तिमनगढ़ के चंद्रवंशी जादों (पौराणिक यादव ) राजा तिमनपाल की संतति एवं राज्य विस्तार का इतिहास--

तिमनगढ़ के जादों  (पौराणिक यादव )राजपूत   राजा तिमनपाल की संतति एवं  राज्य -विस्तार का इतिहास ---

जैसलमेर के भाटियों की भांति बयाना और तिमनगढ़ के क्षत्रिय सरदार चन्द्रवँशी  यादव राजपूत थे। करौली राजवंश के मूल पुरुष महाराजा विजयपाल मथुरा के पौराणिक यादव राजवंश से थे । दूसरे शब्दों में हम कह सकते है कि करौली का यह जादों राजवंश विजयपाल से आरम्भ हुआ ।वह अपनी राजधानी मथुरा से हटा कर पूर्वी राजस्थान के पहाड़ी क्षेत्र में  पास की मानी पहाड़ी पर ले गए और वहां एक किला "विजयमन्दिरगढ़ " (ई0 सन 1040 में ) बनवाकर अपनी राजधानी स्थापित की ।यही किला कालान्तर में बयाना के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।ख्यात के लेखक गजनी के शासक से उसके संघर्ष का उल्लेख करते  है। समकालीन अभिलेखों में उन्हें "परमभट्टारक " कहा गया है जो इस वंश में उनका राजनैतिक महत्व निर्धारित करता है ।संभव है वह 1093 ई0 तक जीवित रहे ।महाराजा विजयपाल को श्री कृष्ण की 88 वीं पीढ़ी में होना बतलाया जाता है ।

महाराजा तिमनपाल (तिहुनपाल ,त्रिभुवनपाल , ताहनपाल ) ---

महाराजा विजयपाल की मृत्यु के बाद उनका ज्येष्ठ पुत्र तिमनपाल (तिहुनपाल ,त्रिभुवनपाल )विजयमन्दिरगढ़ की राजगद्दी पर बैठा ।उसने भी अपने पिता की भाँति "परम् भट्टारक "का महाविरुद प्राप्त किया था (1) ।लेकिन अर्नोराज चौहान की साम्राज्यवादी नीति ( विस्तारवादी योजना ) (2 )के चलते तिमनपाल को 12 वर्ष के लिए विजयमन्दिरगढ़ छोड़कर अज्ञातवास में रहना पड़ा।परन्तु कुछ समय बाद एक सिद्ध योगी के आशीर्वाद और चौहान राजा विग्रहराज चतुर्थ की सहअस्तित्व की नीति के कारण वह पुनः सत्तारूढ़ हुआ।

बयाना के जादों कुल के प्रतिभाशाली एवं धर्मपरायण शासक राजा तिमनपाल---

तवनपाल (ई0 1093-1159 ई0 ) इस वंश के प्रतिभाशाली शासक थे ।66 वर्ष के दीर्घ कालीन शासनकाल में उन्होंने तबनगढ़ का (फ़ारसी इतिहासकारों का थनकर ) जो बयाना से 15 मील( 23किलोमीटर ) की दूरी पर है , दुर्ग बनवा कर तथा नई विजयें कर अपने राज्य की शक्ति बढ़ाई और उसने अपनी राजधानी तवनगढ़ में स्थापित की ( 3) ।

