासुर ने बनवाया था जिसकी पुत्री उषा थी जिसका विवाह अनिरुद्ध जी के साथ हुआ था।उस समय बयाना श्रीपथ ,पदमपुरी के नाम से जाना जाता था।राजा विजयपाल के 18 पुत्र थे।इन्होंने 53 वर्ष तक राज्य किया।
  जब महाराजा विजयपाल ने सम्वत 1056 में मथुरा से बयाना का पलायन किया था उसी वर्ष किसी भीषण आपातकालीन राजनयिक ,सामाजिक  परिस्थिती से विवश होने के कारण अनेक यदुवंशी  परिवारों को अन्यत्र सुरक्षित क्षेत्रों की खोज में दक्षिण दिशा की ओर पलायन कर गये ।इस तथ्य की पुष्टि शिवपुर गांव ,तहसील शिवनी  मालवा ,जिला हौसंगाबादके यदुवंशी कुल पुरोहित  पंडित किशनलाल जी तिवारी  पुत्र श्री जगदीश प्रसाद तिवारी के पास रखी प्राचीन सनद  (ताम्र पत्र )जो कि यदुवंशियों के पूर्वजों ने पंडित जी के पूर्वज खेमकरण तिवारी को लिखी थी ।ताम्र पत्र को लिखने वाले 28 यदुवंशी राजपूत सरदार थे।ये सभी सरदार उस समय सम्वत 1056 के लगभग  करौली ,बयाना ,मथुरा -ग्वालियर ,दतिया के रास्ते दक्षिण क्षेत्र गोंडवाना की ओर 300 के लगभग बैलगाड़ियों एवं रथों में सवार होकर मध्यप्रदेश और अन्य स्थानों को पलायन कर गये।इनमें से कुछ प्रायः हौसंगाबाद जिले की सिवनी मलवाओर वनपुरा क्षेत्र में पाये जाते है।इलियट जो एक अंग्रेज इतिहासकार है उसकी रिपार्ट के अनुसार जादौन राजपूत मथुरा -बयाना से पलायन करके हौसंगाबाद जिले में आये और जब अकबर ने निर्बुद्धा क्षेत्र पर आक्रमण जो लगभग 14वीं सदी में किया था तो कुछ जादौन राजपूत यहाँ से भी पलायन कर गये।जिस ताम्र पत्र का वर्णन मैने इस लेख में किया है उसकी जानकारी मेनेभाई लखपत सिंह  निवासी वरखेड़ा जागीर (अगरा वरखेड़ा )तहसील समसावाद जिला विदिसा ,श्री राम सिंह  यदुवंशी  ,सेवानिवर्त बी0 डी0 ओ0 सिवनी मालवा तहसील जिला हौसंगाबाद को दी।इन दोनों ने श्री डी0 आर0 यदुवंशी जिला हौसंगाआद। का सहयोग लिया।भाई ड़ी0 आर0 यदुवंशी जी ने अपने अथक प्रयाशों से शिव पुर गाँव का पता करके वहा पहुंचे और उनको वह 1हजार वर्ष पुराना ऐतिहासिक ताम्र पत्र उन पंडित जी के वंशजों पर मिला।जिसकी बड़ी मेहनत से सफाई करके फोटोलिपि तैयार करवाई जिसे उन्होंने मेरे पास भेजा और में इस लेख के माध्यम से आप सब के पास भेज रहा हूँ।ये एक हमको एक बहुत प्राचीन प्रमाण मिला है जिसका पता मुझे कई इतिहासिक प्रमाणो का अध्ययन करके चला।जिसमे उन 28 यदुवंशी जादौन राजपूतों के पलायन का पूर्ण विवरण है जिसकी भाषा का अध्ययन करवाने के लिए कुछ जान कर जगाओं और विद्वनों के पास भेजा है।यह हौसंगाबाद क्षेत्र के जदोनों के लिए बहुत बड़ा अपना प्रमाण है।जहाँ तक मध्य प्रदेश के दूसरे जिले जिमें भिंड ,मुरैना , गुना ,अशोकनगर ,विदिसा ,रायसेन जिलों में पाये जाने वाले जादौन राजपूतों के इतिहास का सवाल है उनका पलायन संभवतः मुग़ल काल में संवत 1200 या इसके बाद में मथुरा से ही है क्यों कि जगाओं  से प्राप्त गोत्रों के आधार उनके गोत्र या कुरी लगभग मथुरा के छाता ,वरसाना ,कोसी आदि क्षेत्र के जादौन राजपूतों से मिलते जुलते है।जिससे उनके पलायन की पुष्टि मथुरा क्षेत्र से ही होती है।
