मैसूर राज्य के चन्द्र वंशीय वडियार (पौराणिक यादव /यदुवंशी ) राजपूतों के राजवंश के इतिहास-

 मैसूर राज्य के चंद्रवंशीय  वडियार ( पौराणिक यादव /यदुवंशी )राजपूतों के राजवंश का इतिहास -

दक्षिण भारत में मैसूर एक बड़ा शक्तिपूर्ण एवं प्रभावशाली राज्य था।भारत के देशी राज्यों में ये बड़ोदा से भी अधिक उन्नतिशील राज्य माना जाता था ।क्षेत्र एवं आमदनी में हैदरावाद निजाम रियासत से दूसरे दर्जे पर थी।
ग्यारहवीं शताब्दी में चोल राजवंश के राजा ने मैसूर को अपने अधिकार में कर लिया ।परन्तु 12 वीं शताब्दी में होयसाल शाखा के यदुवंशियों ने चोलवंशी राजाओं को भगा दिया और द्वार समुद्र (दौर समुद्र ) को अपनी राजधानी बनाया।दौर समुद्र को इस समय "हलेवीड "कहते है और वह मैसूर राज्य के हसन जिले में वेलूर से 10 मील पूर्व में है।14 वीं शताब्दी में होयशल राज्य का भी अंत हो गया और मैसूर का सम्बंध विजयनगर साम्राज्य के यादव क्षत्रियों से हुआ ।उसी शताब्दी के अंत में वर्तमान राजवंश को मैसूर मिला ,पर वह विजयनगर साम्राज्य का आधीन राज्य रहा ।संवत 1621में फाल्गुन बदी 9 गुरुवार (ई0 सन 1565 ता0 25 जनवरी )को विजयनगर साम्राज्य का पतन हुआ और मैसूर एक स्वतन्त्र राज्य बन गया ।
मैसूर के वर्तमान यादव राजपूत राजवंश के मूल पुरुष के विषय में कहा जाता है कि विक्रमी स0 1456 (ई0 सन 1399) में यादव विजयराज और कृष्णराज नाम के दो वीरों ने द्वारिका (काठियावाड़) से चल कर दक्षिण भारत में अपना राज्य स्थापित किया ।वे आरम्भ में वर्तमान मैसूर नगर के पास स्थित हादीनाड़ स्थान पर बसे।जब उन्होंने सुना कि स्थानिक राजा मतिभ्रम होने के कारण गद्दी छोड़कर कहीं चला गया है और पास ही के एक कारुगली स्थान का छोटा सरदार राज्य को हड़पना और उस राजा की पुत्री से विवाह करना चाहता है ।तब इन दोनों भाइयों (विजयराज एवं कृष्णराज यदुवंशियो) ने अपने साथियों सहित पहुंचकर उस कन्या को बचाया और कारूगाली के सरदार को भोज में मार डाला ।उस राजकुमारी ने प्रसन्न होकर विजराज यदुवंशी के साथ अपना विवाह किया।तब से विजयराज को ओड़ियार या वडियार की उपाधि मिली।बडियार कनाडी भाषा में एक सम्मान सूचक शब्द है और इसके मायने हैं " मालिक " ।विजयराज यादव बडियार ने इसके बाद हादीनाद और कारुगाली की भूमि पर कब्जा किया ।विजयराज के वंशज मैसूर राज्य की वंशावली इस प्रकार है :--
विजयराज (उर्फ यदुराय )--विक्रमी संवत 1456-1480, 2-हीर बताड़ चामराज वडियार (प्रथम )वि0स01480-1515, 3-तिमराज वडियार प्रथम --1515-1535 वि0 स0 , 4-हीर चामराज वडियार दुतीय--वि0 संवत 1535-1570 ,5-बत्ताड चामराज वडियार तृतीय -विक्रम संवत 1570-1609 ,6-तीमराज वडियार दुतीय (अप्पान्न )--1609-1628 ,7-बोल चामराज वडियार चतुर्थ --1628- 1633 , 8- बेत्ताड चामराज वडियार पंचम --1633-1635 , 9-राज वडियार प्रथम --1635-1674 ,10-चामराज वडियार (छड़े )--1674-1694, 11-इमडीराज वडियार दुतीय -1694-1695, 12-रणधीर कन्थीरव नरसराज वडियार -1695-1716, 13-दोडादेवराज वडियार 1716-1729 ,14-चीकदेवराज वडियार 1729-1761 ,15-कान्तिरव वडियार 1761-1771, 16-दोडाकृष्णराज वडियार प्रथम --1771-1788, 17-चामराज वडियार सातवें -1788-1791 ,18-कृष्णराज वडियार दुतीय -1791-1823 ,19-नंजराज वडियार 1823-1827, 20-वेतड चामराज वडियार (आठवाँ) -1827-1833 ,21-खास चामराज वडियार (नवाँ) -1833-1853 ,22-कृष्णराज वडियार तृतीय -1857- 1924 ,23- चाम राजेन्द्र वडियार( दसवां) -1924-1951 ,24-कृष्णराज वडियार चतुर्थ -1951
