शूरसेन प्रदेश के प्राचीन यदुवंशी जादों राजपूतों (पौराणिक यादव ) के राज्य करौली का ऐतिहासिक अध्ययन--

शूरसेन प्रदेश के  प्राचीन यदुवंशी जादों राजपूतों (पौराणिक यादव ) के   राज्य करौली का ऐतिहासिक अध्ययन----

राजस्थान के पूर्वी भाग में स्थित करौली एक छोटी सी प्राचीन रियासत थी।करौली का राजवंश यादव-वंशी राजपूतों में से है जो चन्द्र वंश की एक शाखा है ।जैसलमेर की भांति करौली के यादव (आधुनिक जादों राजपूत ) भी यदुकुल शिरोमणि भगवान श्री कृष्ण के  वंशज है ।करौली का जादों राजवंशअपने को पौराणिक यादव वंशी तथा मथुरा की शूरसैनी शाखा से निकला हुआ मानता है।यदुवंशियों का राज्य  जो पहले प्रयाग में था , वह श्री कृष्ण के समय में ब्रज प्रदेश (मथुरा  ) में रहा।यदुकुल में श्री कृष्ण के दादा  महाराज शूरसेन के वंशज ही शूरसैनी शाखा के यादव कहलाये तथा इस यदुवंश में पैदा हुए कीर्तवीर्य अर्जुन के पुत्र शूरसेन के नाम पर मथुरा और उसके आस -पास के प्रदेश का नाम शूरसेन प्रदेश पड़ा जो श्री कृष्ण के दादा शूरसेन से कई पीढ़ी पहले हुए थे ।कुछ इतिहासकार इस प्रदेश का नाम  श्री कृष्ण के दादा शूरसेन के नाम पर पड़ा बताते है जो सत्य प्रतीत नहीं होता  है ।श्रीकृष्ण जी पहले ब्रजभूमि में राजकरते थे । श्री कृष्ण ने मगध के राजा जरासंध के अधिक विरोध  एवं आक्रमणों के कारण यादवों की राजधानी मथुरा के स्थान पर द्वारिका बना ली ।पर बाद में श्री कृष्ण की कूटनीति द्वारा जरासन्ध को भीमसेन के द्वारा मरवा दिया गया तब यादव मथुरा में स्वतन्त्र हो गए।

करौली का जादों राजवंश श्री कृष्ण के प्रपौत्र बज्रनाभ के वंशज ---

श्रीकृष्ण के बाद यादवों की एक शाखा (श्री कृष्ण के प्रपौत्र बज्रनाभ जी की शाखा )ने पुनः बृज देश में (मथुरा ) अपना राज्य स्थापित कर लिया  था । अर्जुन ने बज्र को द्वारिका से लाकर पुनः मथुरा का शासक बनाया था ।इनके वंशज ही कालान्तर में बयाना ,तिमनगढ़ एवं करौली के शासक हुए ।इन यादवों का राज्य ब्रज प्रदेश में , सिकन्दर  के आक्रमण के में भी होना पाया जाता है ।समय -समय पर  विदेशी आक्रमणकारियों  जैसे  शक , मौर्य ,गुप्त तथा सीथियनों आदि ने यादवों  का यह राज्य दबाया लेकिन मौका पाते ही यादव फिर स्वतंत्र बन जाते थे ।मध्य-काल में भी इस प्रदेश के यदुवंशी राजपूतों ने गजनी ( काबुल )  के तुर्कों एवं मुस्लिम शासकों से भी लम्बा संघर्ष किया ।इसी यादव शाखा के वंशजों ने कालान्तर में बयाना ,तिमनगढ़ एवं करौली राज्य की स्थापना की थी।यही करौली की राजगद्दी यदुवंशियों यानी भगवान श्री कृष्ण के वंशज माने जाने वाले राजपूतों में आदि (पाटवी ) या मुख्य समझी जाती है।
करौली की ख्यातों में लिखा है कि विक्रम सं0 936 (ई0 सन 879 ) में यादव महाराजा इच्छापाल मथुरा का राजा था।उसके ब्रह्मपाल एवं विनयपाल नामक दो पुत्र थे ।इच्छापाल के बाद ब्रहमपाल मथुरा का शासक हुआ और विनयपाल के वंशज "बनाफर " यादव कहलाये ।ब्रहमपाल की मृत्यु के बाद उसका पुत्र जयेंद्र पाल (इन्द्रपाल ) विक्रम संवत1123 (ई0 सन 966) में गद्दी पर बैठा ।इसका देहान्त संवत  1049 कार्तिक सुदी 11 को हुआ ।इसके 11 पुत्र थे जिनमें ज्येष्ठ विजयपाल थे ।
1-मथुरा का जादों महाराजा विजयपाल एवं उसके उत्तराधिकारी---

