जैसलमेर के यदुवंशी भाटी राजपूतों के शौर्य एवं वीरता का ऐतिहासिक अध्ययन---जैसलमेर के भाटी राजपूत चन्द्रवंशी यादव एवं भगवान श्री कृष्ण के वंशज है।कहते है कि द्वारिका में अपनी राजसत्ता के छिन्न-भिन्न होने के बाद यादव सिंधु ,पंजाब एवं सीमाप्रान्त में आ बसे थे।जनश्रुतियों के अनुसार स्यालकोट के यादव शासक देवराज भाटी के उत्तराधिकारी मंगलराव ने गजनवियों के स्टालकोट पर आक्रमण करने पर थार के रेगिस्तान में अपना डेरा जमाया ।उसके लड़के केहर ने लूटपाट और उत्पात मचाकर उक्त क्षेत्र के एक बड़े इलाके में अपना नियंत्रण स्थापित किया ।उसने अपने लड़के तन्नू जी के नाम से तन्नौट बसाया और उसे अपनी राजधानी बनाया।केहर के बाद तन्नू जी ने 80 वर्ष राज्य किया औऱ वाराहों और लंघाओं को हराकर अपने राज्य का विस्तार किया।तन्नु जी की मृत्यु उसके उत्तराधिकारी विजयराज से वाराहों एवं लंघाओं ने हार का बदला लिया।विजयराज औऱ उसके परिवार को मौत के घाट उतार दिया गया ।इस परिवार में केवल विजराज का एक छोटा पुत्र देवराज (दूसरा ) बचा जिसे परिवार की महिलाओं ने सुरक्षित स्थान पर भेज दिया था ।जब वह बड़ा हुआ तो उसने शक्ति का संचय किया ।उसने वाराहों को हराया औऱ लोधा क्षत्रियों से लोद्रवा छीन कर उसे अपनी राजधानी बनाया ।बाउवा के 837ई0 के शिलालेख से प्रकट है कि उसे सन 757ई0 में मण्डोर के प्रतिहारों ने हराया था ।उसे चन्ना क्षत्रियों ने मार डाला।उसने महारावल की पदवी धारण कर ली थी। जैसलमेर के भाटी वंश में विजयराज दितीय नामक राजा हुआ जिसने अरबों के आक्रमणों को रोका ।उसे पड़ोसी शासकों ने "उत्तर भड़ किवाड़ भाटी " (उत्तरी सीमा के प्रहरी ) के नाम से विख्यात किया ।इसका जिक्र 12 वीं शताब्दी के कई शिलालेखों में आता है ।इस वंश के जैसलदेव ने सन 1155ई0 में जैसलमेर बसाया और उसे लोद्रवा के स्थान पर अपनी राजधानी बनाया।उसने पूंगल , चोहटन ,औऱ राहड़ी-शक्कर को अपने राज्य में मिलाया। दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने सन 1304 ई0 में जैसलमेर को घेर लिया ।खिलजी की सेना का घेरा लगभग 12 वर्ष रहा।तत्कालीन शासक रावल जैत सिंह घेरे के दौरान सन 1311ई0 में मारे गए।उनका उत्तराधिकारी मूलराज बने ।उन्होंने भी खिलजियों के विरुद्ध लड़ाई जारी रखी ।परन्तु 12 वर्ष बाद रसद आदि की कठिनाइयों से परेशान होकर उन्होंने " शाका" किया ।इस शाके में मूलराज सहित 700 राजपूत योद्धा खेत रहे थे ।दुर्ग की सैकड़ों वीरांगनाओं ने जौहर किया ।दुर्ग पर खिलजियों का दखल हो गया ।लेकिन रेगिस्तान की कठिनाइयों से घबराकर खिलजी सेना किले से पलायन कर गई। कुछ वर्ष बाद भाटी वंश के घड़सी ने दुर्ग पर अधिकार कर लिया ।इस प्रकार जैसलमेर पर पुनः भाटी जादों वंश का शासन स्थापित हो गया।घड़सी ने घड़सीसर तालाब का निर्माण कराया।घड़सी की मृत्यु के बाद जैसलमेर अंधकार के युग में प्रवेश कर गया। लगभग 200 वर्ष बाद महारावल लूकरण के समय में जैसलमेर पुनः प्रकाश में आया।सन 1540ई0 में मुगल बादशाह हुमायूँ ने लूकरण से शेरशाह के विरुद्ध सहायता मांगी। परन्तु लूकरण ने उसे सहायता देने से इनकार कर दिया ।