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Showing posts from January, 2021

मैसूर राज्य के चन्द्र वंशीय वडियार (पौराणिक यादव /यदुवंशी ) राजपूतों के राजवंश के इतिहास-

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  मैसूर राज्य के चंद्रवंशीय  वडियार ( पौराणिक यादव /यदुवंशी )राजपूतों के राजवंश का इतिहास - दक्षिण भारत में मैसूर एक बड़ा शक्तिपूर्ण एवं प्रभावशाली राज्य था।भारत के देशी राज्यों में ये बड़ोदा से भी अधिक उन्नतिशील राज्य माना जाता था ।क्षेत्र एवं आमदनी में हैदरावाद निजाम रियासत से दूसरे दर्जे पर थी। ग्यारहवीं शताब्दी में चोल राजवंश के राजा ने मैसूर को अपने अधिकार में कर लिया ।परन्तु 12 वीं शताब्दी में होयसाल शाखा के यदुवंशियों ने चोलवंशी राजाओं को भगा दिया और द्वार समुद्र (दौर समुद्र ) को अपनी राजधानी बनाया।दौर समुद्र को इस समय "हलेवीड "कहते है और वह मैसूर राज्य के हसन जिले में वेलूर से 10 मील पूर्व में है।14 वीं शताब्दी में होयशल राज्य का भी अंत हो गया और मैसूर का सम्बंध विजयनगर साम्राज्य के यादव क्षत्रियों से हुआ ।उसी शताब्दी के अंत में वर्तमान राजवंश को मैसूर मिला ,पर वह विजयनगर साम्राज्य का आधीन राज्य रहा ।संवत 1621में फाल्गुन बदी 9 गुरुवार (ई0 सन 1565 ता0 25 जनवरी )को विजयनगर साम्राज्य का पतन हुआ और मैसूर एक स्वतन्त्र राज्य बन गया । मैसूर के वर्तमान यादव राजपूत राजवंश क

अलीगढ़ (उत्तरप्रदेश ) में जादों राजपूतों के गांव--

  अलीगढ (उत्तरप्रदेश ) जिले में जादौ राजपूतों के गांव           1-धनीपुर ब्लाक --- 1 महमूदपुर ,2 अल्हलादपुर ,3 धनीपुर ,4 गड़ियावली,5 जोरावर नगर ,6 भूडा किशनगडी ,7 बोरना ,8 कमालपुर ,9 बलीपुर ,10 बोनर ,11 भोजपुर ,12 उकावली, 13 चाँद गड़ी ,14 जमालपुर, 15 नगला दिलीप ,16 पनैठी ,17 एकरी, 18 खान गड़ी ,19 सिहोर ,20 फरीदपुर ,21 बलूखेड़ा ,22 जसरथपुर ,23 ऐदलपुर ,24 शेखा ,25 दुमहैरा ,26 खरई ,27 खितकारी , 28 भतौला ,29 शेखूपुर ,30 बहरामपुर ,31 जलाली ,32 नगला भूड़ , 33 बहादुर गड़ी ,34 शाहपुर, 35  मई का नगला 36 खेड़ा खितकारी ,37 ड संन्ना,38 कलाई ,39 खेड़ा बुर्ज ,40 नरौली ,41 दाउदपुर,42 मीरपुर,43 भूतपुरा,44 गिरधरपुर ,45 खेड़ा खुर्द,46 रहसुपुर,47 नगला ठेकेदार,48 नगला खेम ,49 बरानदी,50 भूडासी ,51 छिड़ावली ,52 खान आलमपुर,53 इतावली,54 सिल्ला विसावनपुर ,55 गढ़िया ,56 मई,57 चगेली ,58 निधौला ,59 समस्त पुर,60 माछुआ ,61 सिकंदरपुर,62 गजनीपुर ,63 बरकातपुर,64 रुस्तमपुर,65 कौछोड़,66 मूसेपुर जलाल,67 केशोपुर गड़राना,68 उजिर्रा ,69 भरतु आ, 70 भोपतपुर ,71 सिखरना,72 पालीरजापुर ,73 नगला तेजा ,74 गोकुलपुर ,75 नगला पतेल,76 शाहवाजपुर ,7