सम्भवतः अच्युतध्वज तथा ब्रहानाथ योगियों ने तिमनपाल को सत्तारूढ़ करने में योग दिया (4) तथा दिल्ली के तंवरों ,गूजरों तथा अन्य राजपूतों से शादी-सम्बन्ध स्थापित करके अपनी राजनीतिक स्थिति को सुदृण भी किया।" वृत्त-विलास " नामक काव्य -ग्रंथ के अनुसार तो महाराजा तिमनपाल का विक्रम इतना बढ़ गया था कि इन्होंने अश्वमेघ यज्ञ किया था (5)।यज्ञ के घोड़े के साथ इनके 12 पुत्र दस दिशाओं की ओर निकले और जिधर -जिधर गए उधर -उधर अपना राज्य स्थापित किया । इनके राज्य में अलवर राज्य का आधा हिस्सा , भरतपुर , धौलपुर ,करौली के राज्य तथा गुड़गांव एवं मथुरा से लेकर आगरा और ग्वालियर के कुछ भाग भी सम्मलित थे ।मध्यप्रदेश के  गांव इनगोडा (देवास राज्य ) से मिले विक्रम संवत 1190 आषाढ़ सुदी 11 (ई0 सन 1133 की जून 15 ) के शिलालेख में तिमनपाल को "परम् भट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर " लिखा गया है जिससे पता चलता है कि वह एक शक्तिशाली शासक थे ।

तिमनपाल लोक कल्याण कार्यों में हमेशा लग्नशील रहता था।वह धार्मिक सहिष्णु शासक था तथा सभी धर्मों का सम्मान करता था।उसने वैष्णव धर्म को अपनाने के साथ ही शैव सम्प्रदाय व जैन धर्म को पूर्ण सम्मान व संरक्षण दिया जिससे यहां विभिन्न धर्मों की अनेकता में एकता देखने को मिलती थी।उसके शासनकाल में विभिन्न भागों से जैनधर्मावलम्बी आकर निवास करने लगे तथा तिमनगढ़ एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र बन गया ।इनके राज्य में जैनधर्म का अच्छा विकास हुआ।इस स्थान का अवलोकन करने पर आज भी खण्डित दुर्ग के बाजार की दुकानों पर जहां गणेश जी व हनुमान जी की मूर्तियां देखने को मिलती है वहीं जैन धर्म की कई प्रतिमा भी देखने को मिलती है।

 
ताहनगढ़ दुर्ग (तिमनगढ़, तवनगढ़  ,त्रिभुवनगढ़ ,थनगढ़ त्रिपुरारगिरि ,त्रिभुवनगिरि )----

तिमनपाल ने एक लम्बे समय तक यहां शासन किया और 35 लड़ाइयां लड़ी ।उन्होंने दुर्ग के भीतर बाजार ,मन्दिर ,तालाब ,कुँआ (ननद -भौजाई) ,नटनी की छतरी ,टेलकुण्ड ,एवं सड़कें आदि का निर्माण करवाया।लगभग 8 किलोमीटर की परिधि में फैला तवनगढ़ शास्त्रोक्त गिरि दुर्ग का उत्तम उदाहरण है।उन्नत और विशाल प्रवेशद्वार तथा ऊँचा परकोटा इसके स्थापत्य की प्रमुख विशेषताएं है।जगह पौर और सूर्य पौर इसके दो प्रमुख प्रवेश द्वार हैं।बीते जमाने में यह किला अपने आप में एक संम्पूर्ण इकाई था।समूचा नगर किले के भीतर बसा हुआ था।दुर्ग में 60 दुकानों से युक्त एक विशाल बाजार था। ऐसा कहा जाता है कि इस दुर्ग में  तिमनपाल द्वारा स्थापित एक तिमनबिहारी मन्दिर भी है।वह वैष्णव धर्म का उपासक था ,उसने संवत 1142 में भगवान विष्णु के मंदिर का निर्माण कराया था।इसके अतिरिक्त खास महल,बड़ा चौक ,ननद भौजाई का कुँआ ,राजगिरि, दुर्गाध्यक्ष के महल , सैनिकों के आवासगृह ,जीर्ण -शीर्ण छतरियां ,तहखाने आदि भवन प्रमुख और उल्लेखनीय है।यहां उपलब्ध प्राचीन प्रतिमाओं के कारण यह दुर्ग केवल ऐतिहासिक दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं है अपितु अपनी बहुमूल्य सांस्कृतिक एवं कलात्मक धरोहर के कारण भी विशिष्ट महत्व रखता है ।