हुमायूँ सिन्ध चला गया ।सन 1550 ई0 में अमीर अली खां कंधार की गद्दी से च्युत कर दिया गया ।लूकरण ने उसे अपने यहां शरण दी। परन्तु खां ने किले पर अधिकार करने का प्रयत्न किया ।इस पर लूकरण ने उसे और उसके सहायकों को मौत के घाट उतार दिया ।परन्तु साथ ही लूकरण और उसके 400 सैनिक भी खेत रहे।लूकरण समाज सुधारक थे।उन्होंने उन हजारों भाटी क्षत्रियों को पुनः हिन्दू बनाया जो कुछ वर्षो पूर्व मुगलों के दबाव में मुसलमान बन गए थे ।सन 1570ई0 में उसके उत्तराधिकारी हरराज ने मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली थी।हरराज ने अमरकोट के सोढ़ों को हराया था। सन 1659ई0 में भाटी शासक महारावल अमरसिंह ने औरंगजेब से पोकरण ,फलोदी ,औऱ मालानी के परगनों की सनद प्राप्त कर ली ।उसने बीकानेर से पूंगल छीन लिया ।वह " अमरकास "नाला बना कर सिन्धु नदी का पानी अपने राज्य में लाया।उसने राज्य में अमरशाही बाट चलाये ।उनकी सन 1701 ई0 में मृत्यु हो गयी।उसके लड़के महारावल जसवन्तसिंह ने अपने शासनकाल में अपने पिता के समय प्राप्त परगने हाथ से निकाल दिए।यही नहीं उसके राज्यकाल में सतलज के निकट जैसलमेर की भूमि भी शिकारपुर के दाऊद खां ने दबा ली । सन 1761ई0 में भाटी मूलराज जैसलमेर की गद्दी पर बैठे ।उनका 58 वर्ष लम्बा शासनकाल भाटी वंश का अन्धकारमय युग रहा ।वह अपने दिवान सरूपसिंह टावरी (महेश्वरी ) के हाथों कठपुतली था।टावरी ने राज्य में लूटमार करने वाले जागीरदारों को सख्ती से दबाया ।फलस्वरूप जागीरदार उसके विरुद्ध हो गए।उन्होंने मूलराज के लड़के रायसिंह को टावरी के विरुद्ध भड़काया ।रायसिंह ने खुले दरबार में टावरी को मौत के घाट उतार दिया और महारावल को बंदी बना लिया ।एक भाटी जागीरदार जोरावर सिंह ने महारावल को मुक्त कराया।महारावल ने स्वतंत्र होते ही अपने लड़के रायसिह को देश निकाला दे दिया और सरूपसिंह के लड़के सालमसिंह को अपना दीवान नियुक्त किया । रायसिंह 2 माह बाद पुनः जैसलमेर आ गया ।पर महारावल ने उसको परिवार सहित जेल में बन्द कर दिया।कुछ समय बाद सालमसिंह ने रायसिंह को सपरिवार मौत के घाट उतार दिया और अपने पिता का बदला लिया।अब सालमसिंह सर्वेसर्वा हो गया ।उसने अपने विरोधी जागीरदारों और राजपरिवार के कुछ सदस्यों को मरवा डाला ।राज्य में आतंक जैसा माहौल छा गया कि राज्य में शांति व व्यवस्था बनाये रखने के लिए जिम्मेदार जागीरदार ,रियासत छोड़कर पड़ौसी राज्यों में चले गए।राज्य में शांति एवं व्यवस्था भंग हो गयी ।चारों ओर लुटेरों के झुंड लूटमार करने लगे।सन 1818 ई0 में जैसलमेर ने ईस्ट इंडिया कम्पनी की अधीनता स्वीकार कर ली।स्मरण रहे उस समय मरहठे सम्पूर्ण राजस्थान को तबाह कर चुके थे , परन्तु उन्होंने जैसलमेर की पावन भूमि में अपने पैर नहीं रखे ।वहां उन्हें कुछ प्राप्त होने की उम्मीद नहीं थी । भाटियों केअन्य राज्य एवं राजवंश-- 1-सिरमौर-नाहन , 2-कपूरथला ,3-पटियाला, 4-नाभा ,जींद राजा शालिवाहन प्रथम सन 194-227 ई0 गजनी के राजा गज के पुत्र थे।