करौली जादों राजपरिवार के मूलपुरुष बयाना (विजयमन्दिरगढ़ ) के महाराजा विजयपाल--
जब गजनी (काबुल ) की तरफ से यवनों के भारत की उत्तरी-पश्चिमी सीमा पर  आक्रमण होने शुरू हो गए थे और विक्रम संवत 1075 (ई0सन  1018) में महावन एवं मथुरा महमूद गजनवी द्वारा लूटे जा चुके थे ।महावन की सैनिक छावनी नष्ट  करदी गयी एवं उसका यदुवंशी शासक कुलचंद मारा गया जो सम्भवतः विजयपाल का ही भाई-बन्ध था।महाराजा विजयपाल मथुरा से राजधानी हटाकर पूर्वी राजस्थान के पर्वत श्रंखलाओं से घिरे क्षेत्र में मानी पहाड़ी पर ले आया क्यों कि यह स्थान पहाड़ियों  से घिरा होने की बजह से मथुरा जैसे मैदानी भाग से सुरक्षा के दृष्टिकोण से सुरक्षित था।विजयपाल ने सन 1040 ई0 में वहां एक विजयमन्दिरगढ़ नाम का एक दुर्ग बनवाया जो अब "बयाना "के नाम से जाना जाता है ।गजनवियों ने संवत 1150 (सन 1093 ई0)  में इस किले पर अधिकार कर लिया और विजयपाल मारे गए ।कहा जाता है कि महाराजा विजयपाल ने अपने अंतिम समय में शिव मंदिर में जाकर  अपना सिर काटकर महादेव को चढ़ा कर  आत्मदाह कर लिया ।इस समय लगभग 360 रानियों ने बयाना के किले में जौहर किया थ। यह राजपूताने का सबसे पहला जौहर था लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि इतिहासकारों ने इस जौहर को इतिहास में स्थान ही नहीं दिया गया जो करौली राजपरिवार की दुर्वल इच्छाशक्ति का भी द्योतक है ।उन्होंने तत्कालीन चारणों एवं भाटों से अपना गौरव एवं शौर्यशाली इतिहास लिखवाया ही नहीं गया ।बयाना के जादों महाराजा  विजयपाल को श्री कृष्ण की 88 वीं पीढ़ी में होना कहा जाता है।लगभग 51 वर्ष तक बयाना पर जादों राजपूतों का अधिकार रहा ।महाकवि चन्द बरदाई के "पृथ्वीराज रासौ " से भी ज्ञात होता है कि ईसा की 12 वीं सदी में बयाना के आस-पास  यादवों (आधुनिक जादों राजपूत ) का प्रबल प्रभाव था ।विजयपाल के 18 पुत्र बताई जाते है जिनमे ज्येष्ठ तवनपाल था ।
2-महाराजा तवनपाल एवं उसके उत्तराधिकारी---
तवनपाल (ई0 1093-1159 ई0 ) इस वंश के प्रतिभाशाली शासक थे ।66 वर्ष के दीर्घ कालीन शासनकाल में उन्होंने तबनगढ़ का (फ़ारसी इतिहासकारों का थनकर ) जो बयाना से 15 मील( 23किलोमीटर ) की दूरी पर है , दुर्ग बनवा कर तथा नई विजयें कर अपने राज्य की शक्ति बढ़ाई और उसने अपनी राजधानी तवनगढ़ में स्थापित की ।उन्होंने डांग ,अलवर ,भरतपुर ,धौलपुर ,गुड़गांव ,मथुरा ,आगरा तथा ग्वालियर के विशाल क्षेत्र जीत कर अपने राज्य का विस्तार किया ।इस विशाल क्षेत्र पर उसकी सत्ता उसके विरुद "परम् भट्टारक महाराजाधिराज पमेश्वर "से भी सिध्द होती है( 1) ।
  तवनपाल के बाद अगले दो शासक धर्मपाल एवं हरिपाल अपना पैतृक अधिकार स्थिर नहीं रख सके ।कुछ पारवारिक झगड़ों के कारण और कुछ अपने सामन्तों की बढ़ती शक्ति के फलस्वरूप ।वे शहाबुद्दीन गौरी और उसके सेनापति कुतुबुद्दीन का भी सामना नहीं कर सके जिसने 1196ई0 में धर्मपाल के पुत्र कुँवरपाल से बयाना तथा तवनगढ़ (थनकर ) छीन कर अपना अधिकार कर लिया ।सन 1196ई0 से 1327ई0 तक इस वंश का तिथिक्रम संदिग्ध है ।ऐसा प्रतीत होता है कि इस युग में अराजकता रही होगी और इस वंश का भाग्य कुछ समय के लिए अस्त हो गया (2-5) ।
 

3-करौली नगर के संस्थापक राजा अर्जुनपाल एवं उसके उत्तराधिकारी तथा करौली नगर की स्थापना ---