तिमनगढ़ के जादों राजा तिमनपाल की संतति ---

तिमनपाल पुत्रों के नाम निम्न प्रकार से मिलते है---(6).
1-धर्मपाल ,2-हरपाल ,3-चन्द्र पाल ,4-सोनपाल ,5-मदनपाल ,6-बन्धपाल ,7-शेरपाल , 8-अभयपाल -शेष अज्ञात है।
इसमे सबसे बड़े बेटे धर्मपाल को धौलदरा ( धौलपुर ) जनपद की व्यवस्था सौंपी गई।दूसरे  बेटे की योग्यता को देखते हुए उसे तवनगढ़ की राजगद्दी और ब्रज मण्डल की राज -व्यवस्था का कार्यभार सौंपा गया(7) ।परन्तु बाद में धर्मपाल और उसके बेटे कुँवरपाल ने उसे हराकर तवनगढ़ एवं बयाना पर अपना अधिकारकर लिया(8) और बाद में उसके वंशजों ने पुनः तिमनगढ़ पर अधिकार करके नए करौली राज्य की।स्थापना की ।यह जादों शाखा के चन्द्र वंशी यादव (जादों ) क्षत्रियों की उदगम-स्थली बनी ।
शेरपाल और अभयपाल ने यमुना -नदी के किनारे पर पूर्व दिशा में शेरगढ़( मथुरा ) और अभयगढ़ (बुलन्दशहर ) राज्यों की स्थापना की ।आज भी बुलन्दशहर एवं शेरगढ़ के जादों ठाकुर अपना निकास करौली से ही मानते है ।सोनपाल के वंशजों ने बिछोर राज्य कायम किया ।
बन्धपाल ने कामा की पहाड़ियों के निकट खोह नामक गाँव में निवास किया और पहाड़ी नामक नगर और किले का निर्माण करके अपना राज्य स्थापित किया ।इनके पुत्र सोहरदेव और खान चन्द के पुत्र ही कालांतर में धर्म -परिवर्तन कर लेने पर "खानजादों  " मेव कहलाये(9) ।
मदनपाल और उसके वंशजों ने 18 वीं सदी में भरतपुर राज्य की स्थापना की थी और सिनसिनवार जाट कहलाये(10)। राजा धर्मपालकी देहान्त (1112ई0 ) के बाद तिमनगढ़ की गद्दी पर उसके ज्येष्ठ पुत्र
कुँवरपाल प्रथम  , पुनः।अजयपाल ,हरिपाल ,सहनपाल व कुँवरपाल द्वितीय बैठे(11)  ।

सन 1195-96 ई0 में सुल्तान शाहबुद्दीन गौरी ने कुतुबुद्दीन ऐबक एवं बहाउद्दीन तुगरिल के सेनापतित्व में इनके  दुर्गों जैसे बयाना, कुँवरगढ़ ,झीरी  एवं तिमनगढ़ पर हमला करके इन्हें अपने राज्य में मिला लिया था।कुँवरपाल ने अपने मामा के यहाँ अंधेर कोटला (रीवा के पास ) में जाकर शरण ली (12) ।तुर्क सेनापति बहाउद्दीन तुगरिल ने बयाना में दासवंश के8 स्वाधीन सत्ता स्थापित की ।जादों राजपूत परिवारों ने इन तुर्कों की अधीनता स्वीकार नहीं कीऔर यह लोग विशाल टोलियों के साथ इधर -उधर बिखर गये (13) ।
1196 से 1327 ई0 तक इस वंश का तिथिक्रम संदिग्ध है ।ऐसा प्रतीत होता है कि इस युग में अराजकता रही और वंश का भाग्य कुछ समय के लिए अस्त हो गया ।ये जादों राजपूत लगभग 150 वर्षों तक इधर -उधर डोलते रहे ।बहुत समय बाद सन1327ई0 के लगभग   गोकुलदेव का पुत्र राजा अर्जुनपाल (सन 1327-61) इस वंश का महानतम शासक हुआ ,उसने मण्डरायल के मियां माखन , जो इस क्षेत्र में अलोकप्रिय था , को पराजित कर उसने फिर स्वदेश में अपने पैर जमा लिए ।मीना और पंवार राजपूतों का दमन कर उसने अपनी सत्ता और अधिक दृढ़ कर ली ।  उसने ने चौदहवी शताबदी (1348ई0) में सरमथुरा के 24 गांव को बसाया और धीरे -धीरे अपने पूर्वजों के राज्य पर पुनः अधिकार किया ।विक्रम संवत 1405 (ई0 सन 1348) में इन्होंने कल्याणजी का मंदिर बनवाकर कल्याणपुरी नगर बसाया और उसे सुन्दर भवनों ,तालाबों ,बागों तथा मन्दिरों से सुंदर बनाया जो अब करौली के नाम से जाना जाता है ।यही इस राज्य की राजधानी बनी।
मुहम्मद गौरी द्वारा भगाये जाने पर बयाना के कुछ यादव (जादों ठाकुर ) उत्तर पश्चिम की ओर जाकर तिजारा व सरहट्ट (उत्तरी अलबर ) ।इन जारहे ।बाद में उनमें से कुछ ने मुस्लिम धर्म अपना लिया जो खानजादा कहलाते है ।