Puranic History of Lunar race Yadu dynasty from Shri Krishna &Balarama up to 6th Century A.D.of Mathura Rajay (shurasena desha) ---

Puranic History of Lunar race Yadu dynasty from Shri Krishna and Balrama up to 6th Century  of Mathura Rajay (Brajmandal ) ----- Puranic /Ancient Yadus /Yadavas /Yaduvansis /Jadus /Jadavas /Jaduvansis of Lunar race clan of  Kshatriyas are presently , the modern Jadons , Bhatis , Chudasamas , Jadejas , Sarviyas , Raijadas ,Chhonkars , Banafars , Porchas , Jadhavas, Wadiyars  etc ( 1,2,3,4,). In the ancient times the whole of the country lying between the Arabali.hills of Alwar and the river Jumna was divided between Matsya on the west and Surasena on the east border.Kaman ,Mathura ,and Bayana were all comes  in Surasena Janpada.The Surasenas were Jadavas ,or Jadovanshi to which race belonged both Krishna and antagonist Kansa ,the king of Mathura. The Surasenas had a sepatate dialect ,known in ancient times as the Suraseni ,just as their descendants ,the present people of Braj ,have their own diatect of Braj Bhasha ,At the time of Alexander's invasion the Surasenas worshipped a G

Ancient History of Yaduvansis Lunar race Kshatriyas /Rajput of Mathura---

  Ancient History of Yaduvansis Lunar race Kshatriyas /Rajput of Mathura-- - According to the historical research of Vedas ,Puranas ,Indian Gazetteers and authorized indian historical books written by reputated historians, " Real ancient /puranik yaduvansis or Yadavas include the descendants of Yadu  (who was  the elder son of Lunar race Samrat Yayati)  are  the modern Kshatriya's like Jadons ,Bhatis Jadeja,Chudasamajas ,Jadhavas of Devagiri ,Wadiyars of Mysore and their sub-branches." Mathura -rajya in Ancient Period --- T he proximity of the district to Bharatpur in the north-east ,to Alwar in the north and to Jaipur in the north-west lends the area the antiquity of the epic age.The region might have been included in the Matsya kingdom in the north-west and Surasenas in the north - east.It might have formed part of one or the other or both.Ray Chaudhary (1)points out that Matsya lay to the south of Kurus of Delhi and to the west of Surasenas of Mathura ;southward it a