संवत 1823 (ई0सन 1766) में महाराजा नंजराज वडियार के समय में हैदरअलीखां नाम का सेनापति राज्य का कर्ताधर्ता बन गया ।नंजराज की गला घोंट कर संवत 1827 (ई0 सन 1770) में मार डाला गया और उसके स्थान पर उसका भाई चामराज वाडियार (आठवाँ) राजा हुआ और गद्दी नशीन हुआ।परन्तु वह निःसंतान संवत 1832  (ई0 सन 1775) में मर गया ।इस पर कारूँगाली का एक कुटुम्बी सरदार चामराज (नवाँ ) को हैदर अली ने गद्दी पर बैठाया ।वह भी संवत 1853 (ई0 सन 1776) में मर गया ।इस पर हैदरअली के पुत्र टीपू ने दूसरा उत्तराधिकारी नहीं नियुक्त किया ।इस प्रकार ई0 सन 1761से अपनी मृत्यु ई0 सन 1782 तक हैदरअली तथा उसके बाद टीपू सुल्तान अपनी मृत्यु ई0 सन 1799 तक मैसूर राज्य के सर्वस्व रहे ।
टीपू सुल्तान के मारे जाने पर जब अंग्रेज सरकार का अधिकार मैसूर पर हुआ तब सरकार ने पुराने राजवंश के चांमराज के पुत्र कृष्णराज तृतीय को मैसूर की गद्दी पर आसीन किया।परन्तु राज्य के कुप्रबंध के कारण सरकार ने ई0 1831 ,संवत 1888 में इसे राज गद्दी से विमुक्त कर दिया और राज्य -प्रबन्ध अपने हाथों में ले लिया औऱ उससे कुछ शर्तों के साथ नया अहदनामा भी लिखवाया ।सं 01924 (ई0सन 1831) में उनकी मृत्यु होने पर चाम राजेन्द्र( दसवें ) जो बेत्ताडाकोत घराने के कृष्ण अरसु का तीसरा पुत्र था उसके गोद को मंजूर कर गद्दी पर बैठाया गया। परन्तु संवत 1938 (ई0 सन 1881) तक रीजेंसी (नाबालिगी ) रही ।संवत 1951 (ई0सन 1894) में चाम राजेन्द्र का देहान्त हो गया ।उनके बड़े पुत्र कृष्णराज चतुर्थ गद्दी पर बैठे ।इनका पूरा नाम "कर्नल हिजहाईनेस महाराजा सर कृष्णराज वडियार बहादुर  जी0 सी0 एस0 आई0 ; जी0 बी0 ई0 " है ।इनका जन्म 4जून 1884 को हुआ ।ई0 सन 1895 ,1 फरवरी को आप मैसूर की राजगद्दी पर विराजे और 18 वर्ष की आयु होने पर 8 अगस्त सन 1902 को इनको शासन के पूर्ण अधिकार मिले । ई0सन 1900 के जून माह में काठियावाड़ के वणा ठिकाने के राना बने सिंह जी झाला की ज्येष्ठ पुत्री प्रतापकुमारी बाई (लक्ष्मीअम्मनी ) के साथ इनका विवाह हुआ ।आप एक सुशिक्षित और प्रजाप्रिय नरेश रहे ।इसी से मैसूर का शासन आदर्श और दिव्य हो गया है ।वह उस समय यूरोप के किसी सभ्य देश के शासन से टक्कर ले सकता था। मैसूर तत्कालीन भारतीय नरेशों के लिए आदर्श रूप था ।महाराज साहब के छोटे भाई हिजहाईनेस सर कांतिराव नरसिंहराज वडियार जी0 सी0 आई0 ई0 थे ।युद्ध सेवाओं के उपलक्ष में भारत सरकार से ई0 सन 1918 की 1 जनवरी को "हिजहाईनेस " की उपाधि व्यक्तिगत मिली थी ।इनके ज्येष्ठ पुत्र श्री जय चामराज वडियार का जन्म 18जुलाई 1919 को हुआ ।इनका विवाह हिजहाईनेस  चरखारी (बुन्देलखण्ड सी0 आई0 ) की पुत्री के साथ हुआ ।इन्ही के वंशज अभी तक यहां के शासक बने।मैसूर का राजमहल अपनी भव्यता व महत्वता से बहुत चर्चित है।

संदर्भ--
1-राजपूताने का इतिहास , भाग1-लेखक जगदीश सिंह गहलोत ।
2-आस्था राजपुत्र मासिक पत्रिका वर्ष -9अंक -12 दिसम्बर 2016 ।
3-जोसियर जी0आर0,हिस्ट्री ऑफ मैसूर ऐंड दी यादव डायनेस्टी।
4-कर्नाटक थ्रू दी एजेज ।

लेखक-डॉ0 धीरेन्द्रसिंह जादौन
गांव-लढोता ,सासनी
जनपद-हाथरस ,उत्तरप्रदेश।
एसोसिएट प्रोफेसर ,कृषि मृदा विज्ञान
शहीद कैप्टन रिपुदमन सिंह राजकीय महाविद्यालय ,सवाईमाधोपुर ,राजस्थान ,322001

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