संदर्भ-
1-इ0 ए0, 6/55 ;गहलौत 600।
2-डा0 दशरथ शर्मा (अर्ली चौहान डायनेस्टी ), पृष्ठ 44 ;भार्गव (राजस्थान ) पृष्ठ 31-32।
3-बलदेव सिंह ,6; वाक्या राज0, 2/35 ; दीक्षित , 2; गहलोत 599।
4-आर्के0 सर्वे0 , 20/90 ।
5- ओझा निबन्ध संग्रह , 3 ब 4/1 ।
6-बलदेवसिंह , 7; वाक्या राज0 ,2/35 और दीक्षित , 2 ।केवल प्रथम 5 पुत्रों के नामों का उल्लेख करते है । आर्के0 सर्वे 0 में बन्धपाल का नाम मिलता है ।बुलन्दशहर में आवाद जादों ठाकुर अपने आपको शेरपाल तथा अभयपाल की संतानें मानते है।सम्भवतः शेरपाल नें कोसी के पूर्व में 11 मील यमुना नदी के किनारे शेरगढ़ तथा अभयपाल ने इसी के समीप अभ्यगढ़ की स्थापना की थी ।
7-गहलोत ,600 ;वीरविनोद , 1498 ।
8-उपरोक्त ,आर्के0 सर्वे0 ,20/7 ; ब्रुकमैन ,317 ।
9-ब्रुकमैन ,29 ;बलदेवसिंह 7 ;वाक्या राज0 2 /35 ;दीक्षित , 2 ;आर्के0 सर्वे 0 , खंड 20 , पृष्ठ 7 ।
10-आर्के0 सर्वे0 , 20 /10 ।
11-ओझा निबन्ध संग्रह , 3 व 4 /1-2 ; राजपुताना थ्रू दी एजेज , 1/561 ।
12-आर्के0 सर्वे0 , 20/7 ;62, 89 ;इम्पी0 गजे0 , 15/26 ;तबकाते अकबरी 1/40, 48-9 और ताजुल मआसिर (इ0डा0) , 226-7; तबकाते नासिरी ,140-145 ; अलब्दाउनी 80 ;फरिश्ता 1/179, 202 ;हबीबुल्ला 66;आशीबादी लाल (दिल्ली सल्तनत ) पृष्ठ 93 ;वीर विनोद , पृष्ठ 1498 और मार्शल , 2 ।
13-आर्के0सर्वे0 ,2 ।

लेखक-डॉ0 धीरेन्द्र सिंह जादौन
गांव-लाढोता ,सासनी ,जनपद -हाथरस, उत्तरप्रदेश
एसोसिएट प्रोफेसर कृषि मृदा विज्ञान
शहीद कैप्टन रिपुदमन सिंह राजकीय महाविद्यालय ,सवाईमाधोपुर ,राजस्थान ,322001

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