जैसलमेर के यदुवंशी भाटी राजपूतों के शौर्य एवं वीरता का ऐतिहासिक अध्ययन---जैसलमेर के भाटी राजपूत चन्द्रवंशी यादव एवं भगवान श्री कृष्ण के वंशज है।कहते है कि द्वारिका में अपनी राजसत्ता के छिन्न-भिन्न होने के बाद यादव सिंधु ,पंजाब एवं सीमाप्रान्त में आ बसे थे।जनश्रुतियों के अनुसार स्यालकोट के यादव शासक देवराज भाटी के उत्तराधिकारी मंगलराव ने गजनवियों के स्टालकोट पर आक्रमण करने पर थार के रेगिस्तान में अपना डेरा जमाया ।उसके लड़के केहर ने लूटपाट और उत्पात मचाकर उक्त क्षेत्र के एक बड़े इलाके में अपना नियंत्रण स्थापित किया ।उसने अपने लड़के तन्नू जी के नाम से तन्नौट बसाया और उसे अपनी राजधानी बनाया।केहर के बाद तन्नू जी ने 80 वर्ष राज्य किया औऱ वाराहों और लंघाओं को हराकर अपने राज्य का विस्तार किया।तन्नु जी की मृत्यु उसके उत्तराधिकारी विजयराज से वाराहों एवं लंघाओं ने हार का बदला लिया।विजयराज औऱ उसके परिवार को मौत के घाट उतार दिया गया ।इस परिवार में केवल विजराज का एक छोटा पुत्र देवराज (दूसरा ) बचा जिसे परिवार की महिलाओं ने सुरक्षित स्थान पर भेज दिया था ।जब वह बड़ा हुआ तो उसने शक्ति का संचय किया ।उसने वाराहों को हराया औऱ लोधा क्षत्रियों से लोद्रवा छीन कर उसे अपनी राजधानी बनाया ।बाउवा के 837ई0 के शिलालेख से प्रकट है कि उसे सन 757ई0 में मण्डोर के प्रतिहारों ने हराया था ।उसे चन्ना क्षत्रियों ने मार डाला।उसने महारावल की पदवी धारण कर ली थी। जैसलमेर के भाटी वंश में विजयराज दितीय नामक राजा हुआ जिसने अरबों के आक्रमणों को रोका ।उसे पड़ोसी शासकों ने "उत्तर भड़ किवाड़ भाटी " (उत्तरी सीमा के प्रहरी ) के नाम से विख्यात किया ।इसका जिक्र 12 वीं शताब्दी के कई शिलालेखों में आता है ।इस वंश के जैसलदेव ने सन 1155ई0 में जैसलमेर बसाया और उसे लोद्रवा के स्थान पर अपनी राजधानी बनाया।उसने पूंगल , चोहटन ,औऱ राहड़ी-शक्कर को अपने राज्य में मिलाया। दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने सन 1304 ई0 में जैसलमेर को घेर लिया ।खिलजी की सेना का घेरा लगभग 12 वर्ष रहा।तत्कालीन शासक रावल जैत सिंह घेरे के दौरान सन 1311ई0 में मारे गए।उनका उत्तराधिकारी मूलराज बने ।उन्होंने भी खिलजियों के विरुद्ध लड़ाई जारी रखी ।परन्तु 12 वर्ष बाद रसद आदि की कठिनाइयों से परेशान होकर उन्होंने " शाका" किया ।इस शाके में मूलराज सहित 700 राजपूत योद्धा खेत रहे थे ।दुर्ग की सैकड़ों वीरांगनाओं ने जौहर किया ।दुर्ग पर खिलजियों का दखल हो गया ।लेकिन रेगिस्तान की कठिनाइयों से घबराकर खिलजी सेना किले से पलायन कर गई। कुछ वर्ष बाद भाटी वंश के घड़सी ने दुर्ग पर अधिकार कर लिया ।इस प्रकार जैसलमेर पर पुनः भाटी जादों वंश का शासन स्थापित हो गया।घड़सी ने घड़सीसर तालाब का निर्माण कराया।घड़सी की मृत्यु के बाद जैसलमेर अंधकार के युग में प्रवेश कर गया। लगभग 200 वर्ष बाद महारावल लूकरण के समय में जैसलमेर पुनः प्रकाश में आया।सन 1540ई0 में मुगल बादशाह हुमायूँ ने लूकरण से शेरशाह के विरुद्ध सहायता मांगी। परन्तु लूकरण ने उसे सहायता देने से इनकार कर दिया ।हुमायूँ सिन्ध चला गया ।सन 1550 ई0 में अमीर अली खां कंधार की गद्दी से च्युत कर दिया गया ।लूकरण ने उसे अपने यहां शरण दी। परन्तु खां ने किले पर अधिकार करने का प्रयत्न किया ।इस पर लूकरण ने उसे और उसके सहायकों को मौत के घाट उतार दिया ।परन्तु साथ ही लूकरण और उसके 400 सैनिक भी खेत रहे।लूकरण समाज सुधारक थे।उन्होंने उन हजारों भाटी क्षत्रियों को पुनः हिन्दू बनाया जो कुछ वर्षो पूर्व मुगलों के दबाव में मुसलमान बन गए थे ।सन 1570ई0 में उसके उत्तराधिकारी हरराज ने मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली थी।हरराज ने अमरकोट के सोढ़ों को हराया था। सन 1659ई0 में भाटी शासक महारावल अमरसिंह ने औरंगजेब से पोकरण ,फलोदी ,औऱ मालानी के परगनों की सनद प्राप्त कर ली ।उसने बीकानेर से पूंगल छीन लिया ।वह " अमरकास "नाला बना कर सिन्धु नदी का पानी अपने राज्य में लाया।उसने राज्य में अमरशाही बाट चलाये ।उनकी सन 1701 ई0 में मृत्यु हो गयी।उसके लड़के महारावल जसवन्तसिंह ने अपने शासनकाल में अपने पिता के समय प्राप्त परगने हाथ से निकाल दिए।यही नहीं उसके राज्यकाल में सतलज के निकट जैसलमेर की भूमि भी शिकारपुर के दाऊद खां ने दबा ली । सन 1761ई0 में भाटी मूलराज जैसलमेर की गद्दी पर बैठे ।उनका 58 वर्ष लम्बा शासनकाल भाटी वंश का अन्धकारमय युग रहा ।वह अपने दिवान सरूपसिंह टावरी (महेश्वरी ) के हाथों कठपुतली था।