जादों राजपूत लगभग 150 वर्षों तक इधर -उधर डोलते रहे ।बहुत समय बाद सन1327ई0 के लगभग   गोकुलदेव का पुत्र राजा अर्जुनपाल (सन 1327-61) इस वंश का महानतम शासक हुआ ,उसने मण्डरायल के मियां माखन , जो इस क्षेत्र में अलोकप्रिय था , को पराजित कर उसने फिर स्वदेश में अपने पैर जमा लिए ।मीना और पंवार राजपूतों का दमन कर उसने अपनी सत्ता और अधिक दृढ़ कर ली ।  उसने ने चौदहवी शताबदी (1348ई0) में सरमथुरा के 24 गांव को बसाया और धीरे -धीरे अपने पूर्वजों के राज्य पर पुनः अधिकार किया ।विक्रम संवत 1405 (ई0 सन 1348) में इन्होंने कल्याणजी का मंदिर बनवाकर कल्याणपुरी नगर बसाया और उसे सुन्दर भवनों ,तालाबों ,बागों तथा मन्दिरों से सुंदर बनाया जो अब करौली के नाम से जाना जाता है ।यही इस राज्य की राजधानी बनी (6) ।
अर्जुनपाल के उत्तराधिकारी लगभग साधारण शासक थे ।वे पारिवारिक झगड़ों में उलझ गए और इस लिए वे अपने शत्रुओं का सामना करने में दुर्वल हो गए ।पृथ्वीपाल के शासनकाल में अफगानों ने तवनगढ़ पर 15 वीं सदी के प्रथम 25 वर्षों में अधिकार कर लिया ।यद्धपि उसने ग्वालियर के शासक का आक्रमण विफल कर दिया किन्तु वह मीणाओं का दमन न कर सका जो दुर्जेय बन गए थे (7) ।15 वां वंशज महाराज चन्द्रपाल एक धर्मपरायण शासक थे ।वह मालवा के महमूद खल्जी के आक्रमण का सामना न कर सके जो उनके राज्य में घुस आया और 1454ई0 में उसकी राजधानी लूटी।विजयी सुल्तान अपने पुत्र फिदवी खां को करौली सौंप कर अपनी राजधानी लौट गया ।तिमनगढ़ से निकाले जाने पर चन्द्रसेन उंटगढ़ में सन्यासी जीवन व्यतीत करने लगा ।ऐसा प्रतीत होता है कि वह तथा उसके उत्तराधिकारी अपने सुरक्षित स्थान के निकट थोड़े प्रदेश पर तब तक अधिकार बनाये रहे जब तक अकबर के समय उसके एक उत्तराधिकारी गोपालदास ने उसके क्षेत्र का कुछ भाग प्राप्त कर लिया (8) ।उसने मासलपुर और भद्रपुर पर अधिकार किया ।उसके वंशज 1527ई0 तक शांति से शासन करते रहे ।जब गोपालसिंह द्वितीय गद्दी पर बैठे तो उन्होंने मुक्तावत और सरमथुरा को अपने राज्य में मिला लिया ।उसे मुगल बादशाह मोहम्मदशाह ने सन 1773 ई0 में "माही मरातिब "प्रदान किया ।उसके वंशज हरवक्षपाल ने मरहठों के हमले से परेशान होकर ईस्ट इंडिया कम्पनी की शरण ली।उसने कम्पनी से नवंबर 1817ई0 में संधि कर मरहठों से छुटकारा पाया ।
संदर्भ --
1-आर्के0 सर्वे0 ऑफ इंडिया , भाग 20 ,3 ।
2-क्रोनोलॉजी आफ इंडिया , 170।
3-ईलियट , भाग 5 ,98 ;गहलोत , हिस्ट्री आफ राजपुताना ,601-2 ।
4-हिस्ट्री ऑफ राजपूताना , 602-3 ।
5-अकबरनामा , भाग 3 ,157 , 434 , 598 ; आईनेअकबरी , भाग 1 , 564 , 593 ।
6-राजपूताना गजेटियर , भाग 1 ,246-47 ।
7-वही ,भाग 1 ,346 ।
8-वही ,भाग 1, 246-47 ।

लेखक -डॉ0 धीरेन्द्र सिंह जादौन
गांव-लाढोता ,सासनी
जिला-हाथरस ,उत्तरप्रदेश
एसोसिएट प्रोफेसर ,कृषि मृदा विज्ञान
शहीद कैप्टन रिपुदमन सिंह राजकीय महाविद्यालय ,सवाईमाधोपुर ,राज


Comments

Popular posts from this blog

जादों /जादौन (हिन्दी ) /पौराणिक यादव (संस्कृति शब्द ) चंद्रवंशी क्षत्रियों का ऐतिहासिक शोध --

History of Lunar Race Chhonkarjadon Rajput---

Vajranabha, the great grand son of Shri Krishna and founder of modern Braj and Jadon Clan ( Pauranic Yadavas /Jaduvansis ) of Lunar Race Kshatriyas-----