यदुवंशी राजपूतों का पलायन मथुरा ,बयाना और करौली से भी कई चरणों में विभिन्न क्षेत्रो में हुआ है ।इतिहास  में कुछ के प्रमाण तो मिलते है लेकिन इस की वास्तविक जानकारी जगाओं या भाटों के पास ही है जिनकी मदद जादातर इतिहासकारों ने नही ली है।कुछ इतिहासकारों के अनुसार जब सुल्तान मसूद दिव्तीय के सेनापति अबूबक्र शाह ने बयाना पर आक्रमण किया था तो राजा विजयपाल और गजनी के इन यवनों में घमासान युद्ध हुआ और उस युद्ध में राजा विजयपाल मारे गए ।उनकी मृत्यु को इतिहासकार विक्रमी संवत 1173 में हुई बताते है।इस युद्ध के बाद यदुवंशियों ने करौली ,व् बयाना क्षेत्र से पलायन प्रारम्भ कर दिया था।ये लोग पुनः ब्रज क्षेत्र की ओर मथुरा ,आगरा ,फीरोजाबाद ,एटा ,अलीगढ ,बुलहंदशहर ,गाजियाबाद ,इटावा ,कानपुर  मोरादाबाद ,बेनारस ,आजमगढ़ ,बरेली ,शाहजहाँपुर की पलायन कर गए।ये तथ्य कई अंग्रेज इतिहासकारों ने लिखे है।कुछ लोग अलग अलग टोलों में दूसरे अन्य स्थानों पर जाकर बसे।
  एक पलायन सन् 1196 में भी जब मुहमद गौरी ने तिमंङ्गढ़ के राजा कुंवर पल पर आक्रमण किया था उसमें राजा कुंवरपाल की हार हुई और गौरी के सेनापति कुतुबुद्दीन एवक का बयाना और तिमंगढ़ पर अधिकार हो गया था उस समय भी हुआ था।सन् 1196 से सन् 1327 तक इस पुरे क्षेत्र पर मुगलों का शासन रहा जिसमें मिया मक्खन का नाम आता है ।इस अवधि में यवनों ने हिंदुओं पर इस क्षेत्र में काफी धर्म परिवर्तन के लिए दवाव डाले जिसकी बजह से भी काफी यदुवंशी राजपूत इस क्षेत्र से वुभिन्न जगहों पर पलायन कर गये।राजा अर्जुनपाल जी जो राजा कुंवरपाल जी के वंशज थे उन्होंने 1327ई0 में मंडरायल के शासक मिया मक्खन की मार कर  अपने पूर्वजों के सम्पूर्ण क्षेत्र पर पुनः अधिकार किया और सन् 1348 में कल्याणपुरी बसाई जिसे करौली कहते है इसके बाद यहाँ यदुवंशियों में स्थिरता आयी ।धौलपुर के सरमथुरा और झिरी के जादौन तथा सबलगढ़ के जादौन भी करौली से ही मिग्रटेड है जिनका इतिहास भी करौली से सम्बंधित है ।
मुकुटराव जी गोपालदास जी की रानी (आमेर )जयपुर की राजकुमारी के तीन पुत्र दुआरिकादस ,मुकुटराव ,और तरसुम बहादुर थे।मुकुटराव से मुक्तावत शाखा निकली जिनके 2 पुत्र हुये इंद्रपाल और जयपाल इनके वंशज सबलगढ़ ,सरमथुरा और झिरी के जादौन राजपूत है।तरसम बहादुर से बहादुर यादव नांम की शाखा निकली जिनके वंशज बहादुरपुर व् विजयपुर वाले है।इसके बाद भी थोडा बहुत पलायन इन जगहों से भी हुआ है ।ये बिभिन्न ऐतिहासिक लेखों का समावेश किया गया लेख है कोई गलती भी हो सकती है उसके लिए लेखक क्षमाप्रार्थी भी है ।जय हिन्द ।जय यदुवंश ।जय श्री कृष्णा
लेखक -डा0 धीरेन्द्र सिंह जादौन ,गांव -लरहोता ,सासनी ,जिला -हाथरस ,उत्तरप्रदेश।

Comments

  1. मैं भी जादौन और मेरी शाखा मुक्तावत है मेरे यहां पर अंधियारी सिंजरौली हरपुरा चिरूली बड़ोखरी आदि ग्रामों में बसे हुए हैं

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