टावरी ने राज्य में लूटमार करने वाले जागीरदारों को सख्ती से दबाया ।फलस्वरूप जागीरदार उसके विरुद्ध हो गए।उन्होंने मूलराज के लड़के रायसिंह को टावरी के विरुद्ध भड़काया ।रायसिंह ने खुले दरबार में टावरी को मौत के घाट उतार दिया और महारावल को बंदी बना लिया ।एक भाटी जागीरदार जोरावर सिंह ने महारावल को मुक्त कराया।महारावल ने स्वतंत्र होते ही अपने लड़के रायसिह को देश निकाला दे दिया और सरूपसिंह के लड़के सालमसिंह को अपना दीवान नियुक्त किया । रायसिंह 2 माह बाद पुनः जैसलमेर आ गया ।पर महारावल ने उसको परिवार सहित जेल में बन्द कर दिया।कुछ समय बाद सालमसिंह ने रायसिंह को सपरिवार मौत के घाट उतार दिया और अपने पिता का बदला लिया।अब सालमसिंह सर्वेसर्वा हो गया ।उसने अपने विरोधी जागीरदारों और राजपरिवार के कुछ सदस्यों को मरवा डाला ।राज्य में आतंक जैसा माहौल छा गया कि राज्य में शांति व व्यवस्था बनाये रखने के लिए जिम्मेदार जागीरदार ,रियासत छोड़कर पड़ौसी राज्यों में चले गए।राज्य में शांति एवं व्यवस्था भंग हो गयी ।चारों ओर लुटेरों के झुंड लूटमार करने लगे।सन 1818 ई0 में जैसलमेर ने ईस्ट इंडिया कम्पनी की अधीनता स्वीकार कर ली।स्मरण रहे उस समय मरहठे सम्पूर्ण राजस्थान को तबाह कर चुके थे , परन्तु उन्होंने जैसलमेर की पावन भूमि में अपने पैर नहीं रखे ।वहां उन्हें कुछ प्राप्त होने की उम्मीद नहीं थी । भाटियों केअन्य राज्य एवं राजवंश-- 1-सिरमौर-नाहन , 2-कपूरथला ,3-पटियाला, 4-नाभा ,जींद राजा शालिवाहन प्रथम सन 194-227 ई0 गजनी के राजा गज के पुत्र थे।शालिवाहन के पुत्रोंने हिमालय में बद्रीनाथ तक राज्य स्थापित किये।कालान्तर में नाहन के राजा बच्छराज "मारकर " के पुत्र नहीं हुआ और राज्य का उत्तराधिकारी बनने योग्य कोई यदुवंशी नहीं रहा ।नाहन के राजा का विरुद "मारकर " था ।तब वहां के सामन्त मण्डल ने जैसलमेर के रावल शालिवाहन (दूसरे ) (सन 1168-1190ई0 ) के पास राजदूत भेजे और उन्हें भाटी राजपुत्र देने का आग्रह किया,जिसे गोद लिया जा सके।रावल शालिवाहन ने अपने तीसरे पुत्र हंसराज के पुत्र कुमार मनरूप को योग्य समझ कर कुटुम्ब सहित दत्तक पुत्र बनने के लिये भेजा और मार्ग केलिए सुविधा एवं सुरक्षा के प्रबन्ध किये ।दुर्भाग्यवस कुमार मनरूप की रास्ते के पहाड़ी जंगल में मृत्यु हो गई ।उनकी युवरानी गर्भवती थी ।जंगल में ही पलास के पेड़ के नीचे उनका प्रसव हुआ।पुत्र पैदा हुआ ।क्यों कि यह पलास के पेड़ के नीचे पैदा हुए थे इसलिए पुत्र का नाम पलास रखा गया।यही कुमार बड़े होकर नाहन और सिरमौर राज्य के शासक बने।इनके वंशज "पलासिया भाटी " कहलाये।जयपुर के महाराजा भवानी सिंह की पत्नी महारानी पद्यमिनी इसी राजवंश की पलानिया यदुवंशी भाटी राजपूत है। रावल शालिवाहन के चौथे पुत्र मोकलजी के पुत्र चन्द्र , जो कुमार मनरूप के साथ जैसलमेर से रवाना हुए थे , मार्ग में ही रह गए थे ।जिन्होंने कपूरथला का राजवंश और राज्यस्थापित किया ।इनकी शाखा से नाभा, जींद , पटियाला राज्य औऱ इसका राज्यवंश स्थापित हुआ ।सिख होते हुए भी कपूरथला औऱ पटियाला के राजवंश के लोग यदुवंशी भाटी है ।हमें इन पर गर्व है ।इन राज्यों के शासक समय -समय पर अपने पूर्वजों की धरती जैसलमेर आया -जाय करते थे ।जैसलमेर महारावल।को श्रद्धा और निष्ठा से अपने वंश के वरिष्ठतम शासक का सम्मान देते थे । इसकेअलावा गिरनार ,करौली ,कच्छ ,नवानगर ,देवगिरि (दौलताबाद ) , मैसूर (विजयनगर ) के शासक यदुवंशी है ।ये राज्य लाहौर से ही अलग -अलग राज्य स्थापित होने आरम्भ हो गए थे ।बदलते -बदलते अभी भी यह वंश "यदुवंशी "ही है। संदर्भ- 1-जैसलमेर राज्य का इतिहास। -लेखक माँगी लाल मयंक। 2-पूगल का इतिहास -लेखक हरिसिंह भाटी 3-राजपूताने का इतिहास -लेखक जगदीश सिंह गहलौत । 4-राजपूताने का इतिहास -राजपूत राज्यों का उद्भव एवं अधिपतन । 5-जैसलमेर का इतिहास -टॉड कर्नल। 6-गजनी से जैसलमेर -लेखक हरिसिंह भाटी 7-जैसलमेर का इतिहास -लेखक पण्डित हरिद्दत गोविंद व्यास।8-जैसलमेर दिग्दर्शन -लेखक दीनदयाल ओझा ।9-तवारिख जैसलमेर -लेखक लक्ष्मी चन्द ।10-जैसलमेर री ख्यात -संपादक डा0 नारायण सिंह भाटी।11-बांकीदास की ख्यात ।12-मुंहता नैनसी ख्यात भाग I, II,III.13-युग कालीन वल्लप्रदेश , जैसलमेर -लेखक नंदकिशोर शर्मा ।14-हिस्ट्री आफ जैसलमेर -लेखक सोमानी।15-भारतीय संस्कृति और उसका इतिहास -लेखक सत्यकेतु विद्यालंकार।लेखक-डॉ0 धीरेन्द्रसिंह जादौनगांव-लढोता ,सासनी जनपद-हाथरस ,उत्तरप्रदेश।एसोसिएट प्रोफेसर ,कृषि मृदा विज्ञान शहीद कैप्टन रिपुदमन सिंह राजकीय महाविद्यालय ,सवाईमाधोपुर ,राजस्थान ,322001

शूरसेन प्रदेश के प्राचीन यदुवंशी जादों राजपूतों (पौराणिक यादव ) के राज्य करौली का ऐतिहासिक अध्ययन--

शूरसेन प्रदेश के  प्राचीन यदुवंशी जादों राजपूतों (पौराणिक यादव ) के   राज्य करौली का ऐतिहासिक अध्ययन---- राजस्थान के पूर्वी भाग में स्थित करौली एक छोटी सी प्राचीन रियासत थी।करौली का राजवंश यादव-वंशी राजपूतों में से है जो चन्द्र वंश की एक शाखा है ।जैसलमेर की भांति करौली के यादव (आधुनिक जादों राजपूत ) भी यदुकुल शिरोमणि भगवान श्री कृष्ण के  वंशज है ।करौली का जादों राजवंशअपने को पौराणिक यादव वंशी तथा मथुरा की शूरसैनी शाखा से निकला हुआ मानता है।यदुवंशियों का राज्य  जो पहले प्रयाग में था , वह श्री कृष्ण के समय में ब्रज प्रदेश (मथुरा  ) में रहा।यदुकुल में श्री कृष्ण के दादा  महाराज शूरसेन के वंशज ही शूरसैनी शाखा के यादव कहलाये तथा इस यदुवंश में पैदा हुए कीर्तवीर्य अर्जुन के पुत्र शूरसेन के नाम पर मथुरा और उसके आस -पास के प्रदेश का नाम शूरसेन प्रदेश पड़ा जो श्री कृष्ण के दादा शूरसेन से कई पीढ़ी पहले हुए थे ।कुछ इतिहासकार इस प्रदेश का नाम  श्री कृष्ण के दादा शूरसेन के नाम पर पड़ा बताते है जो सत्य प्रतीत नहीं होता  है ।श्रीकृष्ण जी पहले ब्रजभूमि में राजकरते थे । श्री कृष्ण ने मगध के राजा जरासंध के