शालिवाहन के पुत्रोंने हिमालय में बद्रीनाथ तक राज्य स्थापित किये।कालान्तर में नाहन के राजा बच्छराज "मारकर " के पुत्र नहीं हुआ और राज्य का उत्तराधिकारी बनने योग्य कोई यदुवंशी नहीं रहा ।नाहन के राजा का विरुद "मारकर " था ।तब वहां के सामन्त मण्डल ने जैसलमेर के रावल शालिवाहन (दूसरे ) (सन 1168-1190ई0 ) के पास राजदूत भेजे और उन्हें भाटी राजपुत्र देने का आग्रह किया,जिसे गोद लिया जा सके।रावल शालिवाहन ने अपने तीसरे पुत्र हंसराज के पुत्र कुमार मनरूप को योग्य समझ कर कुटुम्ब सहित दत्तक पुत्र बनने के लिये भेजा और मार्ग केलिए सुविधा एवं सुरक्षा के प्रबन्ध किये ।दुर्भाग्यवस कुमार मनरूप की रास्ते के पहाड़ी जंगल में मृत्यु हो गई ।उनकी युवरानी गर्भवती थी ।जंगल में ही पलास के पेड़ के नीचे उनका प्रसव हुआ।पुत्र पैदा हुआ ।क्यों कि यह पलास के पेड़ के नीचे पैदा हुए थे इसलिए पुत्र का नाम पलास रखा गया।यही कुमार बड़े होकर नाहन और सिरमौर राज्य के शासक बने।इनके वंशज "पलासिया भाटी " कहलाये।जयपुर के महाराजा भवानी सिंह की पत्नी महारानी पद्यमिनी इसी राजवंश की पलानिया यदुवंशी भाटी राजपूत है। रावल शालिवाहन के चौथे पुत्र मोकलजी के पुत्र चन्द्र , जो कुमार मनरूप के साथ जैसलमेर से रवाना हुए थे , मार्ग में ही रह गए थे ।जिन्होंने कपूरथला का राजवंश और राज्यस्थापित किया ।इनकी शाखा से नाभा, जींद , पटियाला राज्य औऱ इसका राज्यवंश स्थापित हुआ ।सिख होते हुए भी कपूरथला औऱ पटियाला के राजवंश के लोग यदुवंशी भाटी है ।हमें इन पर गर्व है ।इन राज्यों के शासक समय -समय पर अपने पूर्वजों की धरती जैसलमेर आया -जाय करते थे ।जैसलमेर महारावल।को श्रद्धा और निष्ठा से अपने वंश के वरिष्ठतम शासक का सम्मान देते थे । इसकेअलावा गिरनार ,करौली ,कच्छ ,नवानगर ,देवगिरि (दौलताबाद ) , मैसूर (विजयनगर ) के शासक यदुवंशी है ।ये राज्य लाहौर से ही अलग -अलग राज्य स्थापित होने आरम्भ हो गए थे ।बदलते -बदलते अभी भी यह वंश "यदुवंशी "ही है। संदर्भ- 1-जैसलमेर राज्य का इतिहास। -लेखक माँगी लाल मयंक। 2-पूगल का इतिहास -लेखक हरिसिंह भाटी 3-राजपूताने का इतिहास -लेखक जगदीश सिंह गहलौत । 4-राजपूताने का इतिहास -राजपूत राज्यों का उद्भव एवं अधिपतन । 5-जैसलमेर का इतिहास -टॉड कर्नल। 6-गजनी से जैसलमेर -लेखक हरिसिंह भाटी 7-जैसलमेर का इतिहास -लेखक पण्डित हरिद्दत गोविंद व्यास।8-जैसलमेर दिग्दर्शन -लेखक दीनदयाल ओझा ।9-तवारिख जैसलमेर -लेखक लक्ष्मी चन्द ।10-जैसलमेर री ख्यात -संपादक डा0 नारायण सिंह भाटी।11-बांकीदास की ख्यात ।12-मुंहता नैनसी ख्यात भाग I, II,III.13-युग कालीन वल्लप्रदेश , जैसलमेर -लेखक नंदकिशोर शर्मा ।14-हिस्ट्री आफ जैसलमेर -लेखक सोमानी।15-भारतीय संस्कृति और उसका इतिहास -लेखक सत्यकेतु विद्यालंकार।लेखक-डॉ0 धीरेन्द्रसिंह जादौनगांव-लढोता ,सासनी जनपद-हाथरस ,उत्तरप्रदेश।एसोसिएट प्रोफेसर ,कृषि मृदा विज्ञान शहीद कैप्टन रिपुदमन सिंह राजकीय महाविद्यालय ,सवाईमाधोपुर ,राजस्थान ,322001

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