ब्रज की शूरसैनी शाखा के यदुवंशियों के प्राचीन जादोंकुल करौली राजवंश का ऐतिहासिक अवलोकन--

ब्रज की शूरसैनी शाखा के यदुवंशियों के प्राचीन जादों राजवंश करौली का ऐतिहासिक अवलोकन--- करौली का जादों राजवंश अपने को पौराणिक यादववंशी तथा मथुरा की शूरसैनी शाखा से निकला हुआ मानता है ।आधुनिक करौली का कुछ क्षेत्र मत्स्य प्रदेश तथा कुछ हिस्सा शूरसेन राज्य में था ।शूरसेन राज्य की राजधानी मथुरा नगरी थी। यदुवंशियों का राज्य  जो पहले प्रयाग में था , वह श्री कृष्ण के समय में ब्रज प्रदेश (मथुरा  ) में रहा।यदुकुल में श्री कृष्ण के दादा  महाराज शूरसेन के वंशज ही शूरसैनी शाखा के यादव कहलाये तथा इस यदुवंश में पैदा हुए कीर्तवीर्य अर्जुन के पुत्र शूरसेन के नाम पर मथुरा और उसके आस -पास के प्रदेश का नाम शूरसेन प्रदेश पड़ा जो श्री कृष्ण के दादा शूरसेन से कई पीढ़ी पहले हुए थे ।कुछ इतिहासकार इस प्रदेश का नाम  श्री कृष्ण के दादा शूरसेन के नाम पर पड़ा बताते है जो सत्य प्रतीत नहीं होता  है ।श्रीकृष्ण जी पहले ब्रजभूमि में राजकरते थे । श्री कृष्ण ने मगध के राजा जरासंध के अधिक विरोध  एवं आक्रमणों के कारण यादवों की राजधानी मथुरा के स्थान पर द्वारिका बना ली ।पर बाद में श्री कृष्ण की कूटनीति द्वारा जरासन्ध को भीमसेन

तिमनगढ़ के चंद्रवंशी जादों (पौराणिक यादव ) राजा तिमनपाल की संतति एवं राज्य विस्तार का इतिहास--

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तिमनगढ़ के जादों  (पौराणिक यादव )राजपूत   राजा तिमनपाल की संतति एवं  राज्य -विस्तार का इतिहास --- जैसलमेर के भाटियों की भांति बयाना और तिमनगढ़ के क्षत्रिय सरदार चन्द्रवँशी  यादव राजपूत थे। करौली राजवंश के मूल पुरुष महाराजा विजयपाल मथुरा के पौराणिक यादव राजवंश से थे । दूसरे शब्दों में हम कह सकते है कि करौली का यह जादों राजवंश विजयपाल से आरम्भ हुआ ।वह अपनी राजधानी मथुरा से हटा कर पूर्वी राजस्थान के पहाड़ी क्षेत्र में  पास की मानी पहाड़ी पर ले गए और वहां एक किला "विजयमन्दिरगढ़ " (ई0 सन 1040 में ) बनवाकर अपनी राजधानी स्थापित की ।यही किला कालान्तर में बयाना के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।ख्यात के लेखक गजनी के शासक से उसके संघर्ष का उल्लेख करते  है। समकालीन अभिलेखों में उन्हें "परमभट्टारक " कहा गया है जो इस वंश में उनका राजनैतिक महत्व निर्धारित करता है ।संभव है वह 1093 ई0 तक जीवित रहे ।महाराजा विजयपाल को श्री कृष्ण की 88 वीं पीढ़ी में होना बतलाया जाता है । महाराजा तिमनपाल (तिहुनपाल ,त्रिभुवनपाल , ताहनपाल ) --- महाराजा विजयपाल की मृत्यु के बाद उनका ज्येष्ठ पुत्र तिमनपाल

ब्रज जनपद (मथुरा ) के चन्द्र वंशी यादव (आधुनिक जादों ) कुलीन क्षत्रियों(राजपूतों ) का इतिहास --

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ब्रज जनपद के चन्द्र वंशी यादव (आधुनिक जादों ) कुलीन क्षत्रियों  (राजपूत ) का इतिहास - -- महाभारत युद्ध के लगभग 30 वर्ष पश्चात गुजरात के प्रभास क्षेत्र (द्वारिका -जामनगर -बेराबल ) में मथुरा एवं द्वारिका के यादव क्षत्रिय शक्तिक्षीण होकर इधर-उधर जा बसे तथा विभिन्न उपशाखाओं में विभक्त हो गए ।इनकी एक मूल शाखा उड़ीसा (उत्कल ) में भी जा बसी । मुस्लिम धर्म के प्रसार व प्रचार के समय भारत की पश्चिमोत्तर सीमाओं पर यादव कुलीन क्षत्रिय परिवार आबाद थे और इन राज परिवारों ने मुगल साम्राज्यवादियों की प्रगति को दीर्घकाल तक रोकने में सफलता प्राप्त की ।अंत में यदुवंशी भाटी राजपूतों ने सिंध अथवा पंजाब प्रांत को छोड़कर राजपूताना में स्थापित हो गए और कुछ जडेजा यदुवंशी राजपूतों ने मुस्लिम धर्म स्वीकार कर लिया तथा जिन्होंने नहीं किया वे कच्छ एवं अन्य प्रांतों की ओर जाकर स्थापित हो गए ।इस सीमान्त संघर्ष में यदुवंशियों का विशुद्ध रक्त , उनके मौलिक अधिकार , रक्त की पवित्रता , हिन्दू संस्कृति की भावना विद्यमान थी और आज भी यह कुल आबाद है जो विभिन्न उप शाखाओं जैसे जादों (जादौन ,छोंकर ,पोर्च ,